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कर्मयोगी रंगा हरि जी नहीं रहे

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, बौद्धिक योद्धा, कर्मयोगी रंगा हरि जी का रविवार प्रातः लगभग 7 बजे कोच्चि के अमृता अस्पताल में दुःखद निधन हो गया. वे 93 वर्ष के थे. आयु के तेरहवें वर्ष में संघ से जुड़े तथा जीवन के अंत तक स्वयंसेवक के रूप में सक्रिय रहे.

सनातन राष्ट्रीयत्व के पुरोधा रंगा हरि जी ने संघ कार्य हेतु पांच महाद्वीपों का प्रवास किया. उन्होंने पांच सरसंघचालकों श्री गुरुजी, मधुकर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य बालासाहेब देवरस जी, प्रो. राजेंद्रसिंह जी उपाख्य रज्जू भैय्या, के. एस. सुदर्शन जी तथा डॉ. मोहन भागवत जी के साथ कार्य किया.

5 दिसंबर, 1930 को जन्मे हरिजी पिता टी.जे. शेनॉय तथा माता पद्मावती की आठ संतानों में दूसरे क्रमांक की संतान थे. सेंट अल्बर्ट हाई स्कूल में शिक्षा ग्रहण की तथा कोच्चि के महाराजा कॉलेज से उपाधि प्राप्त की.

महात्मा गांधी की हत्या के उपरांत वर्ष 1948 से अप्रैल 1949 तक संघ पर पाबंदी लगाई गई थी. वह आरएसएस पर से प्रतिबंध हटाने की मांग को लेकर एक सत्याग्रही के रूप में दिसंबर 1948 से अप्रैल 1949 तक केरल की सेंट्रल जेल में रहे. 1951 में कोच्चि में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह प्रचारक बन गए. आपातकाल के दौरान उन्होंने छद्म वेश में गुप्त रूप से कार्य जारी रखा.

हरिजी 1983 से 1990 तक केरल के प्रांत प्रचारक रहे; 1990 में अखिल भारतीय सह-बौद्धिक प्रमुख और 1991 से 2005 तक अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख रहे. वह  2005 तक एशिया और ऑस्ट्रेलिया में हिन्दू स्वयंसेवक संघ के मार्गदर्शक थे. उन्होंने 5 महाद्वीपों में 22 देशों की यात्रा की. उन्होंने 2001 में लिथुआनिया में और बाद में 2005 और 2006 में भारत में पूर्व-ईसाई धर्म और परंपरा के विश्व सम्मेलन में भाग लिया. वह 2006 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य थे.

हरिजी को मलयालम, संस्कृत, हिंदी, कोंकणी, मराठी, तमिल और अंग्रेजी का उत्कृष्ट ज्ञान था. उन्होंने मलयालम में 20, हिंदी में 8 और कोंकणी में एक पुस्तक लिखी है. उन्होंने मलयालम में तीन पुस्तकें और श्री गुरुजी की रचनाओं का एक विशाल संग्रह – ‘श्री गुरुजी समग्र’ हिंदी में 12 खंडों में संकलित किया. उन्होंने अंग्रेजी से एक, मराठी से छह, संस्कृत से दो और हिंदी से एक पुस्तक का मलयालम में अनुवाद किया. उन्होंने श्री गुरुजी की जीवनी हिन्दी में लिखी. गुजराती, बांग्ला तथा असमिया आदि भाषाओं में उन्हें संभाषण प्रभुता प्राप्त थी.

हाल ही में 11 अक्तूबर को नई दिल्ली में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी जी ने हरिजी की अंतिम कृति पृथ्वी सूक्त : धरती माता के प्रति एक श्रद्धांजलि का विमोचन किया था.

ॐ शांतिः

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