नई दिल्ली. हिन्दू मंदिरों का संचालन करने वाला बोर्ड संस्कृत नहीं, बल्कि अरबी पढ़ाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति करेगा. और वह भी मंदिरों में भक्तों द्वारा दान की गई राशि को खर्च करके. त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड के निर्णय के पश्चात विवाद खड़ा हो गया है तथा बोर्ड के निर्णय को लेकर विरोध शुरू हो गया है. त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड केरल में अपने प्रबंध-संचालन के अधीन आने वाले विद्यालयों में अरबी-भाषा के शिक्षकों की नियुक्ति कर रहा है. अरबी भाषा भारत के संविधान में भारतीय भाषाओं की अनुसूची में भी शामिल नहीं है.
विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष एडवोकेट आलोक कुमार ने कहा कि अरबी भारतीय भाषा नहीं है. यह भारत के संविधान में भारतीय भाषाओं की अनुसूची में भी नहीं है. पवित्र कुरान को पढ़ने, समझने और याद रखने के लिए इस भाषा का अधिक अध्ययन किया जाता है. अतः अरबी भाषा का शिक्षण हिन्दुओं के धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्य के लिए नहीं है. हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा मंदिरों में समर्पित धनराशि से संचालित विद्यालयों में अरबी का शिक्षण एक अनुचित व्यय है.
त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड का गठन त्रावणकोर कोचीन हिन्दू धार्मिक संस्था अधिनियम, 1950 के अंतर्गत किया गया है. इस बोर्ड में तीन सदस्य हैं, जिनमें से दो केरल सरकार के मंत्रिपरिषद के हिन्दू सदस्यों और तीसरे सदस्य केरल की विधानसभा के हिन्दू सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. अतः स्पष्ट है कि तीनों ही सदस्य राज्य की सत्ताधारी पार्टी से नामित हैं.
आलोक कुमार ने कहा कि यह वाम मोर्चा सरकार द्वारा नामित सदस्यों द्वारा हिन्दुओं पर किया गया एक और हमला है. हिन्दुओं द्वारा अपने इष्ट देवी-देवताओं को श्रद्धापूर्वक अर्पित किया गया धन अरबी भाषा के शिक्षण के लिए जाएगा. यह स्वीकार्य नहीं है.
फैसले की निंदा करते हुए, उन्होंने बोर्ड से इसे वापस लेने और केरल की जनता से कृतसंकल्प होकर इसका प्रचंड विरोध करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा सहस्र वर्षों की परम्परा में प्राप्त भारतीय आध्यात्मिक धरोहर का अमूल्य भंडार है और इसका शिक्षण त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में अनिवार्य किया जाना चाहिए.