नई दिल्ली. झारखंड ने मार्च 2021 में 11वीं हॉकी इंडिया सब-जूनियर पुरुष राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतकर इतिहास रच दिया था. हालांकि, उन्होंने पहले ही बहुत अधिक महत्वपूर्ण और शानदार जीत हासिल की थी. लगभग प्रत्येक सदस्य ने टीम में जगह बनाने से पूर्व कठिनाइयों के खिलाफ लंबा संघर्ष किया है.
टीम में सबसे प्रतिभाशाली खिलाड़ी 17 वर्षीय मनोहर मुंडू ने छोटी आयु में ही अपने पिता को खो दिया था. अपने आस-पास के अधिकांश बच्चों की तरह ही उसने भी बांस की छड़ी से हॉकी खेलता था.
यह सब वही था जो अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. हमारा फैसला था कि हम पूरा दिन खेलेंगे और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हमारे पास कोई विशेष उपकरण नहीं है. खेलो इंडिया यूथ गेम्स में अपने मैच के बाद यह बात कही.
प्रत्येक जिले में 25 नवोदित एथलीटों की सहायता करने के लिए खूंटी में स्थित आवासीय खेल विद्यालय के झारखंड आवासीय बालक हॉकी प्रशिक्षण केंद्र में भर्ती होने के बाद भी मनोहर की परेशानी कम नहीं हुई.
उसके पास अभी भी जूते या हॉकी स्टिक खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. यह सब उसे किसी ना किसी के सहयोग से पूरा करना था. सौभाग्य से, मनोहर के कोच एक उदार व्यक्ति थे. उन्होंने उसे जूते की पहली जोड़ी और एक अच्छी हॉकी स्टिक खरीद कर दी. उसके दोस्त के परिवार ने भी एक बार सहायता की थी.
अभिषेक मुंडू के पिता एक पुलिसकर्मी हैं. लेकिन वह इतना नहीं कमाते थे कि अपने बेटे को प्रशिक्षण के लिए एक अकादमी में भेज सकें. यहां तक कि रोजाना आने-जाने का खर्च भी उनके बस से बाहर था. उनके कोच मनोहर टोपनो ने अभिषेक के पिता को बेटे को आवासीय विद्यालय में भेजने के लिए किसी तरह से मनाया.
टोपनो कहते हैं कि इस क्षेत्र में काफी गरीबी है. कोविड लॉकडाउन के दौरान प्रत्येक खिलाड़ी को सभी प्रकार के काम करने थे और अभी भी लड़कों को अपने परिवार का सहयोग करने के लिए काम करना पड़ता है. यहां पर वयस्क भी ऐसे जीवन को संतुलित नहीं कर सकते, जिस तरह से ये लड़के मेहनत करते हैं.
दुगा मुंडा बहुत कम उम्र में आवासीय विद्यालय में आ गया था. उसने बताया कि मैं खेत के काम में अपने पिता की मदद करने के लिए घर वापस जाता रहता हूं. हम मजदूर नहीं रख सकते. मेरे माता-पिता मेरी प्रगति को देखकर खुश होते हैं, लेकिन वहां गुजारा करना अभी भी काफी मुश्किल काम है.
हालांकि, राज्य के भीतर गरीबी के अलग-अलग रंग हैं. इसी हॉकी टीम में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय और टाटा अकादमी के लड़के एसी कमरों में रहते हैं और प्रतिदिन 450 रुपये का आहार प्राप्त करते हैं. हालांकि, आवास केंद्र के लड़कों को 150 से 175 रुपये प्रतिदिन का आहार मिलता है.
फिर भी वे एक ही मैदान पर खेलते हैं और पदक हासिल करते हैं. वे वीडियो देखकर और टूर्नामेंट में भाग लेकर आधुनिक सुविधाओं एवं रणनीतियों के बारे में सीखते हैं.
खेलो इंडिया गेम्स में बॉयज और गर्ल्स दोनों टीमें सेमीफाइनल तक पहुंची.