लॉकडाउन में दिन भर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं से मिलकर बस्ती के अभावग्रस्त लोगों की सूची बनाना, सेवा भारती कार्यकर्ताओं की कठिनाइयों का निराकरण करना तथा अभावग्रस्त समाज बंधुओं से मिलकर उनको राशन बांटना लगभग यही दिनचर्या 15-20 दिनों से चल रही थी.
चूंकि उज्जैन में कोरोना के मरीज लगातार बढ़ रहे थे, इसलिए परिवार के सभी लोगों तथा मित्र मंडली का मुझ पर लगातार घर से ज्यादा बाहर नहीं निकलने के लिए तथा स्वयं को कोरोना से सुरक्षित रहने की लिए दबाव बनाना भी स्वाभाविक ही था. पर, सत्य तो यह है कि मुझे समाज के बन्धु बांधवों की सेवा करते अपार सुख की अनुभूति हो रही थी, बस यही कारण था कोरोना का भय मेरे को सेवा कार्य से रोक न सका…
एक दिन किसी अज्ञात व्यक्ति का फोन आया. उसने कहा मैं विनोद बोल रहा हूँ , “आप सेवा भारती के कार्यकर्ता हैं?” मैने सहजता से उत्तर दिया, “हाँ जी, मैं सेवा भारती का कार्यकर्ता हूँ बोलिये”.
वो बड़े नम्र स्वर में बोला, मैं मध्यप्रदेश पुलिस में पदस्थ और आप की तरह ही दिन रात समाज हित में ड्यूटी कर रहा हूँ. तीन दिन हो गए घर नहीं जा पाया. पुलिस लाइन में क्वार्टर पर पत्नी और बच्चे हैं. कल पत्नी का कई बार फोन आ चुका है कि राशन का सामान नहीं है.. कुछ करो, आ जाओ, तुम्हीं को देश की पड़ी है… तुम्हारे साथ के सभी लोग तो ऐसे ड्यूटी नहीं कर रहे जैसे तुम…. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करूं ? मैंने फेसबुक पर वायरल सेवा भारती की हेल्पलाइन सेवा से आपका नंबर निकाल कर आपको फोन लगाया है, मुझे भरोसा है कि आप मेरी मदद जरूर करोगे …”
मुझ पर तो मानो समाज सेवा का भूत सवार ही था. मैंने कहा, आप पुलिस लाइन के क्वार्टर का नंबर भेज दो. उसने बड़े आशा भरे स्वर में कहा – जी, मैं भेजता हूँ. मैने राशन के पैकेट गाड़ी में रखे और चल पड़ा पुलिस लाइन की ओर…. मुझे और भी घरों में राशन देने जाना था तो उस रास्ते में जहां-जहां राशन देना था, उनका क्रम जमाने में लगा था. इतने में साथी बोला – भाई साहब, पुलिस लाइन आ गयी.
मैंने उसके फ्लैट के बाहर पहुँचकर दरवाजा खटखटाया. विनोद जी की पत्नी के दरवाजा खोलते ही मैंने कहा – मैं सेवा भारती का कार्यकर्ता हूँ. आपके घर पर राशन देने आया हूँ”. ऐसा कहकर मैने पैकेट दरवाजे के पास रख दिया. बहन जी ने बड़े आश्चर्य से कहा, “वो कह तो रहे थे, सेवा भारती के कार्यकर्ता हैं. राशन देने जरूर आएंगे. पर, आप इतनी जल्दी आ जाएंगे इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा”.
मैने कहा ” विनोद जी देश और समाज हित में दिन – रात ड्यूटी कर रहे हैं तो क्या मैं उनके परिवार के लिए इतना भी नहीं कर सकता. कुछ और राशन की आवश्यकता हो तो बता देना, ऐसा कहकर मैं अपने घर की ओर निकल पड़ा….
रास्ते में विनोद जी का फोन आया कि वो पत्नी समान के रुपये देना भूल गयी. आप मुझे बता दीजिए कितने हुए मैं भिजवा दूंगा. मैने कहा कि ये सेवा भारती की योजना है, हम पैसे नहीं लेते. ये समाज भी तो मेरा परिवार है. हाथ मेहनत करके पेट भरते हैं तो पेट पर कोई अहसान थोड़े ही करते हैं. ये हाथ का कर्तव्य है और पेट भरने से ही तो हाथ में ताकत आती है, सारा शरीर मजबूत बनता है, ऐसे ही सभी के प्रयास से ये देश कोरोना को हराएगा.
“भाई साहब, आप अपनी ड्यूटी कीजिये और जब तक मुझमें सामर्थ्य है, मैं अपनी ड्यूटी करता रहूँगा.” ऐसा कहकर फोन काटते हुए सेवा भारती के कार्यकर्ता पुनः समाज सेवा की धुन में रमते निकल चले. फिर किसी परिवार की चिंता हरने…..फिर किसी परिवार के चहरे पर मुस्कान बिखेरने….उज्जैन की यह घटना आपको बताते समय मन में यही भाव पल्लवित हो रहे कि…..किस रज से बनते हैं ऐसे कर्मवीर….!