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विधर्मी हुई हिन्दू महिला की सनातन धर्म में वापसी की कहानी का सबक

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स्टोरी ऑफ अ रिवर्ज़न – हाउ आई कन्वर्टड टू इस्लाम एंड रिटर्नड टू सनातन धर्म

दशक भर पहले, केरल का कासरगोड़ जिला हिन्दुओं, विशेषकर हिन्दू लड़कियों, के विधर्मी होकर इस्लाम में जाने से सम्बन्धित एक के बाद एक कई समाचार आने के बाद सुर्खियों में आया था. विधर्मी हुई हिन्दू लड़कियों में से ही एक थी श्रुति, जो केरल के ब्राह्मण परिवार से थी. इस्लाम अपनाने पर श्रुति को नया नाम मिला ‘रहमत’. हालांकि बाद में श्रुति फिर से सनातन धर्म में लौंटी, किन्तु यह सब कैसे सम्भव हुआ, उसके अनुभव क्या रहे? यही सब श्रुति ने बताया है अपनी मार्मिक व रोचक पुस्तक, स्टोरी ऑफ अ रिवर्जन – में. जो एक आत्मकथा के रूप में लिखी गई है. यह पुस्तक एक ऐसे भुक्तभोगी की कहानी है, जो स्वयं केरल में इस्लाम और ईसाई मिशनरी द्वारा चलाए जा रहे संगठित धर्म परिवर्तन कुचक्र का शिकार हुई है.

यह आत्मकथा वर्ष २०१८ में मलयालम में सामने आई थी, जिसे केरल में तो लोकप्रियता मिली. किन्तु दुर्भाग्य से केरल के बाहर इस पुस्तक के बारे में कोई नहीं जान पाया. अब यह पुस्तक स्टोरी ऑफ अ रिवर्ज़न के नाम से अंग्रेजी में प्रकाशित हुई है जो निश्चित रूप से राष्ट्रीय फलक पर एक विमर्श का केन्द्र बनेगी. श्रुति की जीवन यात्रा का साक्षात्कार करते समय एक पाठक के रूप में आप स्तब्ध कर देने वाले कई विषयों को जानेंगे.

पहला यह, कि हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में हमारे घरों से लेकर शैक्षणिक संस्थाओं तक प्रणालीगत ज्ञान का घोर अभाव है. इसके कारण युवा भ्रम की अवस्था में रहते हैं. इस्लामिक जेहादी और ईसाई मिशनरी इसी भ्रमित अवस्था का लाभ उठाकर हिन्दू युवा मन को भेदने में लग जाते हैं ताकि उन्हें विधर्मी किया जा सके.

दूसरा, मुस्लिम सहकर्मी और तथाकथित मुस्लिम मित्र एक संयोजित ढंग से ऐसे हिन्दू युवा मन पर इस्लाम का एक गहरा आवरण चढ़ाने लगते हैं जो अपने हिन्दू धर्म के ज्ञान के अभाव में अपनी पहचान के संकट से जूझ रहे होते हैं.

तीसरा, इन युवा हिन्दुओं को भ्रमित कर फाँसने के लिए वीडियो क्लिप्स, पुस्तकों और लेखों के रूप में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है. जिसका बड़े व्यवस्थित ढंग से प्रयोग किया जा रहा है.

चौथा, जब एक हिन्दू लड़की विधर्मी होकर इस्लाम अपनाती है. तभी वह कठोर वास्तविकता को जान पाती है. असंख्य हिन्दू जो ज्ञान के अभाव में या झूठे प्रलोभन में आकर मुस्लिम बने, वे फिर से हिन्दू धर्म में आना चाहते हैं. किन्तु उनकी सहायता के लिए किसी प्रकार का सम्बल या आश्रय तन्त्र सामान्यतया उपलब्ध नहीं होता.

धर्म के प्रति समझ के अभाव को इंगित करते हुए श्रुति लिखती हैं, “हिन्दू होते हुए भी मुझे अपने धर्म, परम्पराओं और इसके आलौकिक विचार में कोई प्रतिबद्धता नहीं थी. वहीं मेरे मुस्लिम मित्र अपने इतिहास, (एकतरफा) दर्शन के बारे में बताते थे. उनको मेरे धर्म के बारे में सुनकर मैं अचंभित हो जाती कि मेरी तुलना में उन्हें कितनी जानकारी है.”

अपने मुस्लिम मित्रों और सहकर्मियों से प्राप्त काल्पनिक घृणायुक्त सामग्री से धीरे-धीरे श्रुति को मन्दिर और हिन्दू परम्पराओं के प्रति घृणा होने लगी. वह नमाज करना सीखने लगी. और फिर अक्तूबर २०१३ में उसने अपना घर छोड़ दिया और मल्लापुरम पहुंची. जहाँ एक सभा में उसे विधिवत मुस्लिम बनाया गया. उस सभा में मुसलमान बनने वाली श्रुति अकेली हिन्दू महिला नहीं थी, बल्कि अन्य ६५ हिन्दू महिलाओं को मुसलमान बनाया गया. जिनमें गर्भवती और १६-१७ वर्ष की लड़कियां भी थीं. इनको लाने वाले इनके मुस्लिम पति और मित्र थे.

श्रुति आगे बताती है कि किस प्रकार आर्ष विद्या समाजम् के सम्पर्क में आने के बाद उनकी सहायता से वह वापस हिन्दू धर्म में लौट पाई.

यह पुस्तक वास्तव में पठनीय है, विशेषकर उन युवाओं के लिए जो हिन्दू धर्म को लेकर भ्रमित रहते हैं.

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