नई दिल्ली. ड्रैगन की नीयम और नीति हमेशा से ही विस्तारवाद की रही है. कम्युनिस्ट चीन पहले किसी न किसी माध्यम से पड़ोसी देशों को अपने चंगुल में फंसाना, फिर धमकाना और उन पर अपना सिक्का जमाने की नीति पर चलता रहा है. तिब्बत और हांगकांग को तो लगभग निगल ही चुका है, अब उसके पंजे ताइवान को जकड़ने को बेचैन हैं.
चीन कभी ताइवान के हवाई क्षेत्र में अपने लड़ाकू विमान भेजकर उसे डराता है तो कभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पूरी बेशर्मी से उसके मुद्दों को अपने देश का अंदरूनी मामला बताता है. कोई अन्य देश ताइवान को एक देश के तौर पर संबोधित करता है तो ड्रेगन उसे ‘अपने आंतरिक मामलों में दखल’ देने से बाज आने की चेतावनी देता है. पिछले दिनों जापान को ताइवान को अलग देश कहने पर दो बार टोका.
लेकिन, ताइवान की स्वाभिमानी राष्ट्रपति त्साई इंग वेन पूरी दमदारी के साथ अपने देश की सीमा बढ़ाने को आतुर रहने वाले चीन को उसकी सही स्थिति से अवगत करा चुकी हैं और वायुसेना के माध्यम से ताइवान के आसमान में मंडराने की उसकी धमकियों का कड़ा जवाब दे चुकी हैं.
21 अगस्त को ताइवान ने एक और दमदार बयान दिया. रायटर के समाचार के अनुसार, ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने कहा कि चीन तालिबान की तर्ज पर उनके देश को कब्जाना चाहता है. चीन एक लंबे वक्त से ताइवान पर दावा जताता आ रहा है और इस पर कब्जे का मन बनाए हुए है. आज अफगानिस्तान में उभरे हालात के बीच ताइवान में चीन के कुछ इसी तरह की हरकत करने की मंशा को लेकर बहस छिड़ी हुई है.
उधर, चीन का मीडिया भी ऐसी बातें फैला रहा है कि काबुल का जो हाल हुआ है, उससे यह साफ है कि अमेरिका पर भरोसा करके ताइवान को कुछ हासिल नहीं होगा.
अमेरिकी विदेश विभाग ने पिछले दिनों चीन से कड़े शब्दों में कहा था कि वह ताइवान पर बेवजह दबाव बनाना बंद कर दे. अमेरिका के बयान के बाद ताइवान के विदेश मंत्री वू ने अमेरिका का धन्यवाद किया था. अब वू ने कहा कि चीन तालिबान की तरह ही ताइवान पर कब्जा करना चाहता है. हालांकि चीन की अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.