विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान में 21 पुस्तकों का विमोचन, साहित्यकारों को मिला सम्मान
कुरुक्षेत्र. विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा पुस्तक विमोचन एवं साहित्यकार सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें 21 पुस्तकों का विमोचन किया गया. कार्यक्रम में पुस्तकों के लेखकों को ‘संस्कृति भवन-साहित्य सेवा सम्मान’ से सम्मानित किया गया. इस अवसर पर मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी, मुख्य अतिथि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ. गोविन्द प्रसाद शर्मा थे. अध्यक्षता केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आगरा की निदेशक डॉ. बीना शर्मा ने की. वि.भा.सं.शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, वि.भा.अ.भा. शिक्षा संस्थान के अध्यक्ष दुसी रामकृष्ण राव, संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर भी मंचासीन रहे. उन्होंने विमोचनार्थ पुस्तकों का संक्षिप्त परिचय कराया. कार्यक्रम का संचालन संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने किया.
डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि साहित्य समाज के मानस को बदलता है. आज सद्साहित्य पढ़ने की रुचि कम हो रही है. घर की लाइब्रेरी कम हो रही है. अब घर में लोग ग्रंथालय नहीं बनाते. लेखक मनुष्य की गहराइयों को बताने वाला साहित्य लिखते थे. हर कहानी के पीछे उद्देश्य होता था. प्रेमचंद फकीरी में जीते थे. लेकिन कहानी ऐसी लिखते थे, जिससे समाज को दिशा मिल जाए. कहानी, गीत, कविताएं, लेख मनुष्य के अंतर्मन की गहराइयों को बढ़ाने के लिए होते थे. आज उन श्रेष्ठ लेखकों के नाम तक लोग भूलते जा रहे हैं. अच्छी पुस्तकें बंद हो रही हैं. पढ़ने की आदत छूट रही है. इसके लिए आवश्यक है कि अपने-अपने घर में कम से कम ग्रंथालय अवश्य बनाएं. अपने दिन का कुछ समय पुस्तकें पढ़ने के लिए लगाएं.
उन्होंने ‘सा विद्या या विमुक्तये’ श्लोक का अर्थ बताते हुए कहा कि शिल्प व्यक्ति को बांधता है और विद्या मुक्त कराती है. ज्यों-ज्यों व्यक्ति आत्मकेन्द्रित होता है, बंधता जाता है. ज्यों-ज्यों विकेन्द्रित होता है, खुलता जाता है. मुक्ति विकेन्द्रित होने में है. मनुष्य के अंदर के हृदय की गहराइयां मनुष्य को विकेंद्रित करती हैं. ग्रंथ मनुष्य के अंदर की विकेन्द्रीकरण की सामग्री है. उन्होंने कहा कि पुस्तकें ज्ञान देती हैं. ज्ञान व्यक्ति को विवेक देता है, विवेक बताता है कि क्या करणीय और क्या अकरणीय है.
मुख्य अतिथि डॉ. गोविन्द प्रसाद शर्मा ने कहा कि पुस्तक ज्ञान के विकल्प को पैदा करती है. पुस्तकों का समाज में श्रेष्ठ स्थान है. पुस्तकों से व्यक्ति को श्रेष्ठ बनने का विचार परिष्कृत होता है. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी में पुस्तक पढ़ने की अभिरुचि कम हो रही है, लेकिन विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा प्रकाशन कार्य में निरंतर लगे रहने का विचार सराहनीय है. पुस्तक पढ़ने के स्वभाव को जीवित रखना है तो नवीन पुस्तकों का आना अत्यंत आवश्यक है. अन्यथा हमारी अभिरुचियां, हमारा ज्ञान सीमित होता चला जाएगा.
डॉ. बीना शर्मा ने आज की पीढ़ी में पुस्तकें पढ़ने की रुचि न होने पर कहा कि अब बड़ों पर भी यह दायित्व है कि कम से कम वे अपने घर में ग्रंथालय अवश्य बनाएं और पुस्तकें पढ़ने की आदत डालें क्योंकि बच्चे उनको पढ़ते देखेंगे तो कहीं न कहीं वे भी उससे प्रेरित होंगे और उनमें भी पढ़ने की रुचि जागृत होगी. यह सच है कि जो कोना पहले पुस्तकों से भरा रहता था, आज वह आधुनिक संसाधनों एवं उपहारों से भर गया है. इससे हमारी भौतिक प्रगति जितनी भी हुई हो, लेकिन अध्यात्म की दृष्टि से बहुत पीछे हो गए हैं. कार्यक्रम के अंत में संस्थान के अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी ने आभार अभिव्यक्ति दी.
21 पुस्तकों का हुआ विमोचन
बृजभाषा में उपन्यास पूंछरी कौ लौठा, शिक्षा का स्वदेशी भाव, कड़वा मुंह मीठी बातें, देश के लिए जीना सीखें, ज्ञान की बात-1, पूर्णस्य पूर्णमादाय…, बाल केन्द्रित क्रिया आधारित शिक्षा, काव्य गीत बावनी, सुर सारंग, भारतीय रसायन शास्त्र के भीष्म पितामह प्रफुल्लचन्द्र राय, दायित्वबोध – छात्रों में विकास के लिए विद्यालयीन गतिविधियां, विभीषिका, राभा जाति की लोक कथाएं, अनुभूत शैक्षिक प्रयोग, भारत की गौरव गाथा, भारतीय शिक्षा के मूल तत्व-मराठी, भारतीय जीवन दृष्टि एवं वैश्विक संदर्भ में भारत की भूमिका, सफर जारी है, हम सरस्वती पुत्र का तेलुगु अनुवाद, न दीप जले न फूल चढ़े, देव नदी गंगा.
साहित्यकारों को मिला ‘संस्कृति भवन-साहित्य सेवा सम्मान’
डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी (दिल्ली), डॉ. विकास दवे (मध्य प्रदेश), वासुदेव प्रजापति (राजस्थान), देवेन्द्रराव देशमुख (छत्तीसगढ़), रवि कुमार (कुरुक्षेत्र), गोपाल माहेश्वरी (मध्य प्रदेश), राजकुमार सिंह (उत्तर प्रदेश), रत्न चंद सरदाना (कुरुक्षेत्र), देवेनचन्द्र दास सुदामा (असम), डॉ. अजय शर्मा (उत्तर प्रदेश), डॉ. वंदना गुप्ता (मध्य प्रदेश), कै. माधवराव कुलकर्णी (महाराष्ट्र), डॉ. बीना शर्मा (उत्तर प्रदेश), डॉ. ओ.एस.आर. मूर्ति (आंध्र प्रदेश), डॉ. मंजरी शुक्ला.