4 दिसंबर – 1971, भारत-पाकिस्तान सीमा, भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट की ‘A’ कंपनी के सिर्फ 120 जवान लौंगेवाला में तैनात थे उस रात, जब पाकिस्तान ने हमला किया. रात करीब 9 बजे मेजर चांदपुरी को अपने गश्ती दल से सूचना मिली कि पाकिस्तान की एक बड़ी सेना लौंगेवाला चौकी की तरफ बढ़ रही है. मेजर चांदपुरी ने अपने कमांडिंग ऑफिसर को संदेश भेज मदद मांगी.
CO ने स्पष्ट कह दिया – सुबह पौ फटने से पहले कोई मदद भेजना संभव नहीं. लौंगेवाला में तैनात उस टुकड़ी के पास फौजी ट्रक या गाड़ियां तक न थीं, इसलिए मेजर चांदपुरी को आदेश मिला कि पोस्ट छोड़ के पैदल ही रामगढ़ की ओर कूच करो. मेजर के पास सिर्फ 2 एंटी टैंक गन्स थीं, कुछ मोर्टार और शेष राइफल्स. जबकि सामने दुश्मन के पास 45 शरमन टैंक्स और 500 से ज़्यादा बख्तरबंद गाड़ियां और 2000 से ज़्यादा सैनिक…. लौंगेवाला चौकी पर एक पूरी आर्मड ब्रिगेड ने हमला किया था और उनका इरादा लौंगेवाला से आगे बढ़कर रामगढ़ और फिर जैसलमेर तक कब्जा करने का था.
मेजर चांदपुरी का निर्णय पोस्ट नहीं छोड़ेंगे, बल्कि लड़ेंगे
मेजर चांदपुरी ने अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाया और निर्णय लिया कि हम अपनी पोस्ट नहीं छोड़ेंगे, बल्कि लड़ेंगे. पाकिस्तान आगे बढ़ा आ रहा था और इधर सब एकदम शांत था.
मेजर ने तब तक इंतज़ार किया, जब तक दुश्मन एकदम नज़दीक नहीं आ गया. यानि सिर्फ 100 मीटर दूर और फिर तभी भारत की एंटी टैंक गन्स गरजीं और 4 पाकिस्तानी टैंक हवा में उड़ गए.
पाकिस्तानी फ़ौज ठिठक गयी. हमला इतना अचानक और इतना तीव्र हुआ कि पाकिस्तानी हतप्रभ. तभी उनका सामना A कंपनी की कंटीली तारों की फेंसिंग से हुआ. उनको लगा पूरे इलाके में माइंस बिछी हैं. दुश्मन वहीं रुक गया. इधर, चांदपुरी की एंटी टैंक गन्स ने दो और पाकिस्तानी टैंक फोड़ दिए तो उनपर लदे डीज़ल के बैरल धूं-धूं कर जलने लगे. खूब तेज़ रोशनी हो गयी और उसमे पूरी पाकिस्तानी सेना रात के अंधेरे में भी साफ साफ दिखने लगी. सिर्फ दो घंटे में हमारे सैनिकों ने 12 Tank उड़ा दिए थे. लौंगेवाला चौकी का सबसे बड़ा लाभ ये था कि वो एक ऊंचे टीले पर थी और पाकिस्तानी सेना नीचे थी, जिस पर ऊपर से आसानी से निशाना लगाया जा सकता था. 120 सैनिकों ने पूरे 6 घंटे पाकिस्तान को रोके रखा. तब तक पौ फट गई. उजाला होते ही एयर फोर्स ने हमला किया और 22 टैंक्स और 100 से ज़्यादा बख़्तरबंद गाड़ियाँ उड़ा दीं. सभी गाड़ियों पर डीज़ल लदा था क्योंकि उनका इरादा तो जैसलमेर तक चढ़ने का था. पूरी युद्ध भूमि में 100 से ज़्यादा चिताएं जल रही थीं. पाकिस्तानी अपनी 500 से ज़्यादा बख्तरबंद गाड़ियां छोड़ कर पैदल ही भागे.
दुनिया भर के सैन्य इतिहास में लौंगेवाला का युद्ध इस मामले में अनोखा माना जाता है कि सिर्फ 120 सैनिकों ने सिर्फ 2 M40 एंटी टैंक गन्स, चंद मोर्टार और MMG गन्स के सहारे एक पूरी आर्मर्ड ब्रिगेड को रात भर न सिर्फ रोके रखा, बल्कि कायदे से मारा.
युद्ध के बाद पाकिस्तान में एक जांच कमीशन बैठा, जिसने पाक के 18 Div के कमांडर मेजर जनरल मुस्तफा को क्रिमिनल नेगलिजेंस का दोषी पाया और उसको नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. जबकि मेजर चांदपुरी को दूसरे सबसे बड़े सम्मान महावीर चक्र से सम्मानित किया गया और वो ब्रिगेडियर पद से रिटायर हुए.
पाकिस्तानी जांच कमीशन ने पाया कि पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी योजना के ही हमला कर दिया. उन्हें न रास्ते का ज्ञान था और न टेरेन का. ज़्यादातर टैंक और गाड़ियां इसलिए शिकार हुए कि वो रेत में फंस गए थे… पाकिस्तानी जनरल को ये आभास ही न था कि जब भारतीय एयर फोर्स मारेगी तो कहां छिपेंगे ?
उन्होंने एक अनजान इलाके में रात में हमला करने की गलती की. इसके विपरीत मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को पता था कि उनकी टुकड़ी एक ऐसे टीले पर तैनात है, जिसका डिफेंस बहुत तगड़ा है. ऊंचाई पर बैठ कर दुश्मन से लड़ना आसान होता है. पाकिस्तानी जनरल ने इतने महत्वपूर्ण तथ्य को नज़रअंदाज़ किया और बिना सोचे समझे ही हमला कर दिया और कुत्ते की मौत मरे.
युद्ध खत्म होने के 3 हफ्ते के भीतर दुनिया भर से सैन्य अधिकारी, अफसर और जनरल लौंगेवाला युद्ध का अध्ययन करने आने लगे… ये युद्ध दुनिया भर की मिलिट्री एकेडमी में पढ़ाया जाता है. पाकिस्तान ने क्या-क्या गलतियां कीं और भारतीय सेना ने क्या पराक्रम दिखाया?