शंकर शरण
हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लव-जिहाद के खतरे से निपटने के लिए एक अध्यादेश जारी किया है. इसके अलावा अन्य दो-तीन राज्यों में इसके खिलाफ कानून बनाने की तैयारी चल रही है. विडंबना देखिये कि इसे कुछ लोग हिंदुत्ववादियों का दुष्प्रचार बता रहे हैं. जबकि, वे यह नहीं देख रहे कि वर्षों से कैथोलिक बिशप काउंसिल, सीरो मालाबार चर्च जैसी ईसाई संस्थाएं भी इस पर चिंता जता रही हैं. लव-जिहाद का मुद्दा सबसे पहले दिग्गज कम्युनिस्ट नेता वीएस अच्युतानंदन ने दस साल पहले उठाया था. वह तब केरल के मुख्यमंत्री थे. फिर कांग्रेस मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने 25 जून, 2012 को विधानसभा में बताया कि विगत छह साल में वहां 2,667 लड़कियों को इस्लाम में धर्मांतरित कराया गया. केरल हाईकोर्ट ने भी 2009 में लव जिहाद पर ही सुनवाई करते हुए कहा था कि झूठी मोहब्बत के जाल में फंसाकर धर्मांतरण का खेल केरल में वर्षों से संगठित रूप से चल रहा है. स्वयं पुलिस रिकॉर्ड ने विगत चार वर्षों में प्रेम-जाल से जुड़े चार हजार ऐसे धर्मांतरणों का संकेत किया. तब हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया था कि वहां ‘इस्लामिक पॉपुलर फ्रंट की छात्र शाखा ‘कैंपस फ्रंट संगठित रूप से इसमें संलग्न थी. वह शैक्षणिक परिसरों में मुस्लिम युवकों को फैंसी कपड़े, मोटरसाइकिल और मोबाइल फोन देकर इसी काम के लिए सक्रिय रखता था. गैर-मुस्लिम लड़कियों को रिझाने, फिर नकली शादी या लोभ, दबाव, धमकी सहित किसी तरह धर्मांतरित कराने पर उन लड़कों को वह नकद इनाम भी देता था. कुछ समय पहले उत्तराखंड हाईकोर्ट और राजस्थान हाईकोर्ट ने भी अलग-अलग मामलों में कहा था कि विवाह के मामले में जबरन धर्मांतरण रोका जाना चाहिए. उन्होंने अंतरधार्मिक विवाह के लिए एक महीने पहले नोटिस देना अनिवार्य करने की बात कही. सुप्रीम कोर्ट ने भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को हादिया मामले में जबरन धर्मांतरण की जांच करने के आदेश दिए थे.
हालांकि यह केवल भारत की बात नहीं. सशस्त्र जिहाद की तरह लव-जिहाद भी अंतरराष्ट्रीय समस्या है. इंग्लैंड में सिक्ख समुदाय यह खतरा दो-तीन दशकों से झेल रहा है. मुस्लिम युवक स्वयं को सिक्ख बताते हुए सिक्ख लड़कियों को बरगलाकर धर्मांतरित कराते हैं. एक ब्रिटिश अखबार के अनुसार पुलिस कई विश्वविद्यालयों में ऐसे उग्रवादी इस्लामी संगठनों पर नजर रखती है, जो ‘आक्रामक धर्मांतरण कराने में लगे थे. उन संगठनों के लड़के सिक्ख और हिन्दू लड़कियों को धर्मांतरित कराने में छल-प्रपंच, बदनाम करने, डराने से लेकर मार-पीट तक करते थे. इसके कारण वहां कई लड़कियों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी. लव-जिहाद के संगठित अभियान का वर्णन ‘व्हाई वी लेफ्ट इस्लाम नामक पुस्तक में भी है. इसमें वैसे लव-जिहादियों के संस्मरण हैं, जो क्रिश्चियन लड़कियों को बरगलाकर मुसलमान बनाते रहे थे. वे उन लड़कियों को अपने जाल में फंसाने के लिए झूठी मोहब्बत का दिखावा करने से लेकर, ब्लैकमेलिंग और खुद को ईसाई बताकर शारीरिक संबंध बनाने तक कई प्रपंचों का इस्तेमाल करते थे. जितने रसूखदार परिवार की लड़की के साथ यह प्रपंच किया जाता, इनाम की रकम उतनी ही बड़ी होती थी. मिस्र में तो ईसाई लड़कियों को धर्मांतरित कराने पर गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला जाता है.
जाहिर है देश-दुनिया में ऐसा करने वाले युवक नि:संदेह मजहबी काम कर रहे हैं. तब इसे प्रेम क्यों कहना चाहिए? यह जिहाद है, क्योंकि वे छल-कपट आदि जैसे भी हो काफिरों को मुसलमान बना रहे हैं, जो उनका मजहबी निर्देश है. अत: वैयक्तिक या धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर झूठे नारे और अधूरी बातें पढ़ाकर हिन्दू युवाओं को विचारहीन छोड़ देना घोर पाप है. हिन्दुओं को दूसरे धर्मावलंबियों के समान अपनी शिक्षा की स्वतंत्रता नहीं है. इसीलिए हिन्दू युवा धर्महीन बने रह जाते हैं. वे न स्वधर्म के बारे में जानते हैं, न परधर्म को. फलत: किसी भी आक्रामक मतवाद का शिकार होने के लिए अरक्षित बने रहते हैं, जबकि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जब हिन्दू धर्म से कोई अलग होता है तो केवल एक हिन्दू ही कम नहीं होता, बल्कि हिन्दुओं का एक शत्रु बढ़ता है! श्री अरविंद ने भी एकतरफा धर्मांतरण की छूट को राष्ट्रीय एकता के लिए घातक बताया था. ऐसी गंभीर सीखों से हिन्दू बच्चों को वंचित रखना उन्हें डूबने के लिए खुला छोड़ देने जैसा ही है.
चूंकि ईसाई, हिन्दू या सिक्ख लड़कियां स्वेच्छा से इस जाल में फंसती हैं, इसलिए यह मुख्यत: कानूनी मुद्दा नहीं है. कानून बनाकर जबरदस्ती या धोखा रोक सकते हैं, लेकिन अंतरधार्मिक शादियों में हिन्दू लड़के या लड़की के स्वेच्छा से मुसलमान बनने पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. यद्यपि कोई मुस्लिम यदि ईसाई, हिन्दू या बौद्ध बने तो उसे शरीयत कानून के नाम पर मार डाला जाता है या उस पर यह खतरा सदैव बना रहता है. इस चीज को कड़ाई से प्रतिबंधित करना होगा. जीवन के हरेक क्षेत्र को शरीयत के दबावों से दृढ़तापूर्वक मुक्त रखना हमारे राजनीतिक वर्ग की जिम्मेदारी है.
इसमें एक सबसे बड़ी गलती हिन्दू समाज को शैक्षिक, धार्मिक मामलों में कानून हीन बनाए रखना है. भारत में हिन्दुओं को अपने मंदिरों और अपनी शिक्षा संस्थाओं पर दूसरों के समान अधिकार नहीं है. इसीलिए हिन्दू बच्चे दूसरे धर्मावलंबियों की तुलना में वैचारिक रूप से असहाय से होते हैं. उन्हें शिकार बनाने में जिहादियों, कम्युनिस्टों या ईसाई एनजीओ आदि विविध तत्वों को आसानी होती है. यह आसानी उन्हें गैर-हिन्दुओं को पकडऩे में नहीं होती. हिन्दू लड़के-लड़कियां विवेकहीन, सूखी, भौतिकवादी शिक्षा के कारण धर्म-संस्कृति की मूलभूत बातों से भी अनजान रहते हैं. पक्षपाती सेक्युलर शिक्षा के कारण वे नहीं जान पाते कि कई मतवादों की मूल प्रतिज्ञाएं हिन्दू हितों के विरुद्ध हैं.
फलत: वे अपने जीवन में अहितकारी निर्णय लेते रहते हैं. इसकी दारुण विडंबना को समझने के लिए प्रसिद्ध कन्नड़ लेखक भैरप्पा का चर्चित उपन्यास ‘आवरण पढ़ना श्रेयस्कर होगा.
वस्तुत: स्वयं हिन्दू सेक्युलर-वामपंथियों द्वारा लव-जिहाद पर चिंता को ‘दुष्प्रचार बताकर खारिज करना भी उसी विडंबना का एक प्रमाण है. यह हमारे अंग्रेजी मीडिया में भी प्राय: दिखता है. इसलिए लव-जिहाद पर कानून से अधिक बुनियादी काम शिक्षा प्रबंध और मंदिर प्रबंध में हिन्दू विरोधी पक्षपात खत्म करना है. यहां सभी समुदायों के लिए एक जैसे शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अधिकार होने चाहिए. इसका अभाव ही अनेक गंभीर समस्याओं की जड़ है. इसके लिए हमारे नेतागण दोषी हैं, लेकिन वे हिन्दू जनता को ही दोष दे-देकर अपनी विभाजक, पक्षपाती नीतियों को छिपाते हैं. यह हिन्दुओं पर तिहरी चोट है, जो बंद होनी चाहिए.
(लेखक राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर हैं)