देवीदास देशपांडे
भारत के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से बोलते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योगी श्री अरविंद का उल्लेख किया. यह बहुत ही उल्लेखनीय और शानदार बात कही जानी चाहिए. इसका कारण यह है कि जब हम अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, तो हम हमेशा क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों और राजनीतिक नेताओं का उल्लेख करते हैं. लेकिन भारत मूल रूप से एक आध्यात्मिक देश है. भारत का स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को आता है और यह दिन योगी श्री अरविंद और रामकृष्ण परमहंस के समाधि दिवस का है, इसकी हमें भनक भी नहीं होती. नियति का कितना बड़ा संयोग है कि भारत का स्वतंत्रता दिवस इन दो क्रांतिकारी साधु पुरुषों के जीवन से संबंधित तारीख से जुड़ा हो. जिन्होंने, आधुनिक भारत के मन में अपनी अस्मिता का रोपण किया! फिर भी, कहना होगा कि इसकी आज तक उपेक्षा ही हुई.
इसीलिए प्रधानमंत्री द्वारा श्री अरविंद का उल्लेख करना बहुत उचित है. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री ने कहा, कि श्री अरविंद के सपने को पूरा करना हमारी जिम्मेदारी है.
श्री अरविंद का सपना क्या था?
इस उत्तर के दो पहलू बताए जा सकते हैं. एक पहलू है क्रांतिकारी अरविंद घोष का और दूसरा पहलू योगी श्री अरविंद का है. अपने जीवन के शुरुआती वर्ष इंग्लैंड में बिताने के बाद भी, अरविंद घोष दिल से पूर्ण भारतीय थे. उनके समय के अधिकांश नेता अंग्रेजों से याचना और विनती करते हुए स्वतंत्रता की मांग रहे थे. उनका तर्क था, कि ब्रिटिशों का शासन खराब है और हम हमारा कामकाज बेहतर करेंगे. लेकिन अरविंद घोष पूर्ण स्वराज की मांग करने वाले पहले नेता थे. “ब्रिटिश शासन अच्छा हो या बुरा, हमें अपने देश पर शासन करने का स्वाभाविक अधिकार है. हमारी मातृभूमि पर हमारा अधिकार है. ब्रिटिश विदेशी हैं, इसलिए उन्हें जाना होगा,” यह उनका आग्रह था. यह विचारधारा उन लोगों का सही उत्तर है जो कहते हैं, कि “भारत असहिष्णु है, इसलिए अन्य देशों को हस्तक्षेप करना चाहिए” या “हम देश छोड़कर चले जाएंगे.”
दूसरा हिस्सा है योगी श्री अरविंद के सपने का. योगी अरविंद ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के अवसर पर आकाशवाणी को एक संदेश दिया था. इस संदेश में योगी अरविंद कहते हैं, “यह मेरे लिए खुशी की बात है कि जिस स्वतंत्रता के लिए कभी मैंने प्रयास किए थे, वह मेरे जन्मदिन पर आए. लेकिन भारत विभाजित है. भारत की अखंडता पूरी होने तक यह स्वतंत्रता अधूरी मानी जाएगी. भारत एक अखंड राष्ट्र है और इसे कभी नहीं तोड़ा जा सकता.” वे आगे कहते हैं, “मनुष्य की तरह हर राष्ट्र की एक नियति होती है. भारत की नियति आध्यात्मिक नियति है और विश्व को आध्यात्मिकता की रोशनी दिखाना भारत का कर्तव्य है.”
इस संदेश को ध्यान में रखते हुए, हम दो अर्थ निकाल सकते हैं. एक है – जिसे हम पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर कहते हैं, उस हिस्से को वापस और भारत की अखंडता की दिशा में एक कदम उठाना. दूसरा हिस्सा है आध्यात्मिकता के रूप में भारत का विश्वगुरु बनना.
यहां कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं. एक यह, कि श्री अरविंद ने 1947 में भविष्यवाणी की थी कि पाकिस्तान नहीं रहेगा. केवल पच्चीस वर्षों में इसकी अनुभूति की गई और पाकिस्तान के टुकडे हुए. दूसरा यह, कि 6 साल पहले मोदी ने लाल किले से ही बलूचिस्तान में संघर्ष का उल्लेख किया था. आज हम देख रहे हैं कि बलूचिस्तान आज मिट रहा है और कल ऐसी स्थिति पैदा हो गई है. क्या छह साल बाद प्रधानमंत्री मोदी फिर से ऐसा ही कोई संदेश नहीं दे रहे?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह, कि प्रधानमंत्री के इस भाषण में कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि थी. जहां एक ओर इस चीनी वायरस ने पूरी दुनिया में कहर ढा रखा है, विश्व के अधिकांश देशों ने मानसिक सहारे के लिए भारतीय संस्कृति का पल्लू थामा है. नमस्ते जैसी भारतीय परंपराओं को विश्व अपना रहा है. इस पृष्ठभूमि में जब प्रधानमंत्री मोदी ने श्री अरविंद के सपने को पूरा करने के लिए अपने दृढ़ संकल्प की घोषणा की, तो इसका अर्थ काफी गहरा बन जाता है.
प्रकट रूप से कुछ कहे बिना मनचाहा संदेश देने में प्रधानमंत्री मोदी कुशल हैं. इस बार भी एक वाक्य में श्री अरविंद का उल्लेख करके उन्होंने कितना महान अर्थघटन किया है.