अश्विन चतुर्दशी कृ. 2077 (16 सितम्बर, 2020) प्रातः 6:30 बजे संघ प्रचारक सुशील जी की पुण्यात्मा ने परलोक गमन किया. सुशील जी विगत 53 वर्षों से संघ के प्रचारक थे, विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए वर्तमान में जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र का काम दिल्ली में रहकर देख रहे थे. प्रचारक जीवन दक्षिणी दिल्ली से प्रारम्भ हुआ, तत्पश्चात हरियाणा में रहे.
बचपन से ही संघ की शाखा से आपका परिचय हो गया व उकलाना मंडी हरियाणा के वरिष्ठ संघ कार्यकर्ता कस्तूरी लाल जी के सान्निध्य में संघ जीवन को आत्मसात किया. प्रारम्भिक शिक्षा राजकीय उच्च विद्यालय उकलाना मंडी में हुई. तत्पश्चात अपने मामा जी के पास मुज्जफरनगर (उत्तर प्रदेश) से हिंदी तथा अंग्रेजी विषय में स्नातकोत्तर किया. मेरठ विश्वविद्यालय में अंग्रेजी प्रवक्ता की नौकरी छोड़ 1967 में संघ के प्रचारक निकले. आपातकाल के कालखण्ड में जब अधिकांश समाचार-पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था, तब प्रशासन की दृष्टि से बचते हुए जनता को जागरूक करने के लिए सत्य का उद्घाटन करने वाले अनेक समाचार-पत्र बांटने का महत्वपूर्ण काम किया.
हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं पर समान अधिकार रखते थे, किसी प्रकार का दिखावा पसंद नहीं था. सुशील जी कहा करते थे कि “मृत्यु का कोई भय क्यों हो, जबकि यह तो परमेश्वर से मिलने का सबल माध्यम है, बस अपना जीवन ऐसा हो कि मृत्यु शैया पर जब उस जीवन को याद करूँ तो कोई क्षण ऐसा स्मरण न हो जिसमें, मैं अपने आदर्श अथवा कर्म से विरत रहा और न ही समाज का कोई ऋण शेष हो.” इसी के चलते आपने अपनी देह भी दान कर दी थी, परन्तु रुग्णता के चलते सम्भव नहीं हो पाया.
पूरे हरियाणा में प्रवास के साथ-साथ संघ मार्ग के संपादन से लेकर डाकखाने तक पहुंचाने का कार्य स्वयं करते थे. पत्रिका के विशेषांक निकालना, विज्ञापन के लिए सभी स्थानों पर प्रवास करना, सब सहज था. पत्रिका का वितरण प्रान्त भर में होने लगा जो आज “म्हारा देश म्हारी माटी” के नाम से हरियाणा के अधिकतर गांवों में जाती है. कर्म ही जीवन है, इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति आपके जीवन से होती थी. 2014 में दीनदयाल उपाध्याय जी के विचारों का प्रवाह जनमानस तक पहुंचाने के लिए “समर्पण न्यास” का गठन किया, इसके माध्यम से दीनदयाल जी की जीवनी प्रकाशित करने का विचार किया गया. अपनी समृद्ध लेखनी से अत्यंत सरल भाषा में उनके जीवन प्रसंगों को अनेक महानुभावों के संस्मरणों से आलोकित करके तीन ही महीनों में “अपने दीनदयाल जी” की 10000 प्रतियां प्रकाशित करवा कर कार्यकर्ताओं के हाथों में पहुंचा दीं.
हर मास की 7 तारीख़ को आप समाचार समीक्षा लिखने के अभ्यस्त थे और इस समीक्षा लिखने के क्रम को आपने मृत्युपर्यंत निभाया. इसी समाचार समीक्षा को एक पुस्तक के रूप में कार्यकर्ताओं के हाथों में एक सन्दर्भ ग्रन्थ के रूप में पहुँचाने का बीड़ा उठाया और वर्ष 2008 से 2017 तक की समाचार समीक्षा को “साक्षी है समय” वर्ष 2020 जुलाई मास में प्रकाशित कराया जो चिरकाल तक सभी को उनकी लेखनी से परिचित कराती रहेगी.
सुशील जी का जन्म 1942 में उकलाना मंडी, हिसार हजारी लाल जी के चौथे और सबसे कनिष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था. 78 वर्ष की आयु में भी आपकी जीवटता, कर्मशीलता, अध्ययनशीलता व सदैव संघ-मार्ग पर चलते रहना सब को प्रेरणा देता रहेगा. आपके जीवन से प्राप्त प्रेरणा से “म्हारा देश म्हारी माटी” सदैव जनजागरण के काम में लगी रहेगी.
“मातृ-मंदिर का समर्पित दीप मैं, चाह मेरी यह कि मै जलता रहूँ”