पुणे. शहजाद पूनावाला ने कहा कि सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण मीडिया का प्रजातंत्रीकरण हो रहा है. हर एक व्यक्ति के हाथ में मीडिया की ताकत है. ऐसे समय में “राष्ट्र प्रथम” का महत्त्वपूर्ण सूत्र नजरअंदाज ना हो, मीडिया जगत व हर व्यक्ति को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए. शहजाद विश्व संवाद केंद्र पश्चिम महाराष्ट्र और डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी द्वारा आयोजित ‘देवर्षि नारद पत्रकारिता पुरस्कार’ वितरण समरोह में संबोधित कर रहे थे.
अहदनगर के ‘दिव्य मराठी’ पत्र के ब्यूरो चीफ अनिरुद्ध देवचक्के, ज़ी२४ तास न्यूज चैनल के वरिष्ठ पत्रकार अरुण मेहेत्रे, ‘दै. पुढारी’ की पत्रकार सुषमा नेहरकर और सोशल मीडिया में आशुतोष मुगळीकर को ‘देवर्षी नारद पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया.
सावित्री बाई फुले पुणे विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग प्रमुख डॉ. संजय तांबट और पुणे श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष पांडुरंग सांडभोर का कार्यक्रम में विशेष रूप से सत्कार किया गया.
उन्होंने स्वातंत्र्य पूर्व काल और स्वातंत्र्योत्तर काल में मीडिया की भूमिका पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि स्वातंत्र्य पूर्व काल में मीडिया ने जनजागृति और लोगों में चैतन्य निर्माण करने का काम किया. स्वदेश व स्वराज्य की भावना भारतीयों में दृढ़ता से जागृत करने का कार्य किया था. स्वतंत्रता के बाद मीडिया जगत का स्वरूप बदलता गया. मुठ्ठी भर लोगों के हाथ में पूरी सत्ता केंद्रित हो गई. इस कारण नागरिकों की आकांक्षा और उनकी समस्याओं को माध्यमों में स्थान मिलना कठिन होता गया. सोशल मीडिया के कारण मीडिया जगत का प्रजातंत्रीकरण हो रहा है. पूनावाला ने कहा कि सोशल मीडिया पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकता, जनसामान्य सहजता से उपयोग कर रहा है. वैसे तो ये सकारात्मक है, लेकिन उसमें कुछ चुनौतियाँ भी सामने आकर खड़ी हो गई हैं. सोशल मीडिया का सकारात्मक और विवेकपूर्ण इस्तेमाल बढ़ाने के लिए समाज के नेतृत्व को प्रयास करना होगा. फेक न्यूज़, और अफवाहों को रोकने के लिए हमेशा सजग रहना आवश्यक है.
देवर्षि नारद जी को आद्य पत्रकार माना जाता है. वह स्वयं मौके पर उपस्थित होकर संपूर्ण सूचना प्राप्त करने के बाद ही उस पर भाष्य करते थे. चरित्र (कैरेक्टर), संवाद (कम्युनिकेशन), कौतुहल (क्युरिऑसटी), स्पष्टता (क्लैरटि), कटिबद्धता (कमिटमेंट), सभ्यता व संस्कृति (सिविलटी एंड कल्चर), सृजन क्षमता (क्रिएटिविटी), ये सात तत्व उनकी पत्रकारिता के केंद्र में थे. समय कितना ही आगे जाए, तंत्रज्ञान कितना भी बदले, लेकिन ये तत्त्व चिरस्थायी हैं. इसलिए आज के मीडिया कर्मियों को नारद जी के इन तत्त्वों को अपनाना चाहिए.
कार्यक्रम में अभय कुलकर्णी ने कहा कि राजनैतिक स्वतंत्रता हमने ७५ साल पहले प्राप्त की, लेकिन मानसिक रूप से स्वतंत्रता मिलना अभी भी शेष है. आज मानसिक परतंत्रता से आजादी की आवश्यकता है.
डेक्कन एजूकेशन सोसायटी की भूमिका स्पष्ट करते हुए डॉ. शरद कुंटे ने कहा कि १३८ साल से हमारी संस्था राष्ट्रीय विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रही है. स्वतंत्रता पूर्व काल से हम महाविद्यालयों में राष्ट्रीय विचारों का प्रसार कर रहे है. स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने युवाओं में देशभक्ति का बीज बोने का कार्य इसी फर्ग्युसन महविद्यालय से प्रारंभ किया था. स्वत्व की संवेदना जगाने के लिए हमारी संस्था काम कर रही है.