करंट टॉपिक्स

फिल्में जीवन को दिशा देने वाली होनी चाहिएं

Spread the love

जयपुर. प्रसिद्ध पटकथा लेखक और फिल्म निर्माता आकाशादित्य लामा ने कहा कि पटकथा लेखन एक चरणबद्ध प्रक्रिया है. इसके कुछ मौलिक सिद्धात हैं, जिन्हें जानना जरूरी है. कहानी या कथा किसी की भी हो सकती है. पटकथाकार केवल उस कहानी को एक निश्चित उद्देश्य यानि फिल्मों के निर्माण के लिए लिखता है, जो पटकथा (स्क्रीन प्ले) कहलाती है.

फिल्म निर्माता लामा रविवार को भारतीय चित्र साधना एवं अरावली मोशन्स राजस्थान के सयुंक्त तत्वाधान में आयोजित दो दिवसीय फिल्म निर्माण कार्यशाला को वर्चुअल संबोधित कर रहे थे. उन्होंने प्रतिभागियों को फिल्म स्क्रिप्ट की बारीकियों से अवगत कराया. इस दौरान लघु फिल्मों की स्क्रीनिंग भी की गई.

फिल्म समीक्षा की पद्धति और सार्थकता को प्रसिद्ध फ़िल्मकार अशोक चौधरी ने रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि फिल्म एप्रीसिएशन फिल्म की व्यापक समझ है. सिनेमा जीवन का चित्रण है, यह मनोरंजन का नहीं अभिव्यक्ति का माध्यम है. फिल्में जीवन को दिशा देने वाली होनी चाहिए. फिल्म लेखन में चित्रों का समन्वय अधिक और डायलॉग कम होना चाहिए. सिनेमा की भाषा में डायलॉग जीवन की भाषा जैसे होने चाहिए. गीत के माध्यम से भावनाओं को अभिव्यक्त भारतीय परंपरा में किया जाता है.

सुपवा रोहतक के फिल्म विभाग अरविंद चौधरी ने प्रतिभागियों को अभिनय कला को प्रभावी बनाने के टिप्स दिए. पात्र के हिसाब से हमारा अभिनय भी होना चाहिए. इसके लिए हमारे शरीर का संचालन भी वैसा ही होना चाहिए.

फिल्म की भाषा- व्याकरण पर रामनरेश ने कहा कि प्रतिभागी फिल्म की भाषा और व्याकरण को गहराई से समझें और विभिन्न रचनात्मक एवं संवेदनशील विषयों पर फिल्म बनाए. कार्यशाला का उद्देश्य विद्यार्थियों को सिनेमा की ताकत और गंभीरता से परिचित कराना है.

फ़िल्म निर्माण कार्यशाला के संयोजक सुधांशु टाक ने बताया कि भारतीय चित्र साधना तथा अरावली मोशंस द्वारा विभिन्न स्थानों पर चयनित प्रतिभागियों के साथ कुल फिल्म 12 कार्यशाला होनी हैं, जिनमें 6 कार्यशालाएं सम्पन्न हो चुकी हैं. चुनिंदा प्रतिभागियों को मुंबई में पंद्रह दिवसीय कार्यशाला में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *