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नारायणपुर – राजनीतिक दबाव में आरोपियों को बचाने का प्रयास, जनजाति समाज को ही फंसाने की साजिश

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रायपुर, छत्तीसगढ़. बस्तर संभाग मिशनरियों की अनैतिक गतिविधियों एवं हिंसक हमले के चलते साम्प्रदायिक तनाव से गुजर रहा है. मिशनरियों से जुड़े लोगों ने जिस तरह जनजाति समाज के नागरिकों पर जानलेवा हमले किए, उसने पूरे संभागीय क्षेत्र में शांति भंग कर दी.

नारायणपुर में हुई हिंसा की घटना का प्रभाव बस्तर के सभी सातों जिलों में देखा जा रहा है, जिसके बाद संभाग के कई क्षेत्र अब पुलिस छावनी में तब्दील हो चुके हैं. लेकिन इन सब के बीच जिला नारायणपुर की पुलिस और प्रशासन ने जो रवैया अपनाया है, वो ना सिर्फ अनुचित दिखाई दे रहा है बल्कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पुलिस और प्रशासन किसी राजनीतिक शक्ति के दबाव में दोषियों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं.

जनजातीय ग्रामीण घटना के बाद से ही बार-बार कह रहे हैं कि धर्मांतरित ईसाई समूह द्वारा ईसाई पादरी के नेतृत्व में जनजातीय ग्रामीणों पर जानलेवा हमला किया गया था. इस कथन को अस्पताल में उपचार कराने पहुंचे घायल जनजाति ग्रामीणों ने भी दोहराया.

इसके बाद जब जनजाति समाज द्वारा नारायणपुर जिला पुलिस अधीक्षक को शिकायती पत्र लिखा गया, उसमें भी यह उल्लेख किया गया कि धर्मान्तरित समूह द्वारा हमले किए गए.

पत्र का विषय था ‘नव धर्मांतरित ईसाइयों द्वारा प्राणघातक हमला किये जाने विषयक’, इसका साफ अर्थ होता है कि ग्रामीणों ने खुलकर मुद्दे की गंभीरता से पुलिस प्रशासन को अवगत कराया और अपने शिकायती पत्र में घटना के पीछे के कारण का भी उल्लेख किया.

लेकिन इसके बाद पुलिस ने जो किया, वह पूरी तरह इंगित करता है कि संभवतः सरकार के दबाव में पुलिस आरोपियों को बचाने का प्रयास कर रही है. नारायणपुर पुलिस ने दर्ज की गई एफआईआर में लिखा है कि यह पूरी घटना ग्रामीणों के बीच एक ‘आपसी विवाद’ है.

एफआईआर में उल्लिखित शब्द हैं – ‘दिनांक 01.01.23 को ग्राम गोर्रा में नव वर्ष मिलन का कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें शिकायकर्ता सहित गांव के अन्य लोग भी शामिल होने गए थे. सुबह करीब 11:00 बजे कार्यक्रम में आपसी विवाद होने कारण गांव के रामदेर दुग्गा, लच्छन उसेंडी, सुरेश दुग्गा और रामलाल दुग्गा ने मां-बहन की अश्लील गाली-गलौज की और जान से मारने की धमकी देते हुए वहां उपस्थित सुधराम उसेंडी, झन्नुराम दुग्गा और बहादुर ध्रुव के साथ मारपीट की.’

एफआईआर बताती है कि इस पूरे मामले को बड़ी चालाकी से हेरफेर कर आरोपियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है. दरअसल जनजाति समाज ने अपने आवेदन पत्र में स्पष्ट तौर पर नव धर्मान्तरित समूह द्वारा की गई घटना का उल्लेख किया था. इसके अलावा जनजातीय समाज ने स्पष्ट रूप से कहा था कि नव धर्मान्तरित समूह ने पास्टर के नेतृत्व में जनजातियों पर जानलेवा हमला किया. जनजाति समाज ने लच्छुराम, बहादुर, सोप सिंह, प्रेमलाल, रजमन, विजय कचलाम, पुन्नू राम और साधु सहित अन्य लोगों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी. पत्र की पावती भी नारायणपुर थाना से ली थी. लेकिन, इस सब के बावजूद भी आरोपियों को बचाने के लिए अन्य लोगों पर मामला दर्ज कर इसे ‘ग्रामीणों का आपसी विवाद’ बताया गया. पुलिस ने अपने अनुसार कुछ नाम चुने और उन्हें इस मामले में आरोपी बनाया, लेकिन जनजातियों की शिकायत पर कोई कार्यवाई नहीं हुई.

पुलिस प्रशासन की ओर से दोषियों को बचाने के इस कृत्य को अंजाम देते और जनजातीय समाज द्वारा की गई शिकायत के आधार पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं करते देख, स्थानीय जनजाति समाज ने शांतिपूर्ण ढंग से जिला मुख्यालय नारायणपुर में प्रदर्शन करने की योजना बनाई थी, इस दौरान भी ईसाई समूह द्वारा उन्हें उकसाने का प्रयास किया गया.

पूरे मामले का बारीकी से विश्लेषण करें तो यह भी प्रतीत होता है कि पुलिस प्रशासन ने समय रहते जनजातीय समाज की शिकायत को गंभीरता से नहीं लिया, और ना ही आरोपियों पर त्वरित कार्रवाई की, उल्टे राजनीतिक शक्तियों के दबाव में आरोपियों को बचाने में जुट गई.

इसी का परिणाम हुआ कि नारायणपुर में एक और हिंसा की घटना देखने को मिली. जिसमें जिला पुलिस अधीक्षक को भी चोट लगने की खबर है, जिन्हें कथित रूप से जनजाति ग्रामीणों ने घायल किया है.

घटना को लेकर भी नारायणपुर पुलिस ने 4 एफआईआर दर्ज की है. जिसे संवेदनशील बताया है, ताकि इसकी पूर्ण जानकारी ना निकाली जा सके. इन 4 केसों में 5 आरोपियों को नामजद किया गया है, लेकिन सबसे प्रमुख बात यह है कि इसमें 100 अन्य ‘अज्ञात’ आरोपी लिखे गए हैं.

कहा जा रहा है कि, एफआईआर नारायणपुर पुलिस ने पादरी ‘जोमोन’ के कहने पर दर्ज की है, जो एक बार फिर इस बात की ओर इंगित करता है कि पुलिस प्रशासन ‘मिशनरी लॉबी’ के प्रभाव में कार्य कर रहा है.

इसके पीछे एक बड़ा षड्यंत्र यह भी हो सकता है, राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग करने वाली ‘लॉबी’ भोले-भाले जनजातीय ग्रामीणों को एफआईआर में नाम शामिल करने का भय दिखाकर उन्हें चुप करा सकती है.

यह पूरी गतिविधि प्रथम दृष्टया ना सिर्फ संदिग्ध नजर आ रही, बल्कि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि राज्य सरकार की मशीनरी भी आरोपियों को बचाने में लगी हुई है.

नारायणपुर थाने में दर्ज अपराध क्रमांक 4/23 में फरियादी के रूप में जिला पुलिस अधीक्षक स्वयं हैं, ऐसे में उनके नेतृत्व में चल रही जांच को निष्पक्ष भी नहीं माना जा सकता है. आखिर कोई कैसे स्वयं शिकायतकर्ता और जांचकर्ता हो सकता है?

घटना से कुछ दिन पूर्व नारायणपुर में तनाव की स्थिति के बीच क्षेत्र के कांग्रेसी विधायक चंदन कश्यप ने ईसाई समाज के कार्यक्रम में शामिल होकर कहा था कि उनकी पार्टी (कांग्रेस पार्टी) और उनका स्वयं का समर्थन पूरी तरह से ईसाई समाज के साथ है.

ऐसे में वर्तमान घटनाक्रम के बाद जिस तरह से दोषियों को बचाने और जनजाति ग्रामीणों को ही फंसाने की साजिश रची है, तो इसके पीछे राज्य में मौजूदा सरकार के राजनीतिक दबाव को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता है.

क्या है पूरा घटनाक्रम?

नारायणपुर सहित बस्तर संभाग के सभी जिलों में ईसाई मिशनरी द्वारा अवैध मतान्तरण की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है.

इन अनैतिक गतिविधियों का विरोध करने वाले जनजातीय नागरिकों को निशाना बनाते हुए 31 दिसंबर और 1 जनवरी को ईसाई समूह की भीड़ ने पास्टर के नेतृत्व में जनजातीय ग्रामीणों पर धारदार हथियारों से हमला किया, जिसके बाद कई ग्रामीणों को अपनी जान बचाकर घायल अवस्था में भागना पड़ा. घटना के बाद ग्रामीणों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन इसके बावजूद पुलिस ने मामले को गंभीरता से ना लेते हुए, ईसाइयों को ही बचाने का प्रयास किया.

पुलिस प्रशासन की संदिग्ध गतिविधियों को देखते हुए जनजाति समाज ने नारायणपुर जिला मुख्यालय में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की योजना बनाई, इस दौरान उकसावे के कारण हिंसक घटना हुई.

इनपुट साभार –  नैरेटिव वर्ल्ड

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