रायपुर. नारायणपुर जिले में स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों पर हिंसक हमले की घटना के पश्चात पूरे छत्तीसगढ़ में जनजाति समाज के भीतर आक्रोश है.
घटना के बाद जनजातीय समाज की शिकायत पर जिस तरह से पुलिस एवं प्रशासन ने उचित कार्रवाई नहीं की, और जनजाति समाज के ही लोगों को मारपीट एवं चर्च में तोड़फोड़ के मामले में जेल भेज दिया, उसके बाद समाज में जनाक्रोश देखा जा रहा है. दरअसल, पुलिस ने आरोपी मिशनरीज़ को बचाते हुए पीड़ित जनजातियों को ही आरोपी बना दिया.
पक्षपातपूर्ण रवैये को देखते हुए जनजाति समाज ने प्रशासन के खिलाफ नारायणपुर-कोंडागांव मार्ग में धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया, प्रदर्शन के बाद प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. सर्दी के मौसम में जनजाति समाज के हजारों लोगों ने सड़क पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया.
पुलिस ने हिंसा के मामले में पादरी की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कर 16 जनजाति नागरिकों को जेल भेज दिया है, जिसके विरोध में आसपास के 30 गांवों के 3000 से अधिक जनजातीय ग्रामीणों ने धरना प्रदर्शन करने की योजना बनाई थी. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पुलिस निर्दोष जनजातीय ग्रामीणों को बेवजह किसी भी समय घरों से उठाकर जेल में डाल रही है.
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पुलिस एकतरफा रूप से जनजातियों पर कार्रवाई कर रही है, और असली दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. मांग की कि पुलिस को तत्काल निर्दोष गरिकों पर कार्रवाई करना बंद करना होगा. इस मांग को लेकर हजारों की संख्या में ग्रामीण अनिश्चितकालीन धरना देने की योजना के साथ भटपाल चौक पर एकत्रित हुए थे. ग्रामीणों की भीड़ में लगभग सभी वर्ग के लोग शामिल हुए, जिसमें दुधमुँहे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक मौजूद थे.
स्थानीय ग्रामीणों का आक्रोश देखने के बाद जिला प्रशासन और जिला पुलिस के अधिकारियों ने तत्काल जनजातीय ग्रामीणों से बात की और उन्हें समझाने का प्रयास किया. जिला पुलिस ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि किसी भी निर्दोष पर कार्रवाई नहीं की जाएगी.
पुलिस के आश्वासन के बाद ग्रामीणों ने एक ज्ञापन सौंपकर प्रशासन और पुलिस से मांग की कि उनकी बातों को गंभीरता से लिया जाए. जनजातियों के आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने यह भी कहा कि वह जनजातियों के हित में कार्य कर रही है.
इनपुट – नेरेटिव वर्ल्ड