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बातों से नहीं मानते लातों के भूत – अंतिम भाग

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     –  नरेन्द्र सहगल

• चीन के समर्थन में कांग्रेस और कम्युनिस्ट
• सारा देश सरकार एवं सेना के साथ
• सेना का मनोबल मत तोड़ो

सीमावर्ती गलवान घाटी में चीन के आक्रांता सैनिकों के शर्मनाक दुस्साहस का वीरोचित उत्तर देते हुए भारत के सैनिकों ने चीन की सरकार और फौज को समझा दिया है कि यह 2020 का नया भारत है, 1962 वाला भारत नहीं है और ना ही उस समय जैसी घुटने टेक सरकार ही है.

भारत की सरकार, सेना और भारतवासी एकजुट होकर चीन की चुनौति को स्वीकार करके उसकी कुटिल चालों के विफल करने का मन बना चुके हैं. पूरे देश में चीनी समान की होली जलाई जा रही है. इसके साथ ही चीन के चालबाज शासकों की अर्थियां भी जल रहीं हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही आवाज आ रही है – ‘चीन को सजा दो.’ ‘भारतीय जवानों की शहादत का बदला लो.’ सेनाएं पूरी तरह तैयार हैं.

गत दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सम्पन्न सर्वदलीय बैठक में सभी दलों ने एक स्वर में कहा – ‘इस संकटकाल में हम सब सरकार और सेना के साथ हैं.’ सभी ने भारतीय सैनिकों का उत्साह बढ़ाते हुए चीन को सबक सिखाने की बात कही. प्रधानमंत्री जी ने भी सारे देश को विश्वास दिलाते हुए साहसपूर्वक कहा – भारत की तीनों सेनाएं एक साथ एक्शन करने की क्षमता रखती हैं. शीघ्र ही चीन की नाक में नकेल डाली जाएगी.

परन्तु, इस सर्वदलीय बैठक में वामपंथी दल और कांग्रेस के नेताओं ने अपनी जन्मजात दलगत राजनीति का परिचय देते हुए भारत की सरकार एवं सेना को ही कटघरे में खड़ा कर दिया. इन नेताओं ने चीन और उसकी सेना के अनैतिक, असैनिक और दगाबाजी वाले कुकृत्य की निंदा में एक शब्द भी नहीं बोला. भारतीय सैनिकों की बहादुरी पर प्रश्नचिन्ह लगाकर चीन की सरकार एवं सेना के समर्थन की नीति अख्तियार करते हुए इनको रत्ती भर भी शर्म नहीं आई.
सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस और वामपंथियों के व्यवहार और इनके नेताओं (विशेषतया राहुल गांधी) के निरंतर मोदी विरोधी बयानों से यह बात स्पष्ट होती है कि चीन की सरकार, सेना वहां की कम्युनिस्ट पार्टी और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी कांग्रेस में जुगलबंदी है. यह सभी नरेन्द्र मोदी अर्थात् भारत को नीचा दिखाने के लिए एक साथ हैं.

सर्वदलीय बैठक में कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी ने अपनी चीन समर्थक विचारधारा पर चलते हुए कहा – भारत की सरकार को ‘पंचशील’ के रास्ते पर चल कर विवाद को निपटाना चाहिए. सर्वविदित है कि 1962 में इसी पंचशील के सिद्धातों (नेहरू-चाऊ एन लार्ड समझौता) की पीठ में छुरा घोंप कर चीन ने भारत पर आक्रमण किया था. इसका अर्थ यह भी है कि सीताराम येचुरी चाहते हैं कि भारत चीन पर कोई भी सैन्य कार्रवाई ना करे.

सर्वविदित है कि 1962 के युद्ध में इन्हीं कम्युनिस्ट नेताओं ने घोषणा कर दी थी कि भारत ने ही चीन पर आक्रमण किया है. कलकत्ता में बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए थे. ‘माओ हमारा चेयरमैन’. इन लोगों ने असम में चीन की फौज (रैड गार्डज) का स्वागत करके भारतीय सेना के कदमों में रोड़े अटकाए थे. आज भी यह लोग चीन की आलोचना ना करके भारत की सरकार और सेना की निंदा कर रहे हैं. कश्मीर के मुद्दे पर भी इन लोगों ने सदैव पाकिस्तान की भाषा ही बोली है. भारत और भारतीयता का विरोधी इन साम्यावादियों को सदैव चीन और रूस की ही नीतियां पसंद रहती हैं.

#BharatChinaFaceOff – भारत के साथ क्यों खड़े नहीं होते वामपंथी?    

सर्वदलीय बैठक में शामिल दूसरे कम्युनिस्ट नेता डी. राजा ने तो यहां तक कह दिया कि इस वर्तमान विवाद के पीछे अमरीका का हाथ है. आज अमरीका समेत प्रायः सभी बड़े देश चीन का विरोध करते हुए भारत के साथ खड़े हो रहे हैं. ऐसे समय में डी. राजा द्वारा चीन के समर्थन में बयान देना और अमरीका को दोषी ठहराना क्या दर्शाता है? अपने जन्मजात अमरीका विरोध की एवज में अपने ही शत्रु देश के प्रति हमदर्दी क्यों दिखाई जा रही है?
देश की सुरक्षा के विषय पर सम्पन्न बैठक में कांग्रेस की अध्यक्ष ने तो राजनीतिक शिष्टाचार और समय की आवश्यकता को ठुकरा कर सीधे सरकार एवं सेना को भारतीय जवानों की ‘मौत’ का जिम्मेदार ठहरा दिया. खुफिया एजेंसियां फेल हो गईं. चीन की घुसपैठ कब हुई थी? सरकार की नीतियां गलत हैं. भारतीय सेना ने समर्पण कर दिया इत्यादि सवाल पूछ कर यही सिद्ध कर दिया कि उन्हें राजनीतिक व्यवहार, सैन्य रणनीति, भूगोल और इतिहास की जानकारी नहीं है. अपनी ही पार्टी की सरकार के कारनामों की तनिक भी जानकारी नहीं है.

भारतीय कांग्रेस के आधुनिक अवतार ने तो शर्म की सारी सीमाएं लांघ कर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘सरेंडर मोदी’ कह दिया है अर्थात् भारत का प्रधानमंत्री कायर और पराजित है. सम्भवतया यह कह कर राहुल गांधी पंडित जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और डॉक्टर मनमोहन सिंह की घुटने टेक सैन्य रणनीति का ही परिचय दे रहे थे.

कांग्रेस यह भी भूल गई कि 1947 में भारत का विभाजन स्वीकार करने से लेकर अंत तक कांग्रेस की सरकारों ने चीन और पाकिस्तान के साथ की गई संधियों और समझौतों में सदैव भारत की जमीन को शत्रु देशों के हवाले करके भारतीय सेना का अपमान किया है. (इसका वर्णन मैंने पहले के दो लेखों में कर दिया है) वर्तमान अवतार ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, उनका राजनीतिक सभ्यता से कुछ भी लेना देना नहीं है.

प्रारंभ से लेकर आज तक के इतिहास पर नजर डाली जाए तो स्पष्ट होगा कि साम्यावादी दल एवं कांग्रेस ने सदैव शत्रु देशों का ही पक्ष लिया है. बार-बार जनता के हाथों मार खाने, चुनावों में पराजित होने के बावजूद भी इनकी देश विरोधी मानसिकता पर अकुंश नहीं लग रहा है. बेटे राहुल और माता सोनिया को तो यह भी समझ में नहीं आ रहा कि उनकी घिनौनी राजनीति से देश और कांग्रेस दोनों का ही नुकसान हो रहा है. अच्छा होता कि इन दोनों ने भारत और कांग्रेस के इतिहास के दो चार पन्ने पढ़ लिए होते. ……………..…समाप्त

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं.

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