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जम्मू कश्मीर पर नेहरु का ‘ब्लंडर’

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नई दिल्ली. संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान गत दिनों लोकसभा में जम्मू कश्मीर से जुड़े 2 ऐतिहासिक विधेयकों पर चर्चा हुई. चर्चा के पश्चात ‘जम्मू कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक 2023’ (Jammu Kashmir Reorganisation (Amendment) Bill, 2023) और ‘जम्मू कश्मीर आरक्षण संशोधन अधिनियम 2023’ (Jammu Kashmir Reservation (Amendment) Bill, 2023) लोकसभा में पारित हो गया. लोकसभा से दोनों बिल पास होने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा गया. लोकसभा में बिल पर चर्चा के दौरान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 1947-48 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा जम्मू कश्मीर को लेकर की गई गलतियों का जिक्र कर कांग्रेस पर तंज कसा.

नेहरु की गलती नहीं, ब्लंडर था

गृहमंत्री ने जम्मू कश्मीर पर जवाहरलाल नेहरु की गलतियों को महज गलती नहीं, बल्कि ‘ब्लंडर’ बताया. इतना सुनते ही लोकसभा से कांग्रेस सदस्यों ने हंगामा करते हुए वॉकआउट कर लिया. हालाँकि गृहमंत्री यहीं नहीं रुके, उन्होंने बाकायदा रेफरेंस के साथ जम्मू कश्मीर पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की गलतियों को कोट भी किया. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर ने जवाहर लाल नेहरू की 2 गलतियों की वजह से समस्याओं को झेला है. नेहरु की गलती नहीं, बल्कि वह नेहरु का ब्लंडर था. इनमें पहली गलती सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर को हासिल किए बिना ‘संघर्ष विराम’ की घोषणा करना और फिर कश्मीर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाना शामिल था. यदि जवाहरलाल नेहरू ने सही कदम उठाए होते, तो आज POJK हमारा हिस्सा होता और हमें यह बिल लेकर आने की जरुरत भी नहीं होती.

गृहमंत्री ने नेहरु द्वारा शेख अब्दुल्ला को लिखे एक पत्र का जिक्र करते हुए कहा, ‘जम्मू कश्मीर के मामले को लेकर UN सिक्योरिटी काउंसिल में जाना ही नेहरु की सबसे बड़ी गलती थी. यह बात नेहरू ने खुद शेख़ अब्दुल्ला को 1952 में लिखे अपने एक पत्र में कही है. पत्र को कोट करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, ‘पत्र में नेहरु कहते हैं कि – “यूएन के कुछ अनुभवों के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि वहां से कुछ संतोषजनक नतीजे की उम्मीद नहीं की जा सकती. मैंने जनमत संग्रह का उल्लेख नहीं किया क्योंकि मुझे यह स्पष्ट हो गया है कि जनमत संग्रह के लिए जरुरी परिस्थितियां हमें कभी नहीं मिलेंगी. 1948 के आखिरी में हमने सीजफायर को मंजूरी दी थी. मुझे यह एक अच्छा फैसला लगा, लेकिन इस मसले को ठीक से नहीं निपटा गया. हम सीजफायर पर और विचार करके कुछ बेहतर मार्ग निकाल सकते थे. हालांकि, यह सब भूतकाल की गलतियाँ है.”[1]

[1] नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी, जवाहरलाल नेहरू कलेक्शन – J.N. (S.G.) 143 I

अब जब यहाँ बात नेहरू की स्वीकारोक्ति को लेकर हुई तो 24 जुलाई, 1952 को जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर संसद में दिए गए उनके भाषण पर भी गौर करना चाहिए. नेहरु अपने भाषण में कहते हैं कि ”दिसंबर में जब हमें पता चला कि हम पाकिस्तानी सेना का सामना कर रहे हैं, तब हमने महसूस किया कि मामला उससे भी ज्यादा बढ़ जाने की आशंका है, जितना की हमने कल्पना की थी. उससे भारत-पाकिस्तान के बीच पूरा युद्ध छिड़ जाने की आशंका है.”

फिर वो कहते हैं, ”जब हमने देखा कि इससे दोनों पक्षों के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ जाने की आशंका है तो हमने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) में पेश करने का निश्चय किया. यह मेरे विचार में दिसंबर 1947 में हुआ.” इस तरह से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसदीय भाषण में कश्मीर पर पाकिस्तानी आक्रमण के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने और युद्ध विराम होने, दोनों का खुद ही जिक्र किया है.

जम्मू कश्मीर पर नेहरु की इन्हीं गलतियों का जिक्र करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा – ”अगर जम्मू कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में ले ही जाना था तो UN चार्टर 51 के तहत ले जाते, न कि चार्टर 35 के तहत. ऐसे में ये भी समझते हैं कि UN चार्टर 51 और 35 में क्या अंतर है. दरअसल संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 35 कहता है कि ‘यदि किसी विवाद के पक्षकार आपसी बातचीत से मामले को सुलझाने में सक्षम नहीं हैं और विवाद अंतरराष्ट्रीय शांति को खतरे में डाल सकता है, तो संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य उस विवाद को सुरक्षा परिषद या महासभा में ले जा सकता है.’

जबकि, UN चार्टर के आर्टिकल 51 में पक्षकार देश को अपने ऊपर हमले का बचाव करने की छूट मिलती है. यानि यह चार्टर कहता है, ‘संयुक्त राष्ट्र चार्टर किसी भी देश के आत्मरक्षा के अधिकार को नहीं छीन सकता, जब तक कि सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठा लेती. यदि किसी संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश पर सशस्त्र हमला होता है, तो वह देश व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से खुद का बचाव कर सकता है. यानि ऊपर के दोनों चार्टर से साफ है कि चार्टर 35 जहां देशों को विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का मौका देता है. वहीं, चार्टर 51 हमले की स्थिति में देशों को खुद को बचाने का अधिकार देता है, जब तक कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद हस्तक्षेप नहीं करती है. अर्थात चार्टर 51 के तहत भारत ने संयुक्त राष्ट्र से शिकायत की होती तो भारत के पास हमेशा के लिए अपने बचाव में पाकिस्तान को किसी भी हद तक सबक सिखाने का कानूनी अधिकार बना रहता.

POJK विस्थापितों का जिक्र

POJK विस्थापितों का जिक्र करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि पाकिस्तान ने 1947 में जम्मू कश्मीर पर कबाइलियों के साथ मिलकर हमला किया. इस हमले में लगभग 31,789 परिवार POJK से विस्थापित हुए. विस्थापित परिवार जम्मू सहित देश के कई अन्य राज्यों में अपना जीवन गुजारने के लिए मजबूर हुए. इसके अलावा 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान 10,065 परिवार विस्थापित हुए. 1947, 1965 और 1969 के इन तीन युद्धों के दौरान कुल 41,844 परिवार विस्थापित हुए. इन विस्थापितों का हाल आज तक किसी ने जानने की कोशिश नहीं की. लेकिन आज यह बिल उन लोगों को अधिकार देने का, उन लोगों को प्रतिनिधित्व देने का एक प्रयास है.

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