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निधि समर्पण अभियान – मैं तो पुरानी स्कूटी ले लूंगी

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भोपाल. सैकड़ों वर्ष के संघर्ष के बाद अब जाकर आराध्य देव मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का मंदिर निर्माण होते देख रहे हैं. भारत भूमि के जन-जन में प्रभु श्रीराम के प्रति आस्था का दरिया भरा हुआ है, जिसके सैकड़ों उदाहरण मंदिर निर्माण हेतु चल रहे देश व्यापी निधि समर्पण अभियान के दौरान देखने को मिल रहे हैं.

गुना जिले से 45 किलोमीटर दूर जंगलों से घिरे वनवासी गांव गड़रियाकोडर है. जहां निधि समर्पण अभियान में लगे कार्यकर्ताओं को 95 वर्षीय किशनलाल बारेला ने अपने घर बुलाकर 1000 रुपये की निधि समर्पित करते हुए नम आँखों के साथ कहा – “मेरा जीवन आज धन्य हो गया, हमने जबसे सुना है भगवान राम के मंदिर निर्माण का काम शुरू हो गया है. मैं यही सोच रहा था कि मेरे गांव से मेरा सहयोग कैसे जाएगा. मेरे मरने से पूर्व मेरी अंतिम इच्छा पूरी कैसे हो पाएगी? किंतु आज भगवान राम ने आपको रामदूत बना कर मेरे पास मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने भेजा है. आज मेरा जीवन धन्य हो गया”.

वनवासी मामा के इन शब्दों ने समर्पण निधि एकत्रित कर रहे कार्यकर्ताओ को उत्साह से भर दिया.

ठीक ऐसा ही एक वाक्या ग्वालियर की गुरुद्वारा बस्ती से सामने आया. जहां शहर की सफाई व्यवस्था को संभालने वाली माताओं ने सुबह-सुबह निधि समर्पण अभियान एवं संपर्क पर निकले कार्यकर्ताओं को रोक कर जानकारी ली. जब कार्यकर्ताओं ने श्रीराम मंदिर निर्माण के संबंध में विस्तृत जानकारी दी तो स्वयं ही सफाई कर्मियों की इस महिला टोली ने अपने-अपने सामर्थ्य अनुसार श्रीराम मंदिर के लिए सहयोग किया.

विद्याधर, जयपुर

संदीप शर्मा श्रीराम मंदिर निर्माण एवं बहन के जन्मदिन उपहार के बीच विचारमग्न थे, तभी छोटी बहन की आवाज ने उन्हें विचारों से बाहर खींचा.

बहन पूछ रही थी “क्या हुआ भैया क्या सोच रहे हैं?” संदीप जी ने कहा “बहन, श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण करना चाहता हूं और तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें भी एक नई स्कूटी दिलाना चाहता हूं. पर, दोनों में संतुलन नहीं बना पा रहा…..

बहन खिलखिला कर हंसी और बोली – “अरे इसमें सोचने वाली कौन सी बात है? श्रीराम मंदिर निर्माण का यह बहुत पावन अवसर है, आप भरपूर श्रद्धा से निधि समर्पण करें. मैं तो पुरानी स्कूटी ले लूंगी, पर श्रीराम लला का मंदिर भव्य बनना चाहिए.

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