लद्दाख की बर्फ से ढकी चुशुल घाटी, तड़के साढ़े तीन बजे शांत घाटी में गोलियों की गंध घुलनी शुरू हो गई थी.
पांच से छह हजार की संख्या में चीनी सैनिकों ने लद्दाख पर हमला कर दिया था. इस दौरान सीमा पर मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व वाली टुकड़ी सीमा की सुरक्षा कर रही थी. टुकड़ी में केवल 120 जवान थे. लेकिन मुट्ठीभर जवान चीन को ऐसा सबक सिखाएंगे, इस बात की कल्पना किसी ने नहीं की थी.
अचानक हुए इस हमले में देखते ही देखते भारत माता के वीर सपूत चीनियों के लिए काल बन गए थे. भारतीय सेना के जवानों ने किस अंदाज में यह जंग लड़ी थी, उसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 120 सैनिकों ने चीन के करीब 1300 जवानों को मौत के घाट उतार दिया था.
इस टुकड़ी के पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही तकनीक. हथियार के नाम पर इनके पास थी सिर्फ वीरता. जिसका लोहा बाद में पूरी दुनिया ने माना. 120 जवानों की टुकड़ी का नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे. गिन पाना मुश्किल था कि शैतान सिंह ने अकेले ही कितने चीनी सैनिकों को मार डाला था. इतना ही नहीं वो अपने साथियों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे थे. इसी बीच उन्हें कई गोलियां लगीं.
दो सैनिक उन्हें उठाकर किसी सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे थे, तभी एक चीनी सैनिक ने आकर मशीनगन से उन पर हमला कर दिया. जब शैतान सिंह पर हमला हुआ तो उन्होंने अपने साथी सैनिकों को पीछे हटने का आदेश दिया और खुद मशीनगन के सामने आ गए.
सैनिकों ने शैतान सिंह को एक बड़े पत्थर के पीछे छिपा दिया. जब युद्ध खत्म हुआ तो उसी पत्थर के पीछे शैतान सिंह का शव मिला. उन्होंने अपने हाथों से मजबूत तरीके से बंदूक पकड़ रखी थी. टुकड़ी में 120 जवान और सामने दुश्मनों की फौज, बावजूद इसके मेजर के कुशल नेतृत्व के बूते 18 नवंबर, 1962 का दिन इतिहास के अमर पन्नों में दर्ज हो गया.
इस लड़ाई में 114 भारतीय वीर सपूतों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. जबकि जीवित बचे छह जवानों को बंदी बना लिया गया था. लेकिन वीर सपूतों ने चीन को यहां भी मात दी. चीनी सेना समझ ही नहीं पाई और सभी जवान बचकर निकल आए. इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया था. मेजर को उनके शौर्य के चलते परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.
भारतीय सैनिकों के इस साहस को देखकर चीनी लोगों ने अपने घुटने टेक दिए और 21 नवंबर को उसने सीजफायर की घोषणा कर दी थी. जब भी भारतीय सैनिकों की वीरता और साहस की बात होती है तो ऐसा नहीं होता कि शैतान सिंह को याद न किया जाए.