नई दिल्ली. पाकिस्तान और तुर्की विश्व में इस्लाम के पैरोकार बने फिरते हैं. विश्व के किसी भी देश में मुस्लिमों को लेकर कोई घटना होती है तो दोनों तुरंत खड़े हो जाते हैं. कुछ समय पहले फ्रांस में नए कानून को लेकर देखने को मिला था. लेकिन, उनका दोगला चेहरा किसी से छिपा नहीं है. हाल ही में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच हुए भीषण संघर्ष में एक बार फिर पाकिस्तान सहित तुर्की के भी असली चेहरा बेनकाब हो गया है.
वास्तव में, पाकिस्तान और तुर्की हमेशा से इस्लामी गुटों के मसीहा बनने का प्रयास करते रहते हैं. हाल ही में जिस तरह से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध की स्थिति बनी थी, उसमें दोनों ही देशों ने इस्लामिक बहुलता होने की वजह से फिलिस्तीन का समर्थन किया था.
लेकिन, इसके विपरीत जब बात चीन द्वारा कब्जा किए गए पूर्वी तुर्किस्तान के शिनजियांग क्षेत्र में बसे उइगर मुस्लिमों के मानवाधिकार हनन की आती है तो यह दोनों देश चीन के समर्थन में खड़े नजर आए और आते हैं.
सिर्फ इस्लामिक आधार पर ही जगह-जगह पाकिस्तान और तुर्की समर्थन में खड़े होजाते हैं, लेकिन जब बात चीन के उइगर मुस्लिमों की आई तब दोनों देशों ने चुप्पी साध ली.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मोहम्मद कुरैशी दो दिवसीय यात्रा पर तुर्की गए और फिर फिलिस्तीन के मुद्दे पर इजरायल में मुसलमानों के अधिकार पर चर्चा करने के लिए न्यूयॉर्क भी पहुंच गए. यूरोप से अमेरिका जाने के दौरान उनके साथ तुर्की, फिलिस्तीन और सूडान के विदेश मंत्री भी थे. जिन्होंने मुसलमानों के दमन के लिए सामूहिक आवाज उठाने का दिखावा किया.
लेकिन इसी दौरान न्यूयॉर्क में एक पत्रकार ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री से पूछा कि पाकिस्तान चीन में हो रहे उइगर नरसंहार का मुद्दा क्यों नहीं उठा रहा है, तो इसका जवाब देने में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह मुहम्मद कुरैशी विफल रहे.
इस मुद्दे पर शाह मोहम्मद कुरैशी ने कहा कि “चीन और पाकिस्तान आपस में काफी अच्छे मित्र हैं. उन्होंने उतार-चढ़ाव में हमारा साथ दिया है. हमारे पास आपस में बात करने के लिए कई सारे मुद्दे हैं. हम अपने राजनयिक चैनल का उपयोग करते हैं. हम हर बात पर सार्वजनिक रूप से चर्चा कर पाने में सक्षम नहीं है.”
पाकिस्तान ही नहीं बल्कि तुर्की भी इसी दोहरे पूर्ण रवैया की श्रेणी में आता है. दरअसल, पाकिस्तान और तुर्की दोनों देशों ने चीन के शिंजियांग प्रांत से भागे हुए उइगर मुस्लिमों के खिलाफ कार्यवाही करने में चीन की मदद की है.
पिछले कई वर्षों में इन दोनों मुस्लिम देशों द्वारा उइगर मुस्लिमों को वापस चीन भेजा गया है, जबकि उन्हें स्पष्ट रूप से पता है कि चीन भेजे जाने के बाद उनका क्या अंजाम होगा.