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ओटीटी कंटेट बनाते समय समझदारी, ईमानदारी औऱ जिम्मेदारी तीनों आवश्यक

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नई दिल्ली. कोरोना के लॉकडाउन के दौरान भारत के समाज के कई सकारात्मक समाचार निकल कर आये हैं. कई लोगों ने अपने व्यक्तिगत खर्च पर पैदल पलायन कर रहे श्रमिकों को जुटे और चप्पल उपलब्ध करवाए. उड़ीसा में एक सब्जी बेचने वाली महिला ने तय किया कि वो शाम 6 बजे के बाद, जितनी भी सब्जी उसके पास बचेगी उसे वह पास की गरीब बस्ती में बाँट देगी. यह महिला बहुत ज्यादा अमीर नहीं है, लेकिन वह समाज के लिए कुछ करना चाहती है और कर रही है. देश के कई हिस्सों से ऐसी सकारात्मक कहानियां निकल सकती हैं, आवश्यकता है कि ऐसी कहानियों को देखने की दृष्टि विकसित की जाए.

ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर OTT पर फैलती नकारात्मकता का समाधान? विषय पर विश्व संवाद केंद्र, भारत एवं भारतीय चित्र साधना द्वारा आयोजित परिचर्चा में बोल रहे थे. आज युवा वर्ग बड़ी संख्या में ओटीटी मंचों से जुड़ा हुआ है, लेकिन इन मंचों पर उपलब्ध कंटेंट आम तौर पर नकारात्मकता और हिंसा से भरा होता है. इस तरह का कंटेंट समाज पर गहरा असर छोड़ता है, इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध सामग्री को सकारत्मक दृष्टि दी जाए.

इसी विषय से सम्बंधित चुनौतियों एवं अवसरों पर जाने माने राइटर राज शांडिल, निदेशक एवं क्रिएटिव डायरेक्टर निवेदिता बसु, सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता मनीषा अग्रवाल एवं ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल जी ने चर्चा की.
एडवोकेट मनीषा अग्रवाल नारायण ने सेंसरबोर्ड व मनोरंजन से जुड़े कानून के विषय में जानकारी देते हुए बताया कि सिनेमा जगत में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन जैसी कुछ चीजों को लेकर एक कानून बनना चाहिए. फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन तो रहना चाहिए, लेकिन यह दंगा-फसाद को बढ़ावा देने वाला या संविधान, धर्म, संस्कृति के खिलाफ नहीं होना चाहिए. इसके लिए सिनेमैटोग्राफी एक्ट का उपयोग होना चाहिए एवं मनोरंजन मंत्रालय द्वारा एक प्रपोजल पास होना चाहिए. आज समाज का एक बड़ा हिस्सा वायलेंट न्यूज देख कर इनसेंसिटिव हो रहा है. इसलिए लोग भी रियल स्टोरी देखना ज्यादा पसंद करते हैं.

कंटेंट बनाते समय क्या ध्यान में रखना जरूरी है? इस पर मनीषा ने कहा कि ओटीटी कंटेट ऐसा हो जिसे हम कम से कम अपने परिवार के साथ देख सकें. ओटीटी के लिए जो कंटेट बना रहे हैं वो पहले से ही कंफर्म हो, निगेटिविटी को कंटेट से दूर रखें. जो नियम हैं, उनके दायरे में रह कर काम करना, किसी भी धर्म, जाति को लेकर विवादित टिपण्णी नहीं करना. चाहे कृष्ण लीला हो या रामायण, किसी व्यक्ति विशेष पर भी टिप्पणी ना करें. इस मामले में ऑडियंस और फिल्म मेकर दोनों की समझदारी होनी चाहिए.

ओटीटी प्लेटफार्म को लेकर राज शांडिल ने कहा कि फिल्म सीरीज जो भी बनाए उसे अपने कंटेंट पर ध्यान रखना चाहिए. हमें क्या लिखना है, क्या नहीं? हम बहुत ज्यादा बिखरे हुए हैं, लिखने का कंटेट सीमित नहीं है. व्यवस्थित नहीं है. इसलिए सभी धर्मों के लिए ऑडियंस के लिए कानून बनना चाहिए. लोगों को सेक्युरलिज्म की परिभाषा नहीं पता, सालों से बोल रहे हैं हिन्दू–मुस्लिम भाई-भाई, लेकिन कोई नहीं मानता है. कई कंटेट ऐसे होते हैं जो धर्म के नाम पर देश को बांट देते हैं. इसलिए कंटेंट मेकर की जिम्मेदारी है कि हम बना क्या रहे हैं? इसका असर समाज में क्या प्रभाव होगा? ऐसे प्रश्नों की चिंता करे. कई कंटेट ऐसे हैं जो धर्म के नाम पर देश को बांट दिया. फिल्मों में जो किरदार जिसका है, उसको नहीं दिया जाता है. जैसे मुस्लिम किरदार की जगह हिन्दू को और हिन्दू किरदार की जगह मुस्लिम को सेट कर दिया जाता है और वे एक-दूसरे के धर्म को बारीकी से नहीं समझते हैं, फिर समस्या उत्पन्न होती है. इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है.

डिजिटिल कंटेट को लेकर निवेदिता बसु ने बताया कि सेंसरशिप का हस्तक्षेप जरूरी है. ओटीटी जैसा चाहेगा कंटेट उसी प्रकार का बन सकता है. इसलिए नए कंटेंट राइटर्स के लिए ओटीटी प्लेटफार्म होना चाहिए. किसी चीज को बैन करना समाधान नहीं है. क्योंकि वहां पर सब प्रकार निगेटिव व पॉजिटिव कंटेंट लिखने वाले राइटर हैं.

जितने भी ओटीटी प्लेटफार्म हैं, कुछ ऐसा प्वाइंट या क्रेडिट सिस्टम होना चाहिए जो देश की पॉजिटिव चीजों को लेकर कम से कम हजार में सौ फिल्म बनाकर दिखाए. सकारात्मक पहलुओं पर फिल्में बनाने के लिए ओटीटी प्लेटफार्म को काम करना चाहिए.

कुछ ऐसे प्लेटफार्म भी होने चाहिए जो भारत की अच्छी चीजों को लेकर पॉजिटिव फिल्में बना कर लोगों को दिखाएं, उनकी भारत की संस्कृति की सच्चाई दिखाएं. अपने समाज का आइना हम खुद बना पाएं, ऐसा कंटेट बनाना चाहिए.

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