गोपाल गोस्वामी, रिसर्च स्कॉलर
05 अगस्त को भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या में 482 वर्ष के पश्चात पुनः मंदिर निर्माण कार्य का शुभारंभ हुआ. यह दिन सनातन हिन्दू समाज के लिए मानसिक गुलामी से मुक्ति के आरम्भ के रूप में भी जाना जाएगा. लगभग पांच शती बीत गयी अपने भगवान, आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मस्थान को मुक्त करने में. क्या 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी 72 वर्ष कानूनी लड़ाई में फंसी रही अयोध्या को मुक्त करने का साहस हिन्दू समाज में नहीं था? क्या 1992 में ढांचे के ध्वस्त होने के बाद भी 28 वर्ष न्याय की प्रतीक्षा में बिताने वाला हिन्दू समाज इतना कमजोर है कि आज पुनः कुछ लोग खुलेआम मंदिर को फिर से तोड़ने की धमकी दे रहे हैं? भारत में तीन लाख से अधिक मस्जिदें हैं, मुस्लिम देश इण्डोनेशिया के बाद किसी भी देश में यह सबसे बड़ी संख्या है. कुरान के अनुसार कोई भी मुसलमान काबे की और मुँह कर किसी भी स्थान पर नमाज पढ़ सकता है. हमने ट्रेन, बस, प्लेन, सड़क व किसी भी सार्वजनिक स्थान पर उन्हें नमाज पढ़ते देखा है. जबकि हिन्दू धर्म में भगवान की स्थापित प्रतिमा किसी भी पूजा अर्चना के लिए आवश्यक है.
आदर्श तो यह होता अयोध्या जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पश्चात मुस्लिम अग्रणी मिलकर उदाहरण प्रस्तुत करते. लेकिन इसके विपरीत उलेमा काउंसिल के मुखिया ने एक टीवी चैनल पर कहते हैं कि हम इसका बदला लेंगे, उच्चतम न्यायालय ने पक्षपात किया है, हम जब सक्षम होंगे तो मंदिर को फिर से ध्वस्त कर दिया जाएगा. यह भावना उलेमा के मन में अचानक नहीं आयी है, यह हमारे बताए गए गलत इतिहास का परिणाम है. आक्रांताओं को महान बताकर, उनके कुकृत्यों को छुपाकर कर आधुनिक इतिहासकारों ने जनमानस में यह प्रतिस्थापित कर दिया कि अकबर महान था, खिलजी कुशल प्रशासक था, तुगलक ने भारत को शासन करना सिखाया. एक राम पुनियानी तो यहां तक कहते हैं कि औरंगजेब ने मंदिर बनवाने के लिए धन दिया था ! तो क्या ज्ञान वापी मस्जिद की और मुँह कर बैठे नंदी क्या भगवान शिव से रूठ कर बैठे हैं? मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि पर बनी मस्जिद, अयोध्या की बाबरी मस्जिद, हिन्दू धार्मिक स्थल के अवशेषों पर खड़ा कुतुबमीनार क्या हिन्दुओं ने श्रमदान कर मुस्लिम आक्रांताओं को भेंट दिये थे? गलत इतिहास ही है, जिसका परिणाम हम स्वतंत्रता के बाद भी भुगत रहे हैं. मुंबई हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, भारत सरकार के कानून मंत्री व जिन्ना के सहायक रहे मोहमद करीम छागला ने अपनी पुस्तक ‘रोजेज इन दिसम्बर’ में लिखा है – आजादी के बाद भारत में रहे गए मुसलमानों ने यह मान लिया था कि यदि उनको भारत में ही रहना है तो वापस हिन्दू धर्म में लौट जाना पड़ेगा, परन्तु विडम्बना देखिये हम अपनी आस्था के स्थल भी वापस नहीं ले पाए. धर्म के नाम पर विभाजित हुआ राष्ट्र अपनी शर्तों पर यहां रहने को कह सकता था, परन्तु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि हिन्दू स्वभाव से सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखता है. परन्तु इसी विश्वास का गला घोंट अपने आप को वोट बैंक बनने दिया, अपनी असुरक्षा की भावना से देश में कश्मीर, केरल, बंगाल व असम जैसी समस्याएं देश को दीं. देश में घटित किसी भी आतंकी घटना को बिना स्थानीय सहायता के सफल नहीं बनाया जा सकता है, कौन सी शिक्षा है जो विश्व में सबसे अधिक धार्मिक आजादी के देश को अस्थिर व असुरक्षित बनाने के लिए कार्यरत शक्तियों की सहायता करने के लिए प्रेरित कर रही है?
वहीं, अब ये लोग देश के संविधान, संसद व न्यायपालिका सभी पर प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं. वो अफजल गुरु की फांसी को हत्या कहते हैं, वो बुरहान वाणी को अपना हीरो कहते हैं, वो याकूब मेनन की शव यात्रा में लाखों की संख्या में जाते हैं.
अभी हाल की कुछ घटनाओं पर दृष्टिपात करते हैं.
पिछले वर्ष पड़ोसी मुस्लिम देशों के सताए हुए अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नागरिकता संशोधन कानून पारित हुआ. जो वर्षों से भारत में लावारिस जीवन जी रहे थे, उनके बच्चे स्कूल नहीं जा पाते थे, उनका कोई बैंक अकाउंट नहीं खुलता था, उन्हें नागरिकता देकर सामान्य नागरिकों की तरह जीवन जीने का लाभ दिया गया. परन्तु लोकतान्त्रिक ढंग से चुनी हुई बहुमत की सरकार के लोकतान्त्रिक निर्णय को एक वर्ग द्वारा अपने विरुद्ध होने का प्रपंच कर देशभर में आगजनी, दंगे व तोड़फोड़ की गयी, जिसमे अनेक लोगों की जान गई.
आजम खान की आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को समलैंगिक कहने के प्रत्युत्तर में हिन्दू महासभा के कमलेश तिवारी द्वारा मुहम्मद के बारे में हदीस से लेकर की गई टिप्पणी पर देशभर में कमलेश तिवारी को फांसी देने के लिए धरने, प्रदर्शन व आगजनी कर दबाव बनाया गया, बंगाल में पुलिस थाना जला दिया और अंत में पिछले वर्ष उनकी हत्या कर दी गई.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के विरुद्ध मुसलमानों के प्रति अन्याय किये जाने व मौका मिलने पर हगिअ सोफिया की तर्ज पर अयोध्या में पुनः मस्जिद बनाने का कॉल देकर भारत की न्यायपालिका व संविधान की खुले आम धज्जियाँ उड़ाई गयी. यही लोग थे, जिन्होंने वर्षों तक कोर्ट में इस मामले को लंबित रखवाया और कहा कि कोर्ट का आदेश हमें स्वीकार होगा. क्या यह इस देश के साथ द्रोह नहीं है?
दाढ़ी व टोपी लगाकर संसद में बैठने वाले असदुद्दीन ओवेसी कहते हैं कि सेक्युलर देश का प्रधानमंत्री मंदिर का भूमिपूजन कैसे कर सकता है, इस हिसाब से ओवेसी को नमाज नहीं पढ़नी चाहिए व दाढ़ी नहीं रखनी चाहिए, टोपी नहीं लगानी चाहिए.
भगवान राम इस देश के ही नहीं, इस पूरे एशिया महाद्वीप के पूर्वज हैं. जापान, मंगोलिया, मंचूरिया, चीन, तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान, वियतनाम, फिलीपींस, जावा सुमात्रा, कम्बोडिया, मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया, अफगानिस्तान, पर्सिया, पाकिस्तान, लंका, बर्मा, सिंगापुर तक जहां-जहां भारतीय संस्कृति के पदचिन्ह पड़े हैं, भगवान राम उन सभी के पूर्वज हैं. 05 अगस्त का दिन समस्त एशिया महाद्वीप के लिए सांस्कृतिक गुलामी से मुक्त होने का उत्सव है. यहां से हमारी सांस्कृतिक दासता के अंत की शुरुआत हो गयी है. गुलाम मन, परायी संस्कृति से किसी राष्ट्र का उद्धार नहीं हो सकता है. आचार्य चाणक्य ने कहा था “पराजित राष्ट्र तब तक पराजित नहीं होता, जब तक वह पराजित करने वाले की सांस्कृतिक दासता स्वीकार न कर ले.”