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धर्म एवं संस्कृति का संरक्षण करती है ‘राष्‍ट्रधर्म’ पत्रिका – डॉ. कृष्णगोपाल जी

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  • लखनऊ में राष्ट्रधर्म पत्रिका का ‘राष्‍ट्रोन्‍मुख विकास’ अंक का लोकार्पण सम्पन्न
  • 1947 में अपने प्रकाशन काल से ही देश में वैचारिकता का संकलन कर रही पत्रिका
  • राष्ट्रधर्म के माध्‍यम से देश में सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन को जन-जन तक पहुँचाया जा रहा है

लखनऊ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि एक हजार वर्ष की पराधीनता काल में हमारी संस्कृति का क्षरण होता रहा. संस्कार भी खोने लगे. ऐसे में राष्ट्र की अखण्डता के मूल को जीवित रखने की आवश्यकता पड़ने लगी. देश की आजादी के समय में अंग्रेजों ने देश की संस्कृति को जिस प्रकार से खण्डित करने का षड्यन्त्र रचा था, उसे निष्‍प्रयोज्‍य करने के लिये राष्ट्रधर्म पत्रिका की 76 वर्ष पूर्व शुरुआत की गयी थी. बीते 9 वर्षों से जब देश को एक नयी दिशा मिलने लगी है तो राज्यों में हो रहे विकास कार्यों और राष्ट्र में हो रहे समुचित विकास को जन-जन तक पहुँचाने के लिये राष्‍ट्रधर्म पत्रिका का ‘राष्‍ट्रोन्‍मुख विकास’ अंक का प्रकाशन किया गया है. डॉ. कृष्णगोपाल जी गोमतीनगर स्‍थ‍ित सीएमएस सभागार में राष्ट्रधर्म पत्रिका के विशेषांक विमोचन समारोह में संबोधित किया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि इस पत्रिका में योग्य और विद्वान लोगों के विचार प्रकाशित किये जाते रहे हैं. देश में पहले कई पत्रिकाओं का प्रकाशन किया जाता था जो अब दिखती नहीं हैं. ऐसे में पाठकों को वैचारिक सामग्री देने का दायित्व राष्ट्रधर्म पत्रिका उठा रही है. इस पत्रिका के प्रकाशन में भी कई तरह की परेशानियां आयीं. आरम्भ के समय में ही गांधीजी की हत्या और उसके बाद आपातकाल में प्रकाशन करना काफी दुरूह था. इसके बाद भी प्रकाशन का कार्य कुशलता से किया गया. आज देश में जब पठनीयता की समस्या दिख रही है. लोगों की पढ़ने की प्रवृत्ति कम होती जा रही है, तब भी इस पत्रिका के माध्यम से विचारों का संयोजन लगातार किया जा रहा है. आवश्‍यकता है कि हर घर में हिंदी या स्थानीय भाषा के साहित्य का एक कोना होना चाहिये. ऐसा न होने पर पठनीयता की आदत खत्म होते ही देश की संस्कृति भी प्रभावित हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि हजार वर्षों के पराधीनता काल में देश की संस्कृति प्रभावित हुई. पहले इस्‍लाम ने और उसके बाद अंग्रेजों ने हमारे देश को आर्थ‍िक रूप से लूटने के साथ ही सांस्‍कृतिक रूप से विकृत करने का  प्रयास किया. परन्तु हिन्दुओं ने अपनी जीवनीशक्‍ति से खुद को और देश की संस्‍कृति को बचाए रखा. ऐसे में राष्‍ट्रधर्म पत्रिका ने भी अपना विशेष योगदान दिया है. मुगल काल में तीर्थयात्राओं पर लगने वाले कर (टैक्‍स) पर डॉ. कृष्णगोपाल जी ने कहा कि जजिया के साथ ही तीर्थयात्रा एवं गंगा स्नान के टैक्स का बोझ उठाने के बाद भी हिन्दुओं ने न तो तीर्थाटन छोड़ा और न ही गंगा स्‍नान. एक समय में मधुसूदन सरस्वती जी ने आगरा जाकर मुगल बादशाह से अपील की कि वह तीर्थयात्रा पर लगने वाला कर हटा दे. ऐसे में दारा शिकोह और उनकी बहन ने इसका समर्थन किया. अन्त में तीर्थयात्रा पर लगने वाला कर हटा दिया गया. उन्होंने कहा कि संस्कृति का संरक्षक हिन्दू मुगलों द्वारा बार-बार मंदिरों को तोड़े जाने के बाद भी मन्दिर का पुनर्निर्माण करता रहा क्योंकि मुगल हम हिन्दुओं की मंदिर बनाने की भावना को तोड़ने में असफल रहा था. इस पत्रिका के माध्‍यम से देश में ऐसे विचारों को ही जीवंत रखने का प्रयास किया जा रहा है.

पत्रिका के राष्‍ट्रोन्‍मुख विकास अंक की विशेषता के बारे में निदेशक मनोजकान्त जी ने कहा, ‘राष्‍ट्रधर्म पत्रिका का राष्‍ट्रोन्‍मुख विकास अंक देश के राज्यों में हो रहे विकास कार्यों को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करेगा. वर्ष 1947 में राष्ट्रधर्म पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया गया था. इसमें पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय, प्रो राजेन्द्र सिंह रज्जू भैया, भाऊराव देवरस जी, नानाजी देशमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपना योगदान दिया. इसमें महान विचारकों के लेख एवं साहित्य का संकलन कर देश के पाठकगणों का वैचारिक विकास करने का सफल प्रयास किया गया. उन्होंने कहा कि प्राचीनकाल से ही अवधारणा रही है कि राष्ट्र जब तक राज्य की आवश्यकताओं के अनुरूप आचरण करता है, तब तक देश विकास की राह पर चलता है. ऐसा न होने पर अवरोध आते हैं. ऐसे में इस पत्रिका के माध्‍यम से वैचारिकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है.

पत्रि‍का के सम्‍पादक प्रो. ओमप्रकाश पाण्‍डेय जी ने कहा कि ‘राष्‍ट्रधर्म का यह विशेषांक उस परम्‍परा का समर्थन करता है, जिसमें राष्‍ट्रीयता को बढ़ावा मिले. जिस प्रकार सिंह अवलोकन करके यह देखता है कि अब कितना लक्ष्य शेष है, ठीक उसी प्रकार राष्ट्र का अब तक कितना विकास हुआ है और कितना शेष बचा है, उसका निर्धारण करने के लिये राष्‍ट्रोन्‍मुख विकास अंक का प्रकाशन किया गया है.’ स्वतंत्रता के ठीक बाद देश में अच्छा माहौल नहीं था, किन्तु अब परिवर्तन दिखने लगा है. इस पत्रिका के माध्यम से देश में सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक क्षेत्रों में हो रहे परिवर्तन को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है.

कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने बताया, ‘राष्‍ट्रधर्म का प्रतिपादन करती यह पत्रिका अपने 75 वर्ष पूर्ण कर चुकी है. इस अवसर पर मुझे बताते हुए हर्ष हो रहा है कि यह पत्रिका पाठकों को सूचना, ज्ञान और मनोरंजन देने के साथ ही विचारपरक पठनीय सामग्री भी दे रही है. यह एक विचार परक पत्रिका है.’ इतिहास, भूगोल, नागरिकता और संस्‍कृति का परिचायक राष्‍ट्र होता है. यह पत्रिका उसी धर्म का पालन कर रही है. बीते 9 वर्ष में देश को एक नयी दिशा मिली है. चंद्रयान के समान ही हम भी उन्‍नत हुए हैं. देश का पुनरुत्थान हो रहा है. कोरोना काल में भी हमारे देश ने वैश्विक उदारता का परिचय दिया है. यह गौरव काल है. ऐसे में यह राष्ट्रधर्म पत्रिका देशवासियों को प्रेरित कर रही है.

कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रधर्म प्रकाशन लिमिटेड के प्रबंधक डॉ. पवनपुत्र बादल जी ने 75 वर्षों के प्रकाशन काल के बारे में जानकारी दी. कार्यक्रम का संचालन सम्पादक मण्डल के सदस्य डॉ. अमित उपाध्याय ने किया.

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