जयपुर. गुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध जयपुर में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के जनजातीय कारीगरों ने अपनी कारीगरी की धाक जमा ली. जयपुरवासी हाथ से बने सामान, जैसे बांस के बने आभूषणों, वंदनवार, मोबाइल एंपलीफायर, टेबल ऑर्गनाइजर, लालटेन, मेज और कार तिरंगा आदि के दीवाने हो गए. अवसर था सेवा भारती द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेवा संगम. 6 से 9 अप्रैल तक आयोजित सेवा संगम में महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित और जनजाति बहुल चंद्रपुर-गढ़चिरौली के बैंबू डिजाइनर एवं कारीगरों का आकर्षक हस्तशिल्प सुर्खियों में रहा. प्रदीप देशमुख के नेतृत्व में दि रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन फॉर लिविंग एन्हांसमेंट के कारीगरों पर सबकी दृष्टि थी. ग्रीन गोल्ड बैंबू की कलाकृतियों ने सबका मन मोह लिया.
पिंक सिटी के स्नेह से अभिभूत कारीगर
इंग्लैंड की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में सम्मानित हिंदुस्थान की पहली महिला बैंबू शिल्पी मीनाक्षी मुकेश वालके ने कहा कि वे जयपुरवासियों के स्नेह से अभिभूत हैं. समय के साथ लुप्त होती बांस की बुनाई कला को यहां बेहद सम्मान मिला है. हाथ से बने बैंबू के आभूषणों व बांस की राखियों की भारी मांग रही. बांस की राखी को यूरोप एक्सपोर्ट कर चुकीं मीनाक्षी वालके ने उत्साहपूर्वक कहा कि पिंक सिटी कला और कलाकार दोनों का सम्मान करती है.
“द बैंबू लेडी ऑफ महाराष्ट्र” के नाम से विख्यात मीनाक्षी मुकेश वालके ने बैंबू से नारी सशक्तिकरण की दिशा में कारगर कदम उठाए हैं. प्लास्टिक का प्रयोग कम हो, बांस की खेती को बढ़ावा मिले, पर्यावरण संरक्षण हो, महिलाएं आत्मनिर्भर बनें और आधुनिक तकनीक के युग में दम तोड़ती बैंबू की बुनाई कला को संजोया जाए, इन उद्देश्यों को लेकर मीनाक्षी सन् 2017 से प्रयासरत हैं.
मीनाक्षी ने इतने कम समय में तीन राज्यों की 1100 से अधिक महिलाओं को बांस की बुनाई कला से आत्मनिर्भर बनाया है. बैंबू डिज़ाइन में कई अभिनव प्रयोग करने वाली मीनाक्षी को इजराइल के जेरूसलम में एक आर्ट स्कूल में पढ़ाने का भी अवसर मिला था. परन्तु कमजोर आर्थिक हालातों के चलते वे चूक गईं.
कनाडा से “वुमन हीरो” अवार्ड पाने वाली मीनाक्षी के पास न तो अपना घर है, ना ही काम करने को पर्याप्त जगह और ना ही बांस की चीजें बनाने के लिए कोई यंत्र. इस स्थिति में भी वे अपने 7 साल के बेटे को संभालती हुई स्वावलंबन की अलख जगा रही हैं.