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वेब सीरीज़ में परोसी जा रही अश्लीलता पर अंकुश के लिए बने नियामक संस्था

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हमारी कला और संस्कृति पर एक एजेंडा के तहत किया जा रहा प्रहार

नियमन संस्था के गठन तक वर्तमान कानूनों का सहारा ले सरकार

सिनेमा और वेब सीरीज में बढ़ती अभारतीयता – एक समीक्षा विषय पर वेबिनार

भारतीय चित्र साधना एवं विश्व संवाद केंद्र द्वारा आयोजित वेबिनार

28 जून, रविवार को भारतीय चित्र साधना एवं विश्व संवाद केंद्र, भारत द्वारा सिनेमा और वेब सीरीज में बढ़ती अभारतीयता – एक समीक्षा विषय पर आयोजित वेबिनार में दिलीप शुक्ला (कथा एवं संवाद लेखक), अनंत विजय (एसोसिएट एडिटर, दैनिक जागरण), विष्णु शर्मा (फिल्म समीक्षक और पत्रकार) ने विषय पर अपने विचार रखे, अतुल गंगवार (लेखक और निर्देशक) चर्चा को मॉडरेट किया.

दिलीप शुक्ला (दबंग सीरीज़, दामिनी, घायल के संवाद लेखक) ने कहा कि “मैंने दामिनी, घायल जैसी फिल्में में लिखी हैं. जिनका उद्देश्य अच्छी फिल्म बनाना था, जो समाज में हो रहा है उसे दिखाना था. विषय अच्छे लिए, जिसमें संवाद के माध्यम से बात की. अपनी फिल्मों में कोई अनैतिक बात नहीं लिखी. लोगों को गलत लगे, उसका कंटेट समाज से अलग नहीं लिखा. हमारे सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर चोट करे, ऐसा कोई विषय नहीं लिखा. वेब सीरीज पर लिखने का प्रस्ताव कई बार आया है, लेकिन मैने अभी लिखा नहीं है. वेब सीरीज में निर्माता निश्चित होता है जो मूवी बनाता है और ऐसे लोगों को जोड़ लेता है अपने साथ, जिन्हें कुछ भी करने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन मैं उस बात का बिल्कुल समर्थन नहीं करता, जो समाज हित के लिए गलत है, वह गलत है. हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इसे रोकें.

उन्होंने कहा कि आज के जो हालात हैं, उसमें वेब सीरीज़ व सिनेमा के माध्यम से गलत दिशा दिखाई जा रही है, ये बड़ी समस्या है. इसका निवारण कैसे हो, इसके लिए एक मत के लोगों को सुझाव देना चाहिए. वेब सीरीज़ की अश्लीलता को कैसे नियंत्रित किया जाए, इसके लिए क्या होना चाहिए, क्योंकि जो अच्छा कथानक लिखने वाले हैं, उन्हें कोई समर्थन नहीं देता है. इससे उनके सामने आर्थिक समस्या आ जाती है और वो लोग वेब सीरीज में गर्म मसाला लिखने के लिए मजबूर हो जाते हैं.

मैं कभी भी गलत काम को नहीं स्वीकार करता हूं और मेरे साथ काम करने वाले जो दूसरे राइटर्स हैं, उनको भी मैं यही समझाता हूं कि लेखन का कार्य बहुत ही जिम्मेदारी वाला कार्य है और इसे जिम्मेदारी से  ही किया जाए, चाहे वेब सीरीज हो या सिनेमा हो.”

फिल्म समीक्षक और लेखक विष्णु  शर्मा ने कहा कि “वेब सीरीज में केवल अश्लीलता ही नहीं आती है, उसके लिए खजुराहो को जोड़ा जाता है. एक एजेंडा चलाया जाता है. भारतीय मूल्यों को टारगेट करके फिल्म बनायी जाती है. पूरी फिल्म में एक ऐसी लाइन लिखी जाती है जो बहुत कुछ बोलकर निकल जाती है और कन्फ्यूजन पैदा करती है. जिसका असर आम आदमी पर ज्यादा पड़ता है, जैसे फैमली मैन (वेब सीरीज़) में एक लाइन आती है कि तमिल तो संस्कृत से भी पुरानी है. अब पूरी फिल्म तो निकल गई, लेकिन दर्शक के दिमाग में ये छाप छोड़ गई कि तमिल संस्कृत से भी पुरानी है. हिन्दू देवी देवताओं के नाम रखकर भारतीयता पर प्रहार करना, जिससे हिन्दू परंपराओं को ठेस पहुंचे और जब हम इसका विरोध करते हैं तो हमें हमारी पूर्वजों की कहानी कृष्णलीला बता कर उल्टा सवाल करते हैं कि वो लीला रचाते हैं तो सही और हम करें तो गलत है.”

अभारतीयता व अश्लीलता के प्रसार पर कैसे लगे अंकुश?

दिलीप शुक्ला ने  कहा कि किसी एक चीज को टारगेट करके दिखाना उसकी छवि बिगाड़ना यह काम  एक लॉबी कर रही है. जानबूझकर ऐसी बात की जाती है और अश्लील दृश्य दिखाए जाते हैं तो ऐसे लोगों को चिन्हित किया जाए ताकि आगे से इस तरह की गलती करने की उनकी हिम्मत ना पड़े.  इसके लिए एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए.

अगर छोटे-2 सीरीज़ और निर्माता किसी विशेष धर्म व संप्रदाय के विषय में गलत बात करते हैं तो उन पर कार्रवाई की जाए क्योंकि ये लोग छोटे बैनर के होते हैं तो आसानी से इन्हें रोका जा सकता है. करोड़ों खर्च करके “काला” जैसी बड़ी फिल्में जहां बनती हैं, जिसमें बड़े- बड़े स्टार जुड़े होते हैं, ऐसे लोगों को रोकना मुश्किल होता है. लेकिन इस विषय पर सोचने की जरूरत है कि इनको भी कैसे गलत करने से रोका जाए.

मेरा सुझाव है कि एक तो दर्शक जो बदलती हुई चीजें देखना चाहते हैं, यह उनकी अपनी सोच है. लेकिन सारे दर्शक ऐसा नहीं चाहते हैं, कुछ ही दर्शक वर्ग है. ज्यादातर दर्शक हिन्दुस्तान में अच्छी चीजें, परिवारिक चीजें देखना चाहता है. वही एक वर्ग है जो सबकुछ देखना चाहता है, उसे नहीं पता है कि इसे देखना है या नहीं, ऐसे लोगों का कुछ नहीं कर सकते हैं. लेकिन एक वर्ग जो है वो ज्यादा घातक है क्योंकि वो इसे देखकर अपना रंग बदलता है. इससे प्रभावित होकर इसके साथ चलना शुरू करता है. युवा वर्ग अभी नहीं समझता, क्या सही- क्या गलत है. तो ऐसे वर्ग को हमें समझाने की जरूरत है, इसके लिए कुछ तरीके अपनाए जा सकते हैं. हमें ऐसी रणनीति बनानी चाहिए कि दर्शक खुद उठकर खड़े हो जाएं कि हम गलत चीजें नहीं देखेंगे. ये कैसे बना दिया गया? साजिश के तहत एक सोची समझी लॉबी काम कर रही है जो सनातनी हिन्दू संस्कृति को चोट पहुंचा रही है. हिन्दू झंडा आगे करके घिनौने चीजें दिखा रही है. हिन्दू चरित्र और संस्कृति को किसी भी स्तर तक गिरा रही है.

हमने अपनी फिल्मों में एक भी मुस्लिम किरदार को गिरा हुआ, घटिया काम करते हुए कभी नहीं दिखाया है, लेकिन आज हिन्दू किरदार को गलत तरीके से क्यों दिखाया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि आज भावना से काम नहीं घटिया नीयत से काम हो रहा है. इस नीयत को कैसे रोका जाए, इस पर विचार करना होगा.

अंकुश लगाने के लिए सरकार को त्वरित निर्णय लेते हुए उचित कार्यवाही की व्यस्था करनी  चाहिए. शासन ये व्यवस्था करे कि कोई भी कंटेंट, सीरीज़ या सिनेमा कैमरे के सामने बाद में खुलेगा पहले, किसी कमेटी या बैनर के बीच जो कथानक और संवाद आने चाहिएं. इसके लिए कानूनी नियंत्रण जरूरी है. तभी इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है. इस कार्य में मेरा पूरा समर्थन है.

फिल्म समीक्षा के लिए नेशनल अवार्ड विजेता एवं दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय ने कहा कि “कानून अभी भी मौजूद हैं, जिसके बावजूद ये सब काम चल रहा है. जैसे एंटी नेशनल कन्टेंट को नहीं दिखा सकते, आईपीसी की धारा 1860 के तहत सेक्शन 124 के अंतर्गत वो सब रेगुलेट होते हैं. भारत में कई सारे कानून हैं, जिनके माध्यम से ओटीटी के कंटेंट को रेगुलेट कर सकते हैं. अनलॉफुल यानि शब्द, कंटेंट, दृश्य, वक्तव्यों को इस कानून के तहत रोका जा सकता है. ओटीटी पर दूसरा कानून अनलॉफुल एक्टिविटी सेक्शन  67 लागू होता है इसमें 39 सेक्शन स्पोकेन और रिटेन वर्क को आपत्तिजनक कहने से रोकता है. लेकिन सबसे बड़ा कानून आईटी एक्ट है जो अश्लीलता व आध्यात्मिकता वाले कंटेंट को गलत ढंग से प्रसारण करने से रोकता है.

ओटीटी पर पोक्सो एक्ट के तहत कार्रवाई हो सकती है. जैसे एक फिल्म में एक बच्ची से आपत्तिजनक अश्लील कार्य करने के लिए दबाव बनाया गया, उस पर कार्रवाई की जा सकती है. जिस पर प्रसून बाजपेई ने सवाल भी उठाए थे. हमें स्वनियमन की तरह कार्य करने की जरूरत है यानि स्टेज बाई स्टेज चलना.

वेब सीरीज लॉकडाउन के समय मनोरंजन का साधन बनकर आगे आई है, ये सही है. लेकिन सरकार को इस पर कानून बनाकर स्वनियमन की  गाइडलाइन देनी चाहिए ताकि इनको कुछ भी लिखने या दिखाने से रोका जा सके. यूआरएल के आधार पर इसे रोकना चाहिए. इस पर एक नियंत्रण करने वाली व्यवस्था या कमिटी होनी  चाहिए या फिर स्वनियमन कमेटी को यह आधिकार हो कि इसका एनालिसिस कर सके, उसे दंडित कर सके और दंडित करने के बाद भी अगर नहीं मानते तो कानूनी विकल्प होना चाहिए, जिसके तहत कार्रवाई की जा सके. जब तक सरकार की कोई संस्था नहीं बनती, तब तक प्रमाणन (सेंसर) बोर्ड का विस्तार करके इसे उसके हवाले कर देना चाहिए. एक शासनादेश से ओटीटी को आप सेंसर बोर्ड के आधीन कर दीजिए, फिर देखिए कैसे नियंत्रण होता है. डर की वजह से स्वनियमन के लिए सब तैयार हो जाएंगे.

वक्ताओं ने कहा कि “जब भी कोई नया सोर्स आए तो हमें पहले तैयार होना चाहिए. विचारक, लेखक, पत्रकार लोग मिलकर सेंसर यूनिट में जाए, इसकी सुरक्षा व नीति को लेकर खुद आगे आएं. गलत कंटेंट लिखने वाले लेखकों पर अच्छे लेखक को निगरानी करनी चाहिए. आज जो नए फिल्म मेकर व एक्टर बॉलीवुड में आते हैं वो अपनी मेहनत से पहचान बनाना चाहते हैं. कोई भी स्वेच्छा से गलत काम नहीं करना चाहता है, उसके सामने बड़ी समस्या होती है. अच्छी विचारधारा के साथ उसे मजबूरन गलत काम करना पड़ता है तो इसके लिए फिल्म निर्माण की कोई एक संस्था होनी चाहिए, जिसके माध्यम से अच्छे एक्टर व मेकर को सपोर्ट किया जा सके.

इन दिनों सोशल मीडिया में सिनेमा और वेब सीरीज़ को लेकर काफी विरोध चल रहा है. वेब सीरीज़ में बढ़ती अभारतीयता पर समाज के लोग चिंता व्यक्त कर रहे हैं. सिनेमा में भी जिस प्रकार से अश्लीलता परोसी जा रही है, उसका भी खुलकर विरोध हो रहा है. वेब सीरीज में जिस तरह का कंटेट परोसा जा रहा है, उस पर लगाम लगाने के लिए विचार करने की आवश्यकता है. भारतीय संस्कृति पर आघात करने के लिए अश्लीलता और राजनीति को एक एजेंडा बनाकर वेब सीरीज़ बनाई जा रही है. टीवी सीरियल व सिनेमा के बाद अब इंटरनेट के माध्यम से वेब सीरीज़ मनोरंजन का एक प्रमुख लोकप्रिय साधन बनकर उभरा है. इससे वेब सीरीज़ की मांग और भी ज्यादा बढ़ गई है. आपराधिक और अश्लीलता पर आधारित ये वेब सीरीज़ देश की युवा पीढ़ी को गलत दिशा में धकेल रही हैं.

वेब सीरीज पर किसी भी प्रकार के नियमन का कानून न होने के कारण खुलेआम घृणित, लैंगिकता, अश्लीलता जैसे दृश्य दिखाए जाते हैं. गंदे व अश्लील कंटेंट परोसे जाते हैं. भारतीय परंपराओं को टारगेट किया जाता है. पाताललोक जैसी वेब सीरीज़ में हिन्दू देवी-देवताओं के नाम रखकर हिन्दुओं की भावना को ठेस पहुंचाई जाती है. वेब सीरीजों में सनातन हिन्दू धर्म को बदनाम और कलंकित करने वाले एवं हिन्दू मानबिन्दुओं को अपराधी दिखाने वाले दृश्य और कंटेंट परोसे जाते हैं. इतना ही नहीं भारतीय जन मानस में आदर का स्थान प्राप्त हमारी सेना व उनके परिवारों को भी अपमानजनक रूप से चित्रित किया जाता है.

ये लोग अपना नैरेटिव और एजेंडा सेट करके वेब सीरीज बनाते हैं, इनकी पूरी लॉबी इस एजेंडा को चलाने के लिए काम करती है. ये लॉबी हिन्दू चरित्र को टारगेट करके उसे गिराने के लिए नकली मानदंड बनाते हैं. लोगों के मन में नफरत पैदा करते हैं ताकि कोई मिलकर ना रहे. जाति, धर्म, मजहब के नाम पर बांटने के लिए धर्मविरोधी कंटेंट लिखते हैं. अब यह सब बंद होना चाहिए. हमारी कला और संस्कृति को बदनाम और मैला करने की इनकी साज़िशों का मंसूबा पूरा नहीं होना चाहिए.

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