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धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं ने सेवा के लिए खोले दरवाजे, मस्जिदों में नमाज के लिए उच्च न्यायालय में याचिका

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कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने देश के अनेक राज्यों को चपेट में ले लिया है. संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. राज्य सरकारों ने संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए पाबंदियां लगाना प्रारंभ कर दिया है, अनेक स्थानों पर लॉकडाउन की घोषणा की गई है. महाराष्ट्र में संक्रमितों की संख्या सबसे अधिक तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में एक बार फिर मंदिरों, धार्मिक-सामाजिक संस्थाओं ने मानव धर्म निभाते हुए संस्थान के दरवाजे खोल दिए हैं.

मुंबई में जैन समाज के लोगों ने मंदिर को कोविड केयर सेंटर में बदल दिया है. इस कोविड सेंटर में 100 ऑक्सीजन बेड की सुविधा भी होगी. मुंबई के कांदिवली में स्थित पावन धाम जैन मंदिर को कोविड केयर सेंटर में बदला जा रहा है. मंदिर के सेवर प्रदीप मेहता बताते हैं, “सेवा और दान जीवन की सबसे जरूरी चीज है. हमारे जैन मंदिर में स्टडी रूम, मेडिटेशन रूम, किचन और कई सारी सुविधाएं हैं. ये 5 मंजिला है और अभी तक यहां धार्मिक गतिविधियां हो रही थीं. लेकिन इस संकट की घड़ी में हमने इसे कोविड केयर सेंटर में बदल दिया है.”

भोपाल में भी जैन समाज ने शहर में स्थित चार धर्मशालाओं को क्वारेंटाइन सेंटर बना दिया है. इसमें आने वाले मरीजों को भोजन भी उपलब्ध कराया जाएगा. उधर गुजराती समाज ने भी ऐसे समाज बंधुओं के लिए गुजराती भवन के दरवाजे खोल दिए हैं, जिनके परिजन पॉजीटिव आ गए हैं. इन दोनों स्थानों पर भोजन, ठहरने की सुविधा निःशुल्क है. * हबीबगंज जैन मंदिर धर्मशाला- 40‍ बिस्तर, * जवाहर चौक जैन मंदिर धर्मशाला- 60 बिस्तर, दो हॉल, * चौक मंदिर (संत भवन) 50 बिस्तर, 25 कमरे, एक हॉल, * झिरनों मंदिर (रॉयल मार्केट) धर्मशाला- 30 बिस्तर, 15 कमरे

गुजरात में श्री स्वामी नारायण मंदिर ने भी अपने परिसर को कोविड अस्पताल में बदल दिया है. उपचार लागत का ध्यान भी मंदिर समिति द्वारा रखा जा रहा है. श्री स्वामीनारायण मंदिर (वडोदरा, गुजरात) को 500 बेड के कोविड अस्पताल में बदल दिया गया है. अस्पताल में ऑक्सीजन और वेंटीलेटर्स की सुविधा भी उपलब्ध है.

इनके अलावा महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगाँव के संत गजानन महाराज मंदिर में कोरोना संदिग्धों और रोगियों के लिए 500 बिस्तर के अलग-अलग आइसोलेशन परिसर बनाए गए हैं. यहां स्थित सामुदायिक रसोई में 2,000 लोगों के लिए दोपहर और रात का भोजन तैयार किया जा रहा है. ज्यादातर प्रवासी मजदूर बुलढाणा जिले के विभिन्न स्कूलों / कॉलेजों में रुके हुए हैं. उनके लिए भोजन की भी व्यवस्था की गई है.

दूसरी ओर मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए, उन्हें खोलने की मांग की जा रही है. इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गई है. जुमा मस्जिद ट्रस्ट द्वारा दायर एक याचिका पर बुधवार (अप्रैल 14, 2021) को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई की. याचिका में ट्रस्ट ने 50 लोगों के साथ 5 समय नमाज पढ़ने की अनुमति मांगी थी. लेकिन कोर्ट ने कोविड महामारी के दौरान लोगों की सुरक्षा को महत्वपूर्ण बताते हुए अनुमति देने से मना कर दिया.

सवाल, क्या ऐसे समय में यह मांग उचित है? इस सवाल पर गृहिणी दीपा कहती हैं – वास्तव में सोचने वाली बात है. क्या मजहबी कट्टरता मानव धर्म से भी बड़ी हो सकती है? मौलवी भले मस्जिदों के दरवाजे कोविड पीड़ितों के लिए न खोलें, लेकिन लोगों से घर में बैठकर नमाज पढ़ने की अपील तो कर ही सकते हैं. पिछले वर्ष मरकज का हाल सबने देखा था. इस बुरे दौर में उसे एक बार फिर खोल दिया गया है. मजहबी कार्यक्रम वहां शुरू हो चुके हैं. इस दौर में कोरोना गाइडलाइंस की पालना कर संक्रमण का कारक न बनना भी मानव धर्म की श्रेणी में आता है.

इसी सवाल पर लखनऊ के एक स्कूल में अध्यापिका आराधना मिश्रा कहती हैं कि नवरात्रि तो हिन्दुओं के भी चल रहे हैं, लेकिन कोई पूजा के लिए मंदिर खोलने की मांग नहीं कर रहा. लेकिन भारत में जब भी धर्म की बात आती है, कुछ लोग तर्क पर भी कुतर्क करने लगते हैं. आजकल कुछ लोग पिछले वर्ष सुपर स्प्रेडर बने मरकज की तुलना कुंभ से कर रहे हैं. लेकिन क्या वास्तव में दोनों की तुलना की जा सकती है? मरकज में एक बंद हॉल में लगभग 2000 लोग थे, उन्हें पता था उनमें से अनेक संक्रमित हैं, लेकिन वे जांच नहीं करवा रहे थे, पुलिस की बार बार की अपील पर बाहर नहीं आ रहे थे, अपने अपने घरों में जाकर परिजनों को संक्रमित कर रहे थे, पूरे देश में यात्रा कर रहे थे. जबकि कुंभ में वही जा सकता था, जिसकी दो दिन पुरानी कोविड निगेटिव रिपोर्ट हो. एक बड़े और खुले क्षेत्र में सीमित संख्या में ही श्रद्धालु जा सकते थे, स्नान के लिए टाइम स्लॉट निर्धारित थे, घाटों को सेनेटाइज किया जा रहा था, हरिद्वार के प्रवेश द्वारों पर सबकी जांच हो रही थी. इन सबके बाद भी जब कुछ संक्रमितों का पता चला तो कुंभ का समय से पहले ही समापन कर दिया गया.

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