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सरदार चिरंजीव सिंह जी श्वासों की पूंजी को पूर्ण कर गुरु चरणों में जा विराजे

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चिरंजीव सिंह जी का जन्म एक अक्तूबर, 1930 (आश्विन शु. 9) को पटियाला में एक किसान श्री हरकरण दास (तरलोचन सिंह) तथा श्रीमती द्वारकी देवी (जोगेन्दर कौर) के घर में हुआ. मां सरकारी विद्यालय में पढ़ाती थीं. उनसे पहले दो भाई और भी थे; पर वे बचे नहीं. मंदिर और गुरुद्वारों में पूजा के बाद जन्मे इस बालक का नाम मां ने चिरंजीव रखा. 1952 में उन्होंने राजकीय विद्यालय, पटियाला से बी.ए. किया. वे बचपन से ही सब धर्म और पंथों के संतों के पास बैठते थे.

1944 में कक्षा सात में पढ़ते समय अपने मित्र रवि के साथ पहली बार शाखा गये. वहां के खेल, अनुशासन, प्रार्थना और नाम के साथ ‘जी’ लगाने से बहुत प्रभावित हुए. शाखा में अकेले सिक्ख थे. 1946 में प्राथमिक वर्ग और फिर 1947, 50 और 52 में तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर्गों में गए. 1946 में गीता विद्यालय, कुरुक्षेत्र की स्थापना पर सरसंघचालक श्री गुरुजी के भाषण ने उनके मन पर अमिट छाप छोड़ी. गला अच्छा होने के कारण वे गीत कविता आदि खूब बोलते थे.

1948 के प्रतिबंध काल में सत्याग्रह कर दो मास जेल में रहे. बी.ए. के बाद अध्यापक बनना चाहते थे; पर विभाग प्रचारक बाबू श्रीचंद जी के आग्रह पर 1953 में प्रचारक बन गये. वे मलेरकोटला, संगरूर, पटियाला, रोपड़, लुधियाना में तहसील, जिला, विभाग व सह संभाग प्रचारक रहे. लुधियाना 21 वर्ष तक उनका केन्द्र रहा. संघ शिक्षा वर्ग में 20 वर्ष शिक्षक और चार बार मुख्य शिक्षक रहे. 1984 में उन्हें विश्व हिन्दू परिषद, पंजाब का संगठन मंत्री बनाया गया. इस दायित्व पर 1990 तक रहे.

इससे पूर्व ‘पंजाब कल्याण फोरम’ बनाकर सभी पंजाबियों में प्रेम बनाए रखने के प्रयास किये जा रहे थे. 1982 में अमृतसर में एक धर्म सम्मेलन भी हुआ. 1987 में स्वामी वामदेव जी व स्वामी सत्यमित्रानंद जी के नेतृत्व में 600 संतों ने हरिद्वार से अमृतसर तक यात्रा की और अकाल तख्त के जत्थेदार दर्शन सिंह जी से मिलकर एकता का संदेश गुंजाया. अक्तूबर 1986 में दिल्ली में एक बैठक हुई. उसमें गहन चिंतन के बाद गुरु नानकदेव जी के प्रकाश पर्व (24 नवम्बर, 1986) पर अमृतसर में ‘राष्ट्रीय सिक्ख संगत’ का गठन हो गया. सरदार शमशेर सिंह गिल इसके अध्यक्ष तथा चिरंजीव जी महासचिव बनाए गए. 1990 में शमशेर जी के निधन के बाद चिरंजीव जी इसके अध्यक्ष बने.

चिरंजीव जी ने संगत के काम के लिए देश के साथ ही इंग्लैड, कनाडा, जर्मनी, अमरीका आदि में प्रवास किया. उनके कार्यक्रम में हिन्दू और सिक्ख दोनों आते थे. 1999 में ‘खालसा सिरजना यात्रा’ पटना में सम्पन्न हुई. वर्ष 2000 में न्यूयार्क के ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ में 108 संतों के साथ गए, जिनमें आनंदपुर साहिब के जत्थेदार भी थे. ऐसे कार्यक्रमों से संगत का काम विश्व भर में फैल गया. इसे वैचारिक आधार देने में पांचवें सरसंघचालक सुदर्शन जी का भी बड़ा योगदान रहा.

वर्ष 2003 में वृद्धावस्था के कारण उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया. इसके बाद पहाड़गंज, दिल्ली में संगत के कार्यालय में वर्ष 2021 तक रहे. तत्पश्चात सरदार जी लुधियाना संघ कार्यालय में आ गये. पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे. आज 20 नवम्बर 2023 को प्रातः 08:30 बजे लुधियाना में सरदार जी गुरु साहिब के चरणों में जा विराजे. अकाल पुरुख से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दे.

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