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कुत्सित प्रयासों को धूमिल करता शिक्षा बचाओ आंदोलन

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अथर्व शर्मा

प्रसंग है वर्ष 2004 के उस कलंकित अध्याय का जब सत्ता परिवर्तन के साथ ही देश में शिक्षा का चीरहरण हुआ. 2004 में भारत स्वतंत्रता के 57वें वर्ष में प्रवेश कर रहा था, तब स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद भी जब देश की शिक्षा को राजनीति के अखाड़े का केंद्र बना कर सत्ता में बैठे लोगों ने शिक्षा को अपने एजेंडे थोपने का माध्यम बनाया तो लाखों शिक्षा प्रेमी सड़क पर उतर आए. इस देशव्यापी आंदोलन के विषय में जब पढ़ना प्रारम्भ किया तो ज्ञात हुआ कि देश की शिक्षा को कितने सुव्यवस्थित ढंग से तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भारत विरोधी बनाने का षड्यंत्र रचा और कुछ हद तक वे सफल भी हुए.

एनसीईआरटी की 6ठी से 8वीं की इतिहास की पुस्तकों में भारत के इतिहास पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले 75 से अधिक अंशों को सम्मिलित करना, हिंदी की पाठ्यपुस्तक में उर्दू व अंग्रेज़ी के शब्दों का प्रयोग करने जैसी विकृतियों को विद्यालय में पढ़ाना, किसी देश द्रोह से कम नहीं था. भारत के वेदों में जहाँ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः (अर्थात् – जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं) लिखा गया है. वहाँ दिल्ली विश्वविद्यालय मुक्त अध्ययन केंद्र की बी.ए. समाज शास्त्र की पुस्तक के माध्यम से पढ़ाया गया कि ऋग्वेद में स्त्रियों का स्थान शूद्रों तथा कुत्तों के समान है और अथर्ववेद में महिलाओं को केवल संतान उत्पन्न का साधन माना गया है. भारत के ग्रंथों को विकृत रूप में प्रस्तुत कर विद्यार्थियों में ग्रंथों के प्रति हीन भावना व विरोधाभास पैदा करने के अनेक प्रयास हुए.

इतिहास को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करने का क्रम यहीं तक ही सीमित नहीं था, कुछ दशकों पूर्व घटित घटनाओं पर भी प्रश्न चिन्ह लगा कर उनके तथ्यों को समाज में पुनः विचार का विषय बनाया गया. यह षड्यंत्र हमारी हिन्दू संस्कृति, सभ्यता, धर्म ग्रंथों को अपमानित करने का तो था ही, साथ ही भारत की अस्मिता को चोट पहुँचाने का भी था. स्वतंत्र भारत में रहते हुए भी राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान की 12वीं व आई.सी.एस.सी बोर्ड की इतिहास की पुस्तक में भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आजाद जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को आतंकवादी कहा गया. इन षड्यंत्रों के विरुद्ध चलाए गए देश व्यापी शिक्षा बचाओ आंदोलन का ही परिणाम है कि इस प्रकार की विकृतियों को 10 वर्षों के कठिन संघर्ष के बाद पाठ्यक्रम से हटाया गया. शिक्षा बचाओ आंदोलन पाठ्यपुस्तकों में व्याप्त विकृतियों के साथ – साथ समाज में भारत विरोधी विचारों को प्रसारित करने वाले प्रत्येक माध्यम को केंद्र में रख कर चलाया गया था. शिकागो महाविद्यालय में सहायक पद पर कार्यरत वेंडी डोनिगर ने ‘द हिन्दूज़ एन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री’ नामक एक विवादास्पद पुस्तक लिखी, जिसे पेंग्विन प्रकाशन ने प्रकाशित किया. पुस्तक में वेंडी डोनिगर लिखती हैं कि हिन्दू देवी-देवता कामुकता के शिकार हैं, सीता और लक्ष्मण के बीच कामुकता के सम्बंध थे, मंगल पांडे शराब व अफ़ीम के नशे में डूबे रहते थे, साथ ही स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, रानी लक्ष्मीबाई जैसे महापुरुषों के बारे में आपत्तिजनक बातें लिखी थी. वेंडी डोनिगर की इन अनर्गल बातों के विरुद्ध शिक्षा बचाओ आंदोलन ने न्यायालय में केस दायर कर विजय प्राप्त की. परिणाम स्वरूप पेंग्विन बुक्स ने लेखिका वेंडी डोनिगर की पुस्तक ‘द हिन्दूज़ एन ऑल्टरनेटिव हिस्ट्री’ को तत्काल प्रभाव से वापस लिया.

कांग्रेस द्वारा वामपंथियों को देश की शिक्षा का ठेकेदार बनाकर उन्हें शिक्षा के माध्यम से भारत विरोधी विचारों को प्रसारित करने का अवसर प्रदान किया गया जो काफ़ी लम्बे अरसे तक चलता आया. इसी का ही परिणाम है कि इन प्रयासों से भ्रमित हुए छात्र देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में लगे भारत विरोधी नारों का समर्थन करते हैं, देश में हो रहे सकारात्मक परिवर्तनों के विरुद्ध सड़कों पर उतरकर देश की सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाने वालों का समर्थन करते हैं, कॉमेडी के नाम पर हिन्दू देवी-देवताओं को अपमानित करने वालों का समर्थन करते हैं, मनोरंजन के नाम पर हमारे गौरवमयी इतिहास को तोड़ – मरोड़ कर प्रस्तुत करने वाले अभिनेताओं व निर्देशकों को अपना रोल मॉडल मानते हैं.

यह संघर्ष की गाथा केवल रोड पर नारे लगाने या समाचार पत्र में खबर छपवाने तक सीमित नहीं थी, शिक्षाविद दीनानाथ बत्रा, अतुल कोठारी जैसे अनेक देशभक्तों ने सड़कों से न्यायालयों तक की यात्रा कर शिक्षा को तथाकथित बुद्धिजीवी लोगों के षड्यंत्र से बचाया.

भारत प्रारम्भ से ही ऐसे षड्यंत्रकारियों की मंशाओं को धूमिल कर अपना मार्ग प्रशस्त करता आ रहा है, तो शिक्षा पर हो रहे ऐसे प्रयासों को कहाँ ज़्यादा समय टिकना था. भारत में माना जाता है कि देश परिवर्तन का माध्यम शिक्षा ही है, और शिक्षा का मूल उद्देश्य चरित्र निर्माण है. शिक्षा के माध्यम से हमें केवल मनुष्यों का निर्माण ही नहीं, हमें सुसंस्कृत मनुष्यों का निर्माण करना है. विश्व कल्याण की कामना करने वाले भारत को बनाए रखने के लिए जैसे विद्यार्थी चाहिए, वैसी शिक्षा पद्धति निर्माण करने की आवश्यकता है. भारत केंद्रित शिक्षा बनाने के लिए समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है. शिक्षा समाज में चिंतन का विषय बने यह हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. साथ ही षड्यंत्रकारी तथाकथित बुद्धिजीवी जो आज भी समाज में अपना भारत विरोधी विचार प्रभावी ढंग से पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं, ऐसे लोगों को चिन्हित कर समय-समय पर इनके कृत्यों को सभी के सामने लाना भी सभ्य समाज के प्रत्येक वर्ग का दायित्व बनता है.

 

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