रामायण का सार्वभौमिक संदेश हमारे जीवन को समृद्ध बनाएगा
कुछ ही दिनों के भीतर अयोध्या में एक ऐतिहासिक घटना होगी. घटना जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ हमारा साक्षात्कार करवाएगी. लगभग दो हजार साल पहले लिखे अनन्त महाकाव्य का स्मरण करवाएगी, जो हमारी सामूहिक चेतना का हिस्सा बन गया है. घटना, जो हमें आमंत्रित करती है, जहां मंदिर उस अनुकरणीय व्यक्तित्व, असाधारण व्यक्ति और भगवान के रूप में समर्पित होगा, जिसका जीवन मूल्य सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है. यह समय जश्न मनाने और मूल्यों को स्थापित करने का भी अवसर है, जिसका हम साक्षात्कार करके पालन करते हैं.
वास्तव में यदि हम रामायण को सर्वोच्च समझ कर धार्मिक आचरण के बारे में भारतीय दर्शन चेतना को सही ढंग से समझने की कोशिश करें, तो इस क्षण से सामाजिक-आध्यात्मिक पुनरुद्धार हो सकता है. रामायण का विचार इतना सार्वभौमिक है कि दक्षिण पूर्व एशिया में कई देशों में इसका बड़ा और स्पष्ट प्रभाव पड़ा है.
वेद और संस्कृत के ज्ञानी आर्थर एंथोनी मैकडोनेल के अनुसार भारतीय शास्त्रों में वर्णित राम आदर्श रूप में रहे हैं. रामायण ने कई कवियों, नाटककारों, नर्तकियों, संगीतकारों और लोक कलाकारों को भारत में ही नहीं, बल्कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों जैसे जावा, बाली, मलाया, बर्मा, थाईलैंड, कंबोडिया और लाओस को भी आकर्षित किया है. थाईलैंड जैसे देश में यदि राजाओं का नाम राम पर रखा जाए तो चौदहवीं शताब्दी में स्थापित राज्य की राजधानी को अयुथ्या भी कहा जाता है. रामायण के कई संस्करण हैं, जैसे कि थाईलैंड के रामाकिन और कंबोडिया संस्करण. इंडोनेशिया में Jawani Kakavin Ramayana मिले तो बाली में Ramakawaka लाओ भाषा संस्करण में, रामायण को फ्रा लैकया फ्रा लाम कहा जाता है. मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, नेपाल अलग-अलग नामों से जाना जाता है. इसी तरह, लिउदु जी जिंग और जापानी महाकाव्य ”होबुत्सुसु” और ”सैम्बो अकोटोबा” नामक कहानी रामायण का सार्वभौमिक आकर्षण दिखाती है.
रामायण का रूसी में अनुवाद सिकंदर बारानिकोव द्वारा किया गया था, जबकि यह नाटकीय रूप से जेनाडी पेच्चनिकोव नाम के एक थियेटर द्वारा कवर किया गया था, जो अधिक लोकप्रिय हो गया था. रामायण का विवरण अंगकोर वाट की चट्टानों पर चित्रित किया गया है, जबकि इंडोनेशिया के प्राम्बनन मंदिर में प्रदर्शित लोकप्रिय रामलीला दुनिया भर में सभी भौगोलिक और धार्मिक सीमाओं को पार करने वाले रामायण के सांस्कृतिक प्रभाव के बारे में बताती है.
उल्लेखनीय बात यह है कि रामायण अलग-अलग भाषाओं में प्रस्तुत की जाती है और कई मायनों में समझाया जाता है, जिसमें इसे आसानी से समझा जा सकता है. इस महाकाव्य के व्याख्यान का लक्ष्य सभी दर्शकों और श्रोताओं का ध्यान आकर्षित करता है. नारद की भविष्यवाणी आज तक सच साबित हो चुकी है कि रामकथा लोगों को तब तक मोहित और मंत्रमुग्ध कर देगी, जब तक नदियों में पानी बह नहीं जाता.

महाकाव्य रामायण ऋषि बाल्मीकि द्वारा नारद मुनि के सवाल के साथ प्रारंभ होती है. जिसमें ऐसे निर्दोष चरित्र, विद्वान, सक्षम, आकर्षक और हमेशा जनता के कल्याण के लिए विचार करने वाला वर्णऩ है. भले ही इस तरह के आदर्श गुणों वाले लोगों को ढूँढना बहुत मुश्किल है, लेकिन नारद मुनि कहते हैं कि इन सभी गुणों वाला एक ही व्यक्ति है और वह व्यक्ति राम है. सबसे बड़ा संकल्प है कि सभी जानवरों की रक्षा और धर्म को कई अन्य गुणों में बनाए रखना. रामायण में कहीं उनके चरित्र को रामो विग्राहवन धर्म यानि राम धर्म का अवतार है या धर्म, सत्य और न्याय का प्रतीक है.
राम ही श्रेष्ठ व्यक्ति है जो मनुष्य की अपेक्षा और अनुकरण करता है. रामायण वो कथा है, जो कई जगहों पर गुणों को दर्शाती है. जैसे ही राम की भारतव्यापी यात्रा शुरू होती है वैसे ही कथा शुरू होती है. हमें सत्य, शांति, सहयोग, कृपा, न्याय, समावेश, भक्ति, त्याग और करुणा की एक आकर्षक झलक मिलती है. भारत की दुनिया में यह मूल्य पहचान मिलती है. ये सार्वभौमिक भी है और युगबोधक भी है, इसीलिए आज भी रामायण को प्रासंगिक मानते हैं.
गांधी जी ने राम राज्य के रूपक का इस्तेमाल किया है, यह परिभाषित करने के लिए कि एक सुशासन वाला राज्य कैसा होना चाहिए. 1929 में युवा भारत समाचार पत्र में एक लेख लिखते हुए गांधी जी ने कहा, ”राम भले ही इस धरती पर नहीं, बल्कि केवल मेरी कल्पना में हैं, राम राज्य का पौराणिक आदर्श निश्चित रूप से एक सच्चा लोकतंत्र है. जहां कमजोर नागरिकों को भी न्याय मिलेगा बिना कोई विस्तृत और महंगी प्रक्रिया. कवि ने उल्लेख किया है कि राम राज्य में कुत्तों को भी न्याय मिला.
सहानुभूति, समावेश, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की तलाश में स्थापित लोकतांत्रिक आदर्श शासन की राष्ट्रीय पहल और नागरिकों के लिए जीवन की अंतहीन गुणवत्ता को हमारे लोकतांत्रिक प्रणाली को गहरा करने के लिए एक मानक और प्रेरक मार्गदर्शक के रूप में लिया जा सकता है. इससे राजनीतिक, न्यायिक और प्रशासनिक प्रणाली को मजबूत बनाने में भी मदद मिलेगी.
राम के लिए मंदिर बनाने के इस शुभ अवसर पर रामायण के सार्वभौमिक संदेश को भारत के अलौकिक महाकाव्य के रूप में समझने और प्रसारित करना उपयुक्त होगा और उन मूल्यों, मान्यताओं के आधार पर हमारे जीवन को समृद्ध बनाएगा.
(भारत के उपराष्ट्रपति वैंकेय्या नायडू जी की आधिकारिक फेसबुक वॉल से, श्रीराम मंदिर निर्माण कार्य शुभारंभ कार्यक्रम से पूर्व फेसबुक वॉल पर विभिन्न भाषाओं में लेख प्रकाशित किया गया है.)