पटना. संस्कार भारती द्वारा विजय निकेतन (पटना) में आयोजित पद्मश्री बाबा योगेंद्र की स्मृति सभा में गणमान्य लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किए.
वक्ताओं ने कहा कि बाबा योगेंद्र दधीचि स्वरूप थे. उन्होंने कला साधकों के मन में राष्ट्रीय गौरव बोध जागृत करने के लिए स्वयं को होम कर दिया. वर्ष 1981 में संस्कार भारती का गठन हुआ और उनके अथक प्रयासों से कुछ ही वर्षों में संस्कार भारती कला क्षेत्र की शीर्ष संस्था बन गई.
संस्कार भारती दक्षिण बिहार के प्रान्त अध्यक्ष पद्मश्री श्याम शर्मा ने बाबा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि बाबा संघ के प्रचारक थे, लेकिन उनके मन में एक सुप्त कलाकार सदा मचलता रहा. देश-विभाजन को उन्होंने बहुत नजदीक से देखा था. इस पर एक प्रदर्शनी बनाई, जिसने भी यह प्रदर्शनी देखी, वह अपनी आँखें पोछने को मजबूर हो गया. फिर तो ऐसी प्रदर्शनियों का सिलसिला चल पड़ा. शिवाजी, धर्म गंगा, जनता की पुकार, जलता कश्मीर, संकट में गोमाता, 1857 के स्वाधीनता संग्राम की अमर गाथा, विदेशी षड्यन्त्र, माँ की पुकार…आदि ने संवेदनशील मनों को झकझोर दिया. ‘भारत की विश्व को देन’ नामक प्रदर्शिनी को विदेशों में भी प्रशंसा मिली.
स्वयं केंद्रित, प्रसिद्धि उन्मुख कला साधकों के मन में उन्होंने राष्ट्रीय गौरव बोध एवं मातृभूमि के प्रति निष्ठा जगाने में अहम भूमिका निभाई.
घनघोर परिश्रम की वजह से आज पूर्वोत्तर भारत की लगभग 80 से ज्यादा जनजातियों में “अपनी संस्कृति -अपनी पहचान” को स्थापित कर उन्होंने एक लंबी लकीर खींची है. परिणाम पिछले वर्ष प्रयाग कुम्भ में 6 हजार से ज्यादा पूर्वोत्तर के कला साधकों ने अपनी सहभागिता की.
अपने स्नेही स्वभाव से सुश्री लता मंगेशकर, पं. जसराज, नाना पाटेकर, भीमसेन जोशी, अशोक कुमार, रामानंद सागर, मजरुह सुल्तानपुरी, मुकेश खन्ना, अमोल पालेकर, अनुराधा पौडवाल, सुधीर फड़के, मधुर भंडारकर, सुभाष घई व अनूप जलोटा जैसे प्रख्यात कलासाधकों को संस्कार भारती के ध्येय से जोड़ने में सफलता प्राप्त की.
मोतियों जैसे उनके हस्तलिखित पत्रों को लोग श्रद्धा से संभालकर रखते हैं. कला जगत में विद्यमान प्रसिद्धि उन्मुख लालसा के बीच उनकी आत्मीयता, निश्छल व्यवहार, विशुद्ध प्रेम और प्रसिद्धि परांगमुख जीवन उनके दधीचि तुल्य जीवन को ही प्रतिबिंबित करता है.
कार्यक्रम में कला साधकों ने अपनी कला के माध्यम से बाबा को श्रद्धांजलि अर्पित की. कार्यक्रम के संयोजक परिजात सौरभ और जितेंद्र कु. चौरसिया थे.