मेरठ. भारत के गौरवशाली अतीत एवं स्वतन्त्रता के आंदोलन में क्रांतिकारियों के योगदान को याद रखना है तो हमें लेखन के माध्यम से अपनी वर्तमान एवं आने वाली पी़ढी को उनके अभूतपूर्व योगदान को बताना होगा. राष्ट्रदेव इस कार्य को निरन्तर कर रहा है, यह बहुत सराहनीय है.
राष्ट्रदेव पत्रिका के विशेषांक लोकार्पण कार्यक्रम में पाञ्चजन्य के सहयोगी सम्पादक आलोक गोस्वामी ने संबोधित किया. उन्होंने बताया कि यदि भारत को जानना है तो भारत भ्रमण करना होगा. भारत भ्रमण से हर राज्य की संस्कृति, भाषा, खानपान की विविधता की हमें जानकारी होगी. जिससे हमारे मतिष्क व हृदय में एक तस्वीर बनेगी और वह तस्वीर वास्तविकता के निकट एवं सही होगी. उन्होंने सेल्युलर जेल की चर्चा करते हुए कहा कि स्वातन्त्र्य वीर सावरकर 11 वर्ष उस जेल में रहे और हिन्दुस्तान में एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्हें दो बार आजीवन कारावास हुआ. यदि हमें स्वाधीनता आंदोलन में वीर सावरकर के योगदान को देखना है तो एक बार सेल्युलर जेल अण्डमान में अवश्य जाना चाहिये क्योंकि वहां जाकर हम जान सकेंगे कि वीर सावरकर विपरीत परिस्थितियों में रहने के बावजूद स्वाधीनता के प्रति उनका समर्पण, निष्ठा, त्याग की भावना कितनी प्रबल थी. उन्होंने प्रथम स्वतन्त्रता आंदोलन का भी उदाहरण दिया और आजादी के आंदोलन में अनेक वीरों को भी अपने उद्बोधन में उल्लेखित किया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रदेव स्वतन्त्रता के अमृत महोत्सव पर यह कार्य बखूबी कर रहा है.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि धनसिंह कोतवाल शोध संस्थान के चेयरमैन तस्वीर सिंह चपराना ने कहा कि मेरठ के निकट पांचली ग्राम में तत्कालीन अंग्रेजी शासकों द्वारा तोपें लगाकर लोगों को मारा गया, बावजूद इसके लोगों की देश के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण को कम नहीं कर सके. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में धनसिंह कोतवाल के योगदान की विस्तार से चर्चा की.
कार्यक्रम में राष्ट्रदेव के सम्पादक अजय मित्तल ने राष्ट्रदेव के 35 वर्षों के इतिहास पर प्रकाश डाला और कहा राष्ट्रदेव पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग साढ़े आठ हजार गांव में जा रहा है. हमारा प्रयास रहता है कि राष्ट्रदेव में प्रकाशित होने वाली सामग्री से लोग जागरुक होने के साथ-साथ अपने इतिहास को भी जान सकें. आज का ये विशेषांक उसी कड़ी का हिस्सा है.
कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो. आराधना गुप्ता ने कहा कि हमें स्वाधीनता के बाद से ही कुछ ऐसी चीजें पढ़ाई एवं सिखाई गईं जो वास्तविकता से दूर थीं. स्वतन्त्रता आंदोलन में महान वीरों ने अपनी आहुति दी तो यह कैसे सम्भव है कि हमें पढ़ाया जाए ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल’. स्वतन्त्रता आंदोलन की सभी अनछुयी घटनाओं एवं पहलुओं को सबके सामने लाया जाए. उन्होंने इतिहास के पुनर्लेखन की बात करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार इस पर कुछ कार्य कर रही है, लेकिन हमें और अधिक तेजी से प्रयास करने होंगे.
कार्यक्रम में स्वतन्त्रता आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले महान क्रांतिकारियों के वंशजों को सम्मानित किया गया. जिसमें धनसिंह कोतवाल के वंशज तस्वीर सिंह चपराना, पं. पूर्णानन्द सरस्वती के वंशज डॉ. विरोत्तम तोमर, चौ. रघुवीर नारायण सिंह त्यागी के वंशज अभिषेक त्यागी व डॉ. मनीषा त्यागी, राजेन्द पाल सिंह ‘वारियर’ के वंशज अजयपाल सिंह वारियर व अंजू वारियर को सम्मानित किया गया.