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थूक की मजहबी मानसिकता स्वीकार्य नहीं

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

इन दिनों एक के बाद एक थूक लगी रोटियां, फल, सब्‍जी और अन्य भोज्‍य पदार्थों के संबंध में सोशल मीडिया पर लगातार वीडियो और फोटो आ रहे हैं. इन्‍हें देखकर यह विचार सहज आता है कि भला हो आधुनिक तकनीकी वैज्ञानिकों का, जिन्‍होंने आज यह सुविधा तो मुहैया करा दी है कि दूर कोई आपके खिलाफ क्‍या षड्यंत्र कर रहा है, उनकी मानसिकता और हावभाव समझने के लिए उसके फोटो-वीडियो सही तरह से बना लो, अन्‍यथा पता नहीं कब से यह थूक वाला खेल देश में चल रहा है और बहुविध संस्‍कृति सम्‍पन्‍न भारतीय समाज रोजमर्रा के जीवन में अनजाने में इसका शिकार बना रहा.

वस्‍तुत: अभी हाल ही में लखनऊ के इमाम अली होटल में थूक वाली रोटी का वीडियो वायरल होने के बाद फिर से सभी का ध्‍यान इस मुद्दे पर गया है. वास्‍तव में यह विषय बहुत गंभीर है, इस पर न सिर्फ सरकारों को सख्‍त होने की जरूरत है, बल्‍कि इस्‍लाम सहित जितने भी धर्म, पंथ, मजहब, रिलिजन को मानने वाले हैं, उन सभी को भी एकजुट होकर आगे आने की आवश्‍यकता है.

इस्‍लाम में कई फिरके हैं, जब इस बारे में किसी से बात करो तो वे यही कहते हैं कि यह हमारे लोग या जाति के नहीं, दूसरे फिरके या जाति वाले हैं, जो इस प्रकार का घृणास्‍पद कार्य कर रहे हैं. थूक से हम कोसों दूर हैं. यहां समझ नहीं आ रहा है कि सच क्‍या है और झूठ क्‍या? सामने से देखने और इस्‍लामिक अध्‍ययन से भी यही समझ आता है कि इस्‍लाम में थूक का विशेष महत्‍व है और यदि ऐसा नहीं है तो जो भी इस्‍लामिक स्‍कॉलर हैं, उन्‍हें तथ्‍यों के साथ अपनी बात भारत के बहुविध संस्‍कृति वाले समाज के साथ साझा करने में देरी नहीं करनी चाहिए. उनकी इस चुप्‍पी और देरी को देश का बहुविध समाज क्‍या समझे? यह विचारणीय है.

लखनऊ के इमाम अली होटल में थूक वाली रोटियों को बनाने वाले याकूब, दानिश, हाफिज और अनवर हों या इसी महीने की मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र आंबेडकर रोड स्थित लक्ष्मीनगर की घटना, जिसमें तंदूर पर एक युवक थूक लगाकर रोटी बना रहा था. इससे पहले गाज़ियाबाद में एक ढाबे पर रोटियों में थूक लगा कर बनाते हुए वीडियो तमीज़उद्दीन का वायरल हुआ. मध्य प्रदेश के रायसेन से फल बिक्रेता शेरू मियाँ की इसी तरह की हरकतों का वीडियो सामने आ चुका है. हरियाणा के गुरुग्राम से खाने में थूकने का मामला सेक्टर 12 से आया. दिल्ली में भी थूक लगा तंदूरी रोटी और भोजन बनाने वालों की कमी नहीं है, भजनपुरा निवासी मदीना ढाबा के संचालक मोहम्मद खालिक को गिरफ्तार किया गया. दिल्ली में होटल चाँद में सबी अनवर और इब्राहिम भी ऐसी ही हरकतें करते हुए कैमरे में कैद हुए थे.

यहां विषय यह है कि आखिर इस तरह से अपने थूक को दूसरों को खिलाने की जरूरत क्‍यों है? उत्तर प्रदेश के मेरठ में थूक लगाकर रोटी बनाने की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. पकड़े गए आरोपी नौशाद ने मीडिया और पुलिस के सामने यह स्‍वीकार्य किया कि वो पिछले 10-15 वर्षों से विभिन्न शादी समारोहों में अपना थूक रोटियों में लगाकर दूसरों को खिला रहा था. कुछ लोगों में यह थूकने की मानसिकता कितनी गहरी बैठी है, वह इससे भी समझा जा सकता है कि मशहूर हेयर स्टाइलिस्ट जावेद हबीब भी ऐसा करने से अपने को नहीं रोक पाए. बाल काटते समय महिला के बालों पर थूकने का उनका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया, जिसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले का संज्ञान लिया. और उसे माफी मांगनी पड़ी.

यहां बड़ा प्रश्‍न यह है कि क्‍या मजहब ऐसा करने के लिए कह रहा है? या फिर यह इन जैसे तमाम लोगों की बुरी मानसिक हालत का प्रतीक है जो देश भर में इस तरह की एक ही हरकत करते हुए कैमरों में दिखाई दे रहे हैं. सोचने वाली बात यह है कि यह कोई संयोग तो नहीं हो सकता, क्‍योंकि बिना परिचित हुए आपसी संवाद के वगैर एक जैसा सभी सोचें और करें यह संभव नहीं है. यदि यह वीडियो वायरल नहीं होते तो शायद ही कभी यह पता चल पाता कि वो रोटी में थूककर लोगों को खिला रहे हैं.

वस्‍तुत: अभी तो कुछ के चेहरे ही सामने आ सके हैं, ऐसे ना जाने कितने लोग हैं जो आज शादियों में, रेस्टोरेंट में, होटल में कार्यरत हैं और प्रतिदिन इसी प्रकार की घृणित मानसिकता से भरी कारगुजारियां करते हुए कोरोना संकट के विकट काल में भी अपना झूठा खाने, बल्‍कि सीधे कहना चाहिए कि अपना थूक खाने के लिए अनजाने में लोगों को विवश कर रहे हैं.

आज इस पर भी गंभीर विचार हो कि कई इस्‍लामिक हदीसें जो एक खास तरीके से थूकने को बरकत पाने और शैतान को दूर भगाने के तरीके बतला रही हैं, उनके लिखे को कितना मानना चाहिए? और क्‍यों इनके कहे अनुसार किसी को चलना चाहिए? कम से कम भारत जैसे सर्वपंथ सद्भाव वाले, संविधानिक व्‍यवस्‍था वाले देश में तो इस पर बिल्‍कुल अमल नहीं होना चाहिए. वस्‍तुत: इस्‍लामिक हदीसें थूक पर क्‍या कहती हैं, इसके कुछ उदाहरण यहां देखे जा सकते हैं –

सहीह-अल-बुखारी (वॉल्यूम 4, पुस्तक 54, संख्या 513) के अनुसार बाईं ओर थूकने से बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है. इस हदीस में लिखा हुआ है कि पैगंबर कहते हैं, ”एक अच्छा सपना अल्लाह से जुड़ा है. वहीं बुरा सपना शैतान से. जब भी किसी को बुरा सपना आए और वह डरे, तब उसे अपनी बाईं ओर थूकना चाहिए, जिससे उसे अल्लाह की शरण मिले और वह बुरी आत्मा से बच जाए”.

इस किताब में लिखा गया है कि उरवा अपने लोगों के पास वापस आया और बोला, ”मैं कई राजाओं, सीजर, खुसरो और अन-नजाशी के पास गया, किन्तु कोई भी उतना सम्माननीय नहीं है जितना मोहम्मद अपने साथियों में. यदि वह थूकेंगे तो थूक उनमें से किसी के हाथ में फैल जाएगा जो उसे अपने चेहरे और त्वचा में रगड़ लेगा.” (सहीह-अल-बुखारी, वॉल्यूम 3, किताब 50, हदीस 891).

यहां जबिर-बिन-अब्दुल्लाह के वक्तव्य में यह भी कहा गया है कि जब ”मेरी बीवी भी पैगंबर के पास एक लोई लेकर आई और पैगंबर ने उसमें थूका, जिससे अल्लाह का आशीर्वाद प्राप्त हो. इसके बाद पैगंबर ने हमारे माँस पकाने वाले बर्तन में भी थूका और उसमें भी अल्लाह की मेहरबानियाँ बिखेर दीं.” (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 5, किताब 59, हदीस 428).

इस्लामिक हदीसों में यह भी लिखा हुआ है कि मोहम्मद जी, जिस पानी से स्वयं को साफ करते थे, लोग उस पानी का उपयोग अपने लिए करते थे. (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 1, किताब 8, हदीस 373).

अबु जुहैफा का कहना है, ”मैंने बिलाल को पैगंबर द्वारा उपयोग में लाए गए पानी का उपयोग करते हुए देखा. बाकी लोग भी वही पानी उपयोग कर रहे थे और अपने शरीर पर रगड़ रहे थे. कुछ एक-दूसरे के हाथों पर लगे पानी का उपयोग करने के लिए आतुर थे.” (सहीह अल-बुखारी, वॉल्यूम 1, किताब 8, हदीस 373).

इन तमाम हदीसों में लिखी बातें कितनी सही या गलत हैं, यह तो कोई इस्‍लामिक विद्वान ही समझा सकता है. किंतु इसे सीधे तौर पर पढ़ने पर यही समझ आता है कि कहीं ना कहीं मजहब थूक के विशेष महत्‍व को रेखांकित कर रहा है. यदि यह सही नहीं है तो इस्‍लामिक विद्वानों को इस पर जरूर सभी को सच बताना चाहिए. वस्‍तुत: इसे कोई नकार नहीं सकता कि थूकना भारतीय समाज में कितना घृणास्‍पद माना गया है. यह अनादर करने का प्रतीक है. सामने से थूकना या किसी भी तरीके से थूकना यह किसी को नीचा दिखाना है. यह असभ्य होने की निशानी तो है ही, एक नागरिक के रूप में हमारे दायित्‍वों पर प्रश्नचिन्ह लगाना भी है.

आज आप किसी भी चिकित्‍सक से बात कर लें, वे यही कहते नजर आ रहे हैं कि आमतौर पर लोगों को थूकने की आदत होती है. यह संक्रमण का कारण बनता है. इसलिए थूक से परहेज करने की जरूरत है. सड़क या इधर-उधर थूकने से आपका संक्रमण लोगों में जा सकता है. इसके लिए सावधानी बरतना अत्यंत आवश्यक है. ऐसे में भी कोई थूकने की आदत से बाज नहीं आए, वह योजनाबद्ध तरीके से थूके. जिन्‍हें थूक पसंद नहीं उन पर थूके. रोटियों में, अन्‍य पेय और भोज्‍य पदार्थों में खिलाए, तब समझ जाइए वह घृणा से कितने भरे हुए हैं, इतने अधिक कि उसके कारण से वह सही सोचने-समझने की शक्‍ति भी खो चुके हैं. यदि यह थूकना कहीं मजहबी है तो इसे रोकने का सिलसिला मजहब से ही शुरू हो तो अच्‍छा रहेगा. कम से कम भारत में इस ”थूक संस्‍कृति” को स्‍वीकार्य नहीं किया जा सकता है.

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