नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने निर्णय सुनाया. न्यायालय ने जम्मू कश्मीर में करवाए गए परिसीमन की प्रकिया को सही ठहराया है. कहा कि, केन्द्र सरकार को डिलीमिटेशन कमीशन बनाने का अधिकार है. इस मामले में केंद्र सरकार ने अपने अधिकारों का उचित प्रयोग किया है.
गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग की 25 अप्रैल को सौंपी गई अंतिम रिपोर्ट के अनुसार, परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा की 83 सीट अब 90 हो जाएंगी. वहीं, 5 नई प्रस्तावित लोकसभा सीटें बनाई गई हैं. सर्वोच्च न्यायालय को तय करना था कि परिसीमन और विधानसभा सीटों के बदलाव की प्रक्रिया सही है या नहीं? मामले पर सुनवाई करने के उपरांत बेंच ने पिछले साल 1 दिसंबर को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था. 13 मई, 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में नोटिस जारी किया था. न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया था कि सुनवाई केवल परिसीमन पर होगी व जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने से जुड़े मसले पर विचार नहीं किया जाएगा.
श्रीनगर के रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू ने परिसीमन के खिलाफ न्यायालय में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में यह दलील देते हुए कहा था कि परिसीमन में सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता पक्ष ने दलील दी थी कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों के परिसीमन के लिए आयोग का गठन संवैधानिक प्रावधानों के हिसाब से सही नहीं है. परिसीमन में विधानसभा क्षेत्रों की सीमा बदली गई है और उनमें नए इलाकों को शामिल किया गया है.
याचिकाकर्ता को आपत्ति थी कि परिसीमन के बाद सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 कर दी गई है, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले जम्मू कश्मीर की भी 24 सीटें शामिल हैं. जो जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की धारा 63 के अनुसार नहीं है. सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 किए जाने को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने दावा था कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 81, 82, 170, 330 और धारा के विरुद्ध है. हालांकि केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन और चुनाव आयोग ने इन सभी दलीलों को गलत बताया था.
केंद्र सरकार का मत
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 2, 3 और 4 के तहत संसद को देश में नए राज्य या प्रशासनिक इकाई के गठन और उसकी व्यवस्था से जुड़े कानून बनाने का अधिकार दिया गया है. इसी के तहत पहले भी परिसीमन आयोग का गठन किया जाता रहा है. इसके अलावा, याचिकाकर्ता का ये कहना भी गलत है कि परिसीमन सिर्फ जम्मू कश्मीर में ही लागू किया गया है. इसे असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नगालैंड के लिए भी शुरू किया गया है.
याचिकाकर्ता ने क़ानून के प्रावधानों को चुनौती नहीं दी है. याचिकाकर्ता ने संवैधानिक चुनौती भी नहीं दी है. पहले भी संवैधानिक रूप से तय विधानसभा सीटों की संख्या को पुनर्गठन अधिनियमों के तहत पुनर्गठित किया गया था. वर्ष 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया. जम्मू कश्मीर में 2019 से पहले परिसीमन अधिनियम लागू नहीं था. लेकिन अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद वहां सामान्य रूप से सभी कानून लागू हो गए, जिसके आधार पर परिसीमन कराया गया.
फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने इस याचिका को खारिज कर दिया है. जिससे जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर रास्ता साफ़ हो गया है.