अकोला, ६ अगस्त. ज्येष्ठ स्वयंसेवक यशवंत उपाख्य श्याम देशपांडे के अभीष्ट चिंतन समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि समूचा विश्व आज चिंतामय है, आतंकवाद का भय है, ऐसे वातावरण में संत ज्ञानेश्वर द्वारा वर्णित सभी मनों की मित्रता सदैव संभालना यही संघ का सिद्धांत मूर्त रूप में प्रकट हुआ है और यही हमारा ध्येय है. एक दूजे से स्थापित ऋणानुबंध को संभालकर हमें सर्वत्र यही चमत्कार करना है. स्वयंसेवक संघ का काम करते हुए अपनापन संभालते रहते हैं. संघ कार्य करते हुए कार्यकर्ता को कई स्थानों पर अपनेपन का जो अनुभव होता है, उससे आनंद प्राप्त होता है. सबके सान्निध्य से आनंद होना, यही संघ का सत्य स्वरूप है. हम जहां हैं, वहीं अपनापन और आत्मीयता निर्माण हो, ऐसा वातावरण होना अपेक्षित है.
मंगलवार, 6 अगस्त को स्थानीय उत्सव मंगल कार्यालय में समारोह आयोजित किया गया था.
उन्होंने कहा कि संघ की आत्मा स्वयंसेवक ही है. हिन्दू धर्म, संस्कृति रक्षण तथा संवर्धन हेतु स्वयंसेवक कार्यरत रहता है. काम करते हुए कई बातें उसे सीखने को मिलती हैं. कई स्थानों पर अपनेपन के भाव से ऋणानुबंध जुड़ जाते हैं. यह भाव ही संघ शक्ती है.
संघ समझना हो तो सारे अपने हैं, यह भाव महत्त्वपूर्ण है. कुछ लोगों में दोष हो सकते हैं, किंतु उन्हें भी अपनेपन के भाव से संभालना चाहिए. अनेक लोग प्रश्न करते हैं कि संघ में जाने पर क्या मिलता है? संघ में जाने पर कुछ नहीं मिलता. मिलता है तो केवल अपनापन. किंतु, इसका प्रत्यक्ष अनुभव लिए बगैर इस पर किसी का विश्वास न होगा. यह पवित्र भाव है. वह संघ की कार्यपद्धति में सहजता से वृद्धिंगत होता है.
सत्कारमूर्ती श्याम देशपांडे ने कहा कि संघ कार्य करते हुए अनेक मित्र बने. उनके कारण कठिन काल में भी संघ कार्य करना संभव हो सका. और जीवन आनंद से जीना संभव हो सका. मेरे जीवन प्रवास में संघ का योगदान बड़ा है.
कार्यक्रम में श्याम देशपांडे के जीवन अनुभव पर आथारित पुस्तक ‘संघ अनुभूति’ का विमोचन सरसंघचालक जी ने किया. मंच संचालन सुरेखा शास्त्री, प्रणिता आमले ने किया. कार्यक्रम में प्रांत संघचालक दीपक तामशेट्टीवार सहित अनेक वरिष्ठ कार्यकर्ता व गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे.
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