ग्वालियर. सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी मनोज श्रीवास्तव ने कहा कि देश से अंग्रेज भले ही चले गए हैं, लेकिन आज भी हम अंग्रेजियत ढो रहे हैं. न्यायालय में निर्णय हमारी भाषा में नहीं अंग्रेजी में दिया जा रहा है. अंग्रेजी भाषा ही नहीं, उनकी भूषा भी अपनाई जा रही है. जबकि अभिभाषकों द्वारा पहने जाने वाले काले कपड़े हमारे देश के मौसम के अनुकूल नहीं हैं. अंग्रेजों की मंशा भारतीयों को उनकी संस्कृति से दूर कर लूटने की थी. विडंबना तो ये है कि हम अपने स्व को भूलकर उनकी भाषा और भूषा को अपनाकर अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.
मनोज श्रीवास्तव मंगलवार को ‘अंग्रेजी शासन व्यवस्था के अवशेषों से मुक्ति चाहती है भारतीय शासन व्यवस्था’ विषय पर विमर्श कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. प्रज्ञा प्रवाह मध्यभारत प्रांत एवं राजनीति शास्त्र अध्ययनशाला जीवाजी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक पाण्डेय थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता जीवाजी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. एसके द्विवेदी ने की. अतिथियों ने प्रज्ञा प्रवाह युवा आयाम की त्रैमासिक पुस्तक युवा मंथन का विमोचन किया.
मनोज श्रीवास्तव ने भारतीय न्याय तंत्र, कृषि तंत्र और शिक्षा तंत्र पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि स्वाधीनता के 75 वर्षों के पश्चात भी भारतीय न्याय तंत्र औपनिवेशक काल के तौर-तरीकों से मुक्त नहीं हो सका है. हम आज भी अंग्रेजों के बनाए 157 अधिनियमों को ढो रहे हैं.
अतिथियों का परिचय रितु नामधारी ने करवाया. विषय प्रवर्तन मदनलाल भार्गव ने किया. कार्यक्रम का संचालन प्रो. कुसुम भदौरिया एवं आभार प्रज्ञा प्रवाह मध्यभारत प्रांत के सह संयोजक अजय कुमार जैन ने व्यक्त किया.
मानसिक दासता में बदल जाती है सांस्कृतिक दासता
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अशोक पाण्डेय ने स्व के भाव का महत्व बताते हुए कहा कि सांस्कृतिक दासता कब मानसिक दासता में बदल जाती है, इसका पता नहीं चलता. इसीलिए आवश्यक है कि हम अपने स्व को पहचानें. चाणक्य का चिंतन आज भी प्रासंगिक है.
देश के विकास के लिए एकजुट होना जरूरी
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. एसके द्विवेदी ने कहा कि देश के विकास के लिए एकजुट होना बहुत आवश्यक है. हमें अपनी संस्कृति को अपनाना चाहिए. आज भी वनवासी लोग समाज की मुख्यधारा से कटे हुए हैं. वह बातचीत करने में भी संकोच करते हैं. उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वह अपनी संस्कृति को गर्व के साथ आत्मसात करें.