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पवित्र तीर्थस्थल श्री हेमकुंड साहिब के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुले

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देहरादून (उत्तराखंड). चारधाम यात्रा के बीच शनिवार से सिक्खों के पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब के कपाट भी दर्शन के लिए खुल गए. हेमकुण्ड साहिब दुनिया का सबसे ऊंचा और विश्व प्रसिद्ध गुरूद्वारा है. सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालु हेमकुण्ड साहिब पहुंचने लगे थे.

यात्रा की शुरुआत ऋषिकेश गुरूद्वारा परिसर से पहले जत्थे के प्रस्थान करने के साथ हो गई थी. 22 मई को उत्तराखण्ड के राज्यपाल ने पहले जत्थे को रवाना किया था. जत्था 23 मई को गुरूद्वारा गोबिंद घाट में ठहरकर 24 मई को पैदल चलते हुए गोबिंद धाम (घांघरिया) पहुंचा था. रात्रि विश्राम करके जत्थे ने हेमकुण्ड साहिब के लिए प्रस्थान किया.

कपाट खुलने के विशेष अवसर पर पंज प्यारों की अगुवाई में जत्थे ने ‘जो बोले सो निहाल’ के जयकारों व बैंड बाजों की धुनों के साथ कीर्तन करते हुए यात्रा के अंतिम पड़ाव श्री हेमकुण्ड साहिब पहुंचकर अपनी हाजिरी भरी. गुरूद्वारा प्रबंधक सरदार गुरनाम सिंह व मुख्य ग्रंथी भाई मिलाप सिंह संगतों के साथ मिलकर प्रातः पवित्र गुरू ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूपों को सुखासन स्थल से दरबार साहिब में लाए तथा अरदास की.

मुख्य ग्रंथी द्वारा प्रातः 10.15 बजे सुखमनी साहिब जी का पाठ किया गया. इसके बाद प्रातः 11.30 बजे से रागी जत्थों द्वारा गुरबाणी कीर्तन का गुणगान किया गया. साथ ही निशान साहिब जी के चोले की सेवा भी चलती रही. पूरे गुरूद्वारा परिसर और दरबार हॉल की फूलों से भव्य सजावट की गई.

भारतीय सेना के 418 इंडीपेंडेंट कोर के कर्नल विरेन्द्र ओला एवं ब्रिगेडियर एम. एस. ढिल्लों भी उपस्थित रहे. प्रशासन के साथ गुरूघर सेवादारों ने भी काफी सहयोग किया.

गुरूद्वारा ट्रस्ट ने अपील की है कि श्रद्धालु निःसंकोच यात्रा पर आएं और गुरु महाराज का आशीर्वाद प्राप्त करें. ट्रस्ट ने आशा जताई कि सभी श्रद्धालु पवित्र भावना व आपसी सौहार्द के साथ प्रशासन एवं गुरूघर सेवादारों को सहयोग करते हुए यात्रा को निर्विघ्न और सफल बनाएंगे.

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