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नि:स्वार्थ संघर्ष से ही पूरा होगा अखंड भारत का लक्ष्य

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सुखदेव वशिष्ठ

पृथ्वी पर जिस भू-भाग अर्थात् राष्ट्र के हम निवासी हैं, उस भू-भाग का वर्णन अग्नि, वायु एवं विष्णु पुराण में लगभग समानार्थी श्लोक के रूप में है :-

उत्तरं यत् समुद्रस्य, हिमाद्रश्चैव दक्षिणम्.
वर्ष तद् भारतं नाम, भारती यत्र संतति..

अर्थात् हिन्द महासागर के उत्तर में तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण में जो भू-भाग है, उसे भारत कहते हैं और वहां के समाज को भारती या भारतीय के नाम से पहचानते हैं.
पूरी पृथ्वी का जल और थल तत्वों में वर्गीकरण करने पर सात द्वीप एवं सात महासमुद्र माने जाते हैं. हम इसमें से प्राचीन नाम जम्बूद्वीप, जिसे आज एशिया द्वीप कहते हैं तथा इन्दू सरोवरम्, जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं, के निवासी हैं. जम्बूद्वीप (एशिया) के लगभग मध्य में हिमालय पर्वत स्थित है. जिसमें विश्व की सर्वाधिक ऊँची चोटी सागरमाथा, गौरीशंकर है, जिसे 1835 में अंग्रेज शासकों ने एवरेस्ट नाम देकर समृद्ध संस्कृति से भटकाने का प्रयास किया.

अखंड भारत और हमारी निष्ठा

12 सदियों तक विदेशी सत्ताओं से भारतीयों ने संघर्ष वर्तमान भारत के लिये नहीं किया था. 1947 का विभाजन पिछले 2500 वर्षों में 24वां विभाजन है. अंग्रेजों द्वारा 1857 से 1947 तक भारत को 7 बार विभाजित किया गया. अफगानिस्तान के लोग शैव व प्रकृति पूजक थे, मत से बौद्ध मतावलंबी थे. लेकिन मई 1876 को रूसी व ब्रिटिश शासकों (भारत) ने इसे बफर स्टेट के रूप में दोनों ताकतों के बीच स्थापित किया. अंग्रेजों ने 1904 में वर्तमान बिहार के सुगौली नामक स्थान पर उस समय के पहाड़ी राज्य के नरेश पृथ्वी नारायण शाह के साथ संधि कर नेपाल को आजाद देश का दर्जा दे दिया. इसी प्रकार भूटान, तिब्बत, को अलग करने का षडयंत्र किया गया. 1935 में श्रीलंका और 1937 में म्यांमार को राजनीतिक रूप से अलग देश का दर्जा प्रदान किया गया. 1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ. फिर 1971 में भारत के सहयोग से बांग्लादेश अस्तित्व में आया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार कभी भी आधी-अधूरी स्वाधीनता के पक्ष में नहीं रहे. वह तो सनातन भारत वर्ष (अखंड भारत) की सर्वांग स्वतंत्रता के लिये पूरा जीवन संघर्षरत रहे.

भारत की वर्तमान स्थिति

सन् 1947 के पश्चात् फ्रांस के कब्जे से पाण्डिचेरी, पुर्तगीज के कब्जे से गोवा, दमन-दीव, को मुक्त करवाया है. आज पाकिस्तान में पख्तून, बलूच, सिंधी, बाल्टिस्थान (गिलगित मिलाकर), कश्मीरी मुजफ्फरावादी व मुहाजिर नाम से इस्लामाबाद (लाहौर) से आजादी के आन्दोलन चल रहे हैं. पाकिस्तान की 60 प्रतिशत से अधिक जमीन तथा 30 प्रतिशत से अधिक जनता पाकिस्तान से ही आजादी चाहती है. बांग्लादेश में बढ़ती जनसंख्या का विस्फोट, चटग्राम आजादी आन्दोलन उसे जर्जर कर रहा है. शिया-सुन्नी फसाद, अहमदिया व वोहरा (खोजा-मल्कि) पर होते जुल्म मजहबी टकराव को बोल रहे हैं. इन देशों में अल्पसंख्यकों विशेषकर हिन्दुओं की सुरक्षा तो खतरे में ही है. विश्व का एक भी मुस्लिम देश इन दोनों देशों के मुसलमानों से थोड़ी भी सहानुभूति नहीं रखता. फलस्वरूप इन देशों के 3 करोड़ से अधिक मुस्लिम (विशेष रूप से बांग्लादेशी) दर-दर भटकते हैं. इन घुसपैठियों के कारण भारतीय मुसलमान अधिकाधिक गरीब व पिछड़ता जा रहा है क्योंकि इनके विकास की योजनाओं पर खर्च होने वाले धन व नौकरियों पर ही तो घुसपैठियों का कब्जा होता जा रहा है. मानवतावादी वेष धारण कराने वाले देशों में से भी कोई आगे नहीं आया.

विभाजन स्थापित सत्य नहीं…

यहूदियों द्वारा 1800 वर्ष संघर्ष कर 1948 में अपना देश इजराईल पुनः प्राप्त करना, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अलग हुए पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी का पुनः एक होना, 1857 के संग्राम के बाद असम्भव लगने वाली आजादी का 1947 को प्राप्त करना जैसे उदाहरणों से भारत को पुनः अखंड करने हेतु संघर्ष की प्रेरणा ली जा सकती है. इस समय आवश्यकता है कि वर्तमान भारत व पड़ोसी देशों को एकजुट होकर शक्तिशाली बन, खुशहाली अर्थात विकास के मार्ग में चलने की. इसलिए अंग्रेज अर्थात् ईसाईयत द्वारा रचे गए षड्यन्त्र को ये सभी देश (राज्य) समझें और साझा व्यापार और मुद्रा कर इस क्षेत्र के नए युग का सूत्रपात करें. इन देशों का समूह बनाने से प्रत्येक देश में भय का वातावरण समाप्त हो जाएगा तथा प्रत्येक देश का प्रतिवर्ष के सैंकड़ों-हजारों-करोड़ों रुपये रक्षा व्यय के रूप में बचेंगे जो विकास पर खर्च किए जा सकेंगे.

भारतीय अंतर्मन के सशक्त हस्ताक्षर गांधी जी भी अंत तक यही प्रयास करते रहे कि रामराज्य एवं हिंद स्वराज्य जैसी भारतीय परंपराओं एवं भारत की अमर-अजर संस्कृति के आधार पर ही भारत के संविधान, शिक्षा प्रणाली-आर्थिक रचना का ताना-बाना बुना जाए.

लक्ष्य की और बढ़ते कदम…

अपने राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाना ही संघ का उद्देश्य है. विजयादशमी 2 अक्तूबर, 2025 को संघ स्थापना के 100 वर्ष पूरे होंगे. स्वयंसेवक तन-मन-धन से इसी साधना में लगे हैं और देश में सर्वांग विकास हेतु ठोस व्यवस्था परिवर्तन में लगे हैं. सरसंघचालक मोहन भागवत जी के शब्दों में “वर्तमान में ऐसा उज्ज्वल दौर शुरू हो चुका है, जिसमें भारत पहले से भी अधिक शक्तिशाली होकर उभरेगा.”

इस वर्ष अखंड भारत संकल्प दिवस के अवसर पर अखंड भारत के अपने संकल्प को हिमालय की तरह सुदृढ़ करें और पूरी ऊर्जा के साथ अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ें. आशा है कि सभी का निःस्वार्थ संघर्ष शीघ्र ही फलीभूत होगा और अखंड भारत का लक्ष्य निकट भविष्य में पूरा होगा.

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