राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा “वैश्विक परिदृश्य में भारत की भूमिका” विषय पर आयोजित विशेष व्याख्यान में सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि वैश्विक परिदृश्य में भारत की भूमिका विषय मात्र कल्पना रंजन नहीं है. अपने भूतकाल के गुण गौरव करने का केवल विषय नहीं है, अथवा कोई फ्यूचर प्रोजेक्शन का भी विषय नहीं. अब यह वर्तमान की आवश्यकता और वास्तविकता का विषय है. भारत की भूमिका की प्रतीक्षा हो रही है और आज से नहीं, बहुत पहले से लोग कहते रहे हैं. बहुत लोगों ने सुना होगा, अर्नाल्ड ने कहा है कि यद्यपि इस सदी का प्रारंभ यूरोपियन प्रारंभ रहा है, लेकिन इसकी समाप्ति अवश्य ही भारतीय होनी पड़ेगी, अन्यथा विनाश अटल है. हम जब से स्वतंत्र हो गए उसके बहुत पहले से विश्व को भारत की भूमिका की प्रतीक्षा है, परंतु इस समय का भी महत्व है. पहली बात तो यह है कि अब हममें जागृति है. विश्व में हमारी कुछ भूमिका है, यह हम कहते तो रहे हैं. वास्तव में आज के भारत में हमको कुछ करना है, ऐसा आज दिखाई देता है. जब हम स्वतंत्र हुए थे, तब भी हमने इस प्रकार का चिंतन नहीं किया. नव स्वतंत्र भारत का विश्व के जीवन में क्या स्थान रहेगा, क्या योगदान रहेगा, ऐसा कोई विज़न डाक्युमेंट हमने तैयार नहीं किया था. ना ही इसकी बौद्धिक क्षेत्र में कुछ चर्चा हुई क्योंकि उस समय ऐसा माना जाता था कि हम लोग क्या करेंगे, हम लोग तो अभी विकासशील राष्ट्र हैं. लेकिन आज हमारे अंदर यह विश्वास जागा है.
हर एक राष्ट्र का प्रयोजन होता है, ऐसा स्वामी विवेकानंद जी कहते थे. वो कहते थे कि जैसे रोम का प्रयोजन था कि उस समय के संपूर्ण विश्व के सामने मिलिट्रीमाइट का उदाहरण खड़ा करना, जो उसने कर दिखाया और उसके अस्तित्व का प्रयोजन समाप्त हो गया, और रोम भी समाप्त हो गया. ऐसे ही राष्ट्र अवतीर्ण होते हैं. इस सृष्टि के जीवन को आगे बढ़ाने के लिए उनका जो जीवन उद्देश्य है, उसका प्रयोजन सफल करते हैं और सफल होने के बाद चले जाते हैं. परंतु विवेकानंद जी कहते थे – भारत का प्रयोजन विश्व के लिए सदा आवश्यक प्रयोजन है, समय-समय पर दुनिया को आधार देने के लिए भारत का उत्थान होता है और वो समय आया है, अब भारत को जागना है.
सारी विविधता जो एक-दूसरे से परस्पर विरोधी लगे उनको भी जोड़ने वाला तत्व देता है, उसको भारत में कहते हैं धर्म. इस धर्म का अर्थ पूजा, संप्रदाय, पंथ, रिलीजन नहीं है. हमारे यहां धर्म वो है जो सबको जोड़ता है. यानि मनुष्यों को आपस में जोड़ता है. संपूर्ण मानवता के साथ सृष्टि को एक कुटुंब बनाता है. एक व्यक्ति, समाज और सृष्टि तीनों को जोड़कर एक साथ उनका विकास करने वाला, मनुष्य के शरीर, मन, बुद्धि तीनों को सुख देते हुए उसके आत्म सुख को बढ़ाना और दुनिया के लोगों के सुख की जो आकांक्षाएं हैं और उसके लिए दुनिया में जितने साधन हैं यानि काम पुरुषार्थ और अर्थ पुरुषार्थ उसको अनुशासित करके संपूर्ण विश्व का एक-एक घटक, एक-एक व्यक्ति सही अर्थ में स्वतंत्र बने, ऐसी मुक्ति देने का काम भारत का है. स्वतंत्र बने, लेकिन आत्मीय बने, एक-दूसरे से अलग ना होने पाए, ऐसा जोड़ने वाला जो तत्व है वो धर्म है. उससे ही इहलोक और परलोक के सुख सबको मिलते हैं, भारत को यही सुख दुनिया को देना है.
सबको सुख मिले, ऐसी व्यवस्था देना है. उसमें विकास भी रहेगा और पर्यावरण की सुरक्षा भी रहेगी. व्यक्ति भी सच्चे अर्थों में स्वतंत्र और अधिकार पूर्ण रहेगा. समाज भी सबल होगा. ऐसी एक व्यवस्था देने वाला धर्म है जो सबको जोड़ता है. सबकी उन्नति करता है, सबको ऊपर उठाता है. जो इस लोक के सुख और परलोक के सुख दोनों की एकसाथ चिंता करता है. अभ्युदय और निश्रेय दोनों को देता है और वो धर्म सबका न्याय करते हुए कर्तव्यों का अनुशासन देता है. सृष्टि के सभी प्राणियों का संतुलन बनाकर चलता है. विश्व के प्रति जो उनका कर्तव्य है वो उनको बोध कराता है. यह धर्म की परिभाषा है.
संपूर्ण विश्व को अपना मानकर जीने वाले, ये विश्व ही मेरा घर है, ऐसी भावना लेकर जो जीता है उसको ही हम ईश्वर का रूप मानते हैं.
भारत को अपने आदर्श, अपने विचारों के आधार पर दुनिया में कान्ट्रीब्यूटर बनना है क्योंकि वो केवल भारत के आदर्श नहीं हैं वो वैश्विक आदर्श हैं. यही सारी कल्पना लेकर हमारा जीवन खड़ा हुआ है, इसमें प्रत्येक देश की अपनी अस्मिता और विविधता का पूर्ण स्कोप है. कोई एक तंत्र में हम सबको बिठाने का प्रयास नहीं करेंगे.
संघ का प्रयोजन था कि अपने मूल्यों और संस्कारों के आधार पर देश-विदेशों में भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपना ऐसा जीवन जिएंगे. जिसको देखकर वहां के लोग अपना राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ बनाएंगे. लेकिन आज वो वास्तविकता में आया है. हिन्दू स्वयंसेवक संघ की शाखा को देखकर केन्या के लोगों ने अपनी शाखा चलाना प्रारंभ किया है क्योंकि उनको लगा कि अच्छा जीवन जीने का तरीका इसी तंत्र से सीखने को मिलता है. संघ ने नहीं कहा कि तुम शाखा लगाओ, संघ तो भारतीयों के लिए है.
भारत को भी ऐसा जीवन खड़ा करना पड़ेगा. दुनिया में और जीवन खड़ा करना है तो कोई एक आदमी बड़ा आदेश करे तो ऐसे नहीं होगा. जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव रखने वाले आप जैसे सब लोग हैं, हमको दुनिया के अधूरेपन का उत्तर देना है. इसको ध्यान में रखकर राष्ट्रीय जीवन का प्रयोजन करना है. दुनिया समस्या में है हमको निहार रही है, हमको उनकी आशाओं को पूर्ण करने वाला भारत खड़ा करना है. अपने-अपने क्षेत्र में हम ऐसा प्रयोग करें, हम सब मिलकर चलें. यह सब करने का सामर्थ्य हममें है.
भारत दुनिया को दिशा देने वाला होगा. दुनिया को धर्म देने वाला भारत. भारत को दुनिया में योगदान देने वाला देश बनाना है तो जो हमारे पास है, उसके आधार पर भारत को खड़ा करना पड़ेगा. और उसके उदाहरण से सारी दुनिया सीखेगी और अपने-अपने देश के अनुसार स्वीकार करके खड़ा करेंगे. उसमें भारत को सहायक बनना पड़ेगा, हमको अपना हृदय लेकर जाना पड़ेगा, अपनी सेना या खजाना लेकर नहीं जाना. मानव का हृदय जीतना पड़ेगा क्योंकि वो सब अपने हैं. ऐसा सोचकर हम चलें, इसकी आवश्यकता रहेगी. इसके लिए हमको एक दिशा में चलना पड़ेगा. तभी संपूर्ण दुनिया को समस्याओं से छुटकारा देने वाले उदाहरण खड़े होंगे.
आज कृषि विज्ञान फिर से जैविक खेती की ओर आ रहा है जो हमारी भारतीय परंपरागत पद्धति है. इसलिए हमको भी अपने यहां की कृषि रचना उस जैविक के अनुसार बनानी पड़ेगी. किसान जैविक खेती के आधार पर अपनी नीति बनाएगा तो अपने-आप सरकार की नीति में आएगा. कृषि वैज्ञानिकों को इस पद्धति को जानने की जरूरत है. ऐसा बहुत कुछ हमारे भारत के पास है. जिसे हमें जानना पड़ेगा. एक कल्याणकारी मार्ग खड़ा करना पड़ेगा. ये उद्यम अपने-अपने क्षेत्र में हम सबको खड़ा करना पड़ेगा. लंबा रास्ता है, लेकिन एक-एक कदम आगे बढ़ाने से पहुंच जाएंगे. क्योंकि दुनिया के पास कोई दूसरा पर्याय नहीं है और हमारे पास शक्ति है. हमको उसका थोड़ा-थोड़ा अनुभव हो रहा है. इसलिए आज दुनिया में हम एक मान्य देश बन गए हैं. हम पूरी शक्ति का विनियोग करते हुए अपने देश को आगे बढ़ाएंगे तो संपूर्ण विश्व का तारणहार बनने वाला एक नये विचार के आधार पर आचरण का एक नया तंत्र हर क्षेत्र में एक मानक दे सकते हैं, इसका संकल्प हम सबको करना चाहिए. इस विचार की दृष्टि से हमको भी पढ़ना पड़ेगा. हमारे पास क्या-क्या है, इसका स्वाध्याय करना पड़ेगा.
संपूर्ण विश्व के कल्याण की भावना और भारत के परमवैभव की कामना मन में लेकर हम निःस्वार्थ बुद्धि से अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे प्रयास खड़े करने में जुट जाएं. हम अपनी आत्महीनता को जला दें और आत्मगौरव को प्राप्त करें, आत्मविश्वास को प्राप्त करें. हम अपनी अकर्मण्यता, आलस्य, नकारात्मकता को हटाएं और सकारात्मकता के साथ काम करें.
भारत की भूमिका आने वाली दुनिया में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जो नई-नई शक्तियां विश्व में उभरकर आ रही हैं. उन सबको विश्वास देने वाली, अभय देने वाली, आश्वस्त करने वाली शक्ति केवल भारत की शक्ति है. अन्य शक्तियों से लोग भय खाते हैं तो उन सभी शक्तियों सहित सबके मन में विश्वास है कि भारत अगर आगे आकर नेतृत्व करता है तो हमारा कल्याण होगा. इसलिए उनके इस विश्वास को सार्थक करने वाला शिवत्व हम धारण करें, भारत में उत्पन्न करें, अपने पुरूषार्थ से एक नया मानक, नई परिभाषा, नए मूल्यों की व्यवस्था दुनिया को दें. आने वाले समय में विश्व में भारत की यही महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी.
इससे पूर्व सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने कहा कि हम सब जानते हैं कि भारतीय चिंतन में सारे विश्व को एक परिवार के रूप में मानते आए हैं. वसुधैव कुटुंबकम का भाव मन में रखकर सारे विश्व के संदर्भ में हम लोग सोचते आए हैं. विश्व के मंच पर सभी प्रकार के मानव अथवा देश अथवा समाज विकसित होते हैं और अपने एक दायित्व का निर्वहन करते हुए विश्व के कल्याण के लिए विचार करते हैं. भारतीय चिंतन में विश्व कल्याण की ही कामना की गई है. जब हमने सारे विश्व को एक परिवार माना तो न संघर्ष होता है, न विवाद होता है. यही भावना लेकर भारत हजारों वर्षों से अपना आचरण, अपना व्यवहार करता आया है और इसलिए सब प्रकार के मानव समूह को अपनी-अपनी शैली से, अपनी-अपनी पद्धति से जीवन यापन करने का अधिकार है. ऐसे सभी प्रकार की पद्धतियों का हम लोग सम्मान करते आए हैं. यह अपनी एक विशेषता है. हम जानते हैं कि अपने समाज में आज की वर्तमान स्थिति में कुछ दुर्बलताएं अवश्य आ गई हैं. छोटी-छोटी बातों को लेकर विघटन जरूर हुआ है, यह व्यवहारिक धरातल पर कभी-कभी दिखाई भी देता है. इसलिए हम सबका प्रयत्न रहता है कि यह सब प्रकार की दुर्बलताओं को दूर करते हुए, ऊपर उठकर केवल भारत के लिए ही नहीं, विश्व के संदर्भ में सोचने वाला यह देश और समाज बने, यही आवश्यकता है. इस आवश्यकता को पूर्ण करते हुए एक स्वस्थ समाज जीवन खड़ा हो.
आत्मनिर्भरता की ओर भारत देश अब बढ़ रहा है. एक स्वावलंबी देश बनने की दिशा में हम लोग चल रहे हैं. सब प्रकार की आसुरी शक्तियों को दुर्बल करते हुए और इस विश्व की सज्जन शक्ति सब प्रकार से अपने दायित्व का निर्वहन करने वाली बने, इस प्रकार की सज्जन शक्ति केवल भारत में ही नहीं सारे विश्व में निर्माण होने की आवश्यकता है. इसके परिणाम स्वरूप छोटे-छोटे सामान्य देश व समूह भी स्वाभिमान और सम्मान के साथ जी सकें, यही हम सबकी अपेक्षा रहती है. इसके लिए आवश्यक है कि यहां का सामान्यजन से लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार की क्षमताओं को रखने वाले जन सब एक होकर अपने देश के संदर्भ में अपने चिंतन को सामने रखकर अपने देश में एक शक्ति के रूप में खड़े रहें. अनपढ़ हैं, पढ़े-लिखे लोग हैं, निर्धन हैं, धनवान हैं, बुद्धिमान हैं. सब प्रकार की क्षमताओं का परिश्रम करने वाला जीवन जीने वाला ऐसा वर्ग है. बड़े-बड़े नगरों में रहने वाले, उद्योग चलाने वाले हैं तो कृषि करने वाले किसान भी इस देश के अंदर हैं और कृषि में श्रम करने वाला मजदूर वर्ग भी है, दूर-दराज की पहाड़ियों में रहने वाला हमारा जनजातीय बंधु है, ये सब इस देश की शक्ति हैं. इस देश की शक्ति को जागृत करते हुए एक सशक्त भारत का निर्माण होगा, इस दिशा में हम सब लोग प्रयत्नशील हैं.
भारत की परंपरा में यह पहला विषय नहीं है यह, हमेशा ही इस प्रकार का प्रयत्न होता आया है. आज भिन्न प्रकार की सुविधाओं के कारण यह काम थोड़ा आसान हुआ है, परंतु सहज नहीं. परिश्रम करना पड़ेगा. सब प्रकार की अपनी दुर्बलताओं को समाप्त करना होगा, अपने मन की उदारता को प्रकट करना होगा और ऐसी सज्जनों की शक्ति संगठित करके चलना पड़ेगा. सामान्य अनुभव आता है कि सज्जन हमेशा असंगठित होते हैं. सज्जनों की संगठित शक्ति से ही भारत विश्व में अपनी भूमिका का निर्वहन करने का सामर्थ्य प्राप्त कर सकता है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसी दिशा में गत 95 वर्ष से प्रयत्नशील है.