केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल लाकर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए. यह बिल 30 अक्तूबर रात 12 बजे से लागू हुआ, इसके अंतर्गत यह सुनिश्चित हुआ कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख बिना विधानसभा या विधान परिषद के केंद्रशासित प्रदेश होगा. केन्द्र शासित राज्य बनते ही केंद्र के 106 कानून भी इन दोनों प्रदेशों में लागू हो गए, जबकि राज्य के पुराने 153 कानून खत्म हो गए.
केंद्र सरकार ने घाटी में पिछले एक वर्ष से नागरिकों के पास जाकर संवाद और जनसमस्याओं के समाधान द्वारा स्थाई शान्ति और विकास के मार्ग खोल दिए. राज्य के विकास के लिए केंद्र सरकार ने करोड़ों का पैकेज जारी कर खाका तैयार किया.
सरकार ने लोकतांत्रिक तरीके से जन-जन को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास शुरू किये तो दूसरी ओर सेना ऑपरेशन ऑल आउट के माध्यम से हिमालय की शांति को भंग करने वाले पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवादियों के खात्मे को बखूबी अंजाम दिया है.
घाटी में मजहब के नाम पर कुछ परिवारों ने जो सत्ता और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्ज़ा कर रखा था, उन्हें यह भला क्यों अच्छा लगता. केंद्र के निर्णयों के खिलाफ नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी सहित अन्य पार्टियों ने गुपकार समझौते के तहत एक गठबंधन का गठन किया है, ये 370 की बहाली की मांग कर रहे हैं.
स्थानीय स्तर पर लोकतान्त्रिक प्रतिनिधित्व को ज़मीन पर उतारने के संकल्प के साथ जम्मू-कश्मीर में पहली बार जिला विकास परिषद चुनाव की घोषणा हुई, 28 नवंबर से शुरू हुई यह चुनाव प्रक्रिया 19 दिसंबर तक चलेगी. कुल आठ चरणों में वोट डाले जाएंगे. डीडीसी चुनाव के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में खाली पड़े सरपंचों और पंचों के चुनाव भी होंगे, जबकि 22 दिसंबर को मतगणना होगी. पहले चरण में 28 नवंबर को मतदान शांतिपूर्ण संपन्न हुआ. पहले चरण में 43 सीटों के लिए 352 उम्मीदवार मैदान में हैं. मतदान सुबह 7 बजे से शुरू होकर दोपहर 2 बजे तक हुआ. अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी ने जिला विकास परिषद (डीडीसी) चुनाव के बहिष्कार की घोषणा की थी, लेकिन लोगों पर कोई असर नहीं दिखा.
राज्य चुनाव आयुक्त केके शर्मा ने बताया कि पहले चरण में सुचारू रूप से मतदान के लिए 2 हजार 146 मतदान केंद्र बनाए गए थे और पहले चरण में 7 लाख मतदाताओं ने मताधिकार का इस्तेमाल करना था. कोरोना दिशानिर्देशों का पालन करते हुए लोगों ने पूरे उत्साह से मतदान किया.
जम्मू-कश्मीर के दूरदराज इलाकों में ग्रामीणों ने जिला विकास परिषद चुनाव के पहले चरण में वोट से आतंकवाद पर चोट की. लोगों को मतदान से दूर रहने की आतंकवादी धमकियों को दरकिनार करते हुए कश्मीर के आतंकवाद ग्रस्त इलाकों में घरों से बाहर निकले लोगों ने लोकतंत्र के प्रति आस्था दिखाई.
डीडीसी चुनाव 2020 के पहले चरण में दोपहर 01:00 बजे तक मतदान प्रतिशत 39.94 रहा. पहले छह घंटों में शोपियां में 22.37 प्रतिशत, बडगाम में 47.44 प्रतिशत, अनंतनाग में 26.65 प्रतिशत, कुपवाड़ा में 34.11 प्रतिशत, बांडीपोर में 34.18 प्रतिशत, गांदरबल में 36.26 प्रतिशत, श्रीनगर में 30 प्रतिशत, बारामुला में 25.58 प्रतिशत, पुलवामा में 6.8 प्रतिशत, कुलगाम में 24.49 प्रतिशत लोगों ने 370 को लेकर गुपकार अलायंस की सियासत को नकार कर अपने गांव के विकास की कमान अपने हाथ में लेने के लिए मताधिकार का प्रयोग किया.
जम्मू संभाग में जिला सांबा में पाकिस्तान से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे लोगों ने मतदान में भारी उत्साह दिखाया. दोपहर एक बजे तक प्रदेश में सबसे ज्यादा 59.29 प्रतिशत मतदान इसी जिले में हुआ. जम्मू संभाग में नियंत्रण रेखा से सटे राजौरी जिले में 57.73 प्रतिशत मतदान दर्ज हुआ था. पुंछ जिले में 55.48 प्रतिशत, रियासी जिले में 56.17, कठुआ जिले में 54.23 प्रतिशत, जम्मू जिले में 48.96 प्रतिशत मतदान हुआ था. किश्तवाड़ में 27.14 प्रतिशत व डोडा में 50.63 प्रतिशत मतदान हुआ था.