प्रशांत पोळ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाकौशल प्रांत के सेवा प्रमुख, योगेन्द्र सिंह ‘योगी जी’ का नश्वर शरीर पंचतत्व में विलीन हुआ, और इसी के साथ लिखा गया, संघ स्वयंसेवकों के बलिदान का एक अध्याय!
योगेन्द्र सिंह जी, सभी परिचितों के बीच ‘योगी जी’ के नाम से ही जाने जाते थे. उनकी मृत्यु कोरोना से हुई. अपने अंतिम क्षण तक उन्होंने समाज की चिंता की. प्रांत के सेवा प्रमुख इस नाते समाज में जाना, सेवा कार्यों की देखरेख करना, स्वयंसेवकों का उत्साहवर्धन करना, नई-नई योजनाएं बनाना, सेवा कार्यों का वृत्त संकलित करना…. ऐसे सारे काम वे सतत कर रहे थे. कोरोना की चिंता उन्हें भी थी. वे सारी सावधानियां बरतते थे. सहयोगी कार्यकर्ताओं को भी सावधानियां अपनाने का आग्रह करते थे. मित्र जब उनसे कहते थे, “योगी जी, बहुत भागदौड़ मत कीजिये… तब योगी जी का उत्तर होता था –
“हम ही जब बैठ जाएँगे, तो समाज के पास कौन जाएगा? समाज को ढांढस कौन बंधाएगा? संघ समाज का संगठन है. आज के इस समय में सबका मनोबल ऊंचा रखने की नितांत आवश्यकता है. इसलिए हमें तो समाज के बीच, सारी सावधानियाँ बरतकर काम करना ही होगा.”
और उन्होंने किया भी.
15 से 17 मार्च तक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक बंगलुरु में थी. किन्तु कोविड१९ की गंभीरता को देखते हुए, संघ ने यह बैठक स्थगित की. इस बैठक के लिए योगी जी पहुँच भी गए थे. किन्तु बैठक के न होने से वे वापस आएं. तब तक कोरोना का संकट गहराने लगा था. धीरे-धीरे लोगों को उसकी गंभीरता समझ में आ रही थी. २२ मार्च से रेलगाड़ियों का परिचालन बंद हुआ और २५ मार्च से देश में पूर्ण बंदी (लॉकडाउन) लागू हुई.
यह परीक्षा की घड़ी थी. परिस्थिति अभूतपूर्व थी. सारा समाज स्तब्ध था. संभ्रमित था. क्या हो रहा है, यह परिस्थिति हमें कहां लेकर जाएगी, यह किसी को समझ में नहीं आ रहा था. पूर्ण बंदी के कारण अनेकों को समस्या हो रही थी. रोजदारी पर व्यवसाय करने वाले, रेहड़ी वाले, खोमचे वाले, ठेले वाले, दिहाड़ी मजदूर…. सभी संकट में थे. अनेक लोग दूसरे शहरों में फंस कर रह गए थे.
ऐसे समय में समाज में चट्टान की तरह, मजबूती के साथ खड़े थे, संघ के स्वयंसेवक. समाज को साथ लेकर, यह कर्मशील स्वयंसेवक, दिन रात एक करके इस चीनी वाइरस से उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान निकालने में जुटे थे.
संघ का सेवा विभाग, पूर्ण बंदी के पहले दिन से ही सक्रिय था. मार्च के अंतिम सप्ताह में कार्य योजना बन गई थी. स्वाभाविकतः प्रांत सेवा प्रमुख इस नाते योगी जी भी कार्य में जुटे रहे. बंगलुरु से लौटने के बाद, उनका केंद्र कटनी रहा. उनके मार्गदर्शन में प्रांत में, सेवा कार्य के एक अभिनव प्रयोग का सूत्रपात हुआ. इसमें एक वाहन किराए पर लेकर उसमे किराने की ‘सस्ती दुकान’ का संचालन प्रारंभ हुआ. पूर्ण बंदी के दिनों में यह वाहन कटनी के विभिन्न क्षेत्रों में, घर घर जाकर जरूरतमंद लोगों को सस्ती दरों पर किराना उपलब्ध कराता था. कटनी के इस सफल प्रयोग की देखा-देखी, प्रांत के अन्य जिला स्थानों पर भी यह उपक्रम चलने लगा.
योगी जी को पूरे प्रांत की चिंता थी. पूर्ण बंदी के समय, सारी सावधानियां बरतकर और नियम कानून का पालन कर, उन्होंने सेवाकार्य का अवलोकन करने के लिए छतरपुर और रीवा का प्रवास भी किया.
बाद में योगी जी का केंद्र सतना बना. यहां योगी जी के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने केंद्रीय रसोई (Central Kitchen) की योजना लागू की. इसमें समाज के सहयोग से एक स्थान पर भोजन बनता था, और सेवा बस्तियों में, झुग्गियों में जरूरतमंदों को उसका वितरण होता था. फिर योगी जी ने सतना शहर के कार्यकर्ताओं के माध्यम से जरूरतमंद परिवारों को चिह्नित किया, तथा उन तक सूखा राशन पहुंचाने की व्यवस्था की.
सतना में ‘नारायण कुटी’, अर्थात् संघ कार्यालय के पास स्वच्छता कर्मियों की बस्ती है. ये सभी सफाई कर्मी, कोरोना योद्धा थे. इन योद्धाओं के लिए, संघ के स्वयंसेवक, प्रतिदिन चाय-बिस्किट की व्यवस्था कराते थे. सौ-डेढ़ नसौ कप चाय रोज बनती थी.
अब एक नई समस्या सामने आई थी. प्रवासी मजदूरों की वापसी की. यह एक बड़ा मुद्दा था. महानगरों में रहने वाले प्रवासी मजदूर, अपने गावों में लौटना चाहते थे. इनमें मध्य प्रदेश के, और विशेषतः महाकौशल प्रांत के, अनेक श्रमिक थे. तत्काल रूप से दो बातें करने की आवश्यकता थी – श्रमिकों को परिवहन उपलब्ध करवाना/रेलगाड़ियों में उनके भोजन – पानी की चिंता करना और दूसरा, जो प्रवासी अपने गाँव लौट आए हैं, उनके रोजगार की चिंता करना.
योगी जी के नेतृत्व में योजना बनी. इटारसी – मानिकपुर लाइन पर जितने भी बड़े स्टेशन थे, जहां श्रमिक गाड़ियां रुक रही थी, वहाँ स्वयंसेवकों ने पानी, ककड़ी, सूखा नाश्ता आदि की व्यवस्था की. प्रवासी मजदूरों के पुनर्वास हेतु लघु एवं कुटीर उद्योगों की जानकारी एकत्रित करने के लिए योगी जी ने अनेक बैठकें लीं. संबधित पुस्तकों का तथा डेटा का अध्ययन किया. और उसके बाद वापस लौटे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार में मार्गदर्शन करने के लिए कुछ केंद्र बनाए.
अनलॉक प्रारंभ होने के पश्चात, समन्वय की दृष्टि से, योगी जी का जबलपुर में रहना आवश्यक हुआ था. वे यहां से सेवा कार्यों की गतिविधियां संचालित करने लगे. वृक्षारोपण, रक्तदान अभियान जैसे कार्य भी चल रहे थे. अस्पतालों में कोरोना पीड़ितों का इलाज कैसा चल रहा है, इसकी भी चिंता वे कर रहे थे. और इसी प्रक्रिया में, सारी सावधानियां अपनाने के बाद भी, कोरोना ने उन्हें जकड़ ही लिया. योगी जी ने कोरोना से संघर्ष भी किया. किन्तु इस कोरोना सेनानी (Corona Warrior) को अपने प्राण त्यागने पड़े.
इस कोरोना काल में, सारे देश में संघ के सेवाकार्य बड़ी मजबूती के साथ चल रहे हैं. सारी सावधानी बरतकर भी अनेक संघ स्वयंसेवक कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं. मध्य प्रदेश के योगी जी, बंगाल के तपन घोष जैसे संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं का, इस कोरोना के कारण मृत्यु भी हो रहा है. किन्तु फिर भी संघ के स्वयंसेवक इस चीनी वायरस के आगे झुक नहीं रहे हैं. थक नहीं रहे हैं. रुक नहीं रहे हैं. ‘दीप निष्ठा का लिये निष्कंप, वज्र टूटे या उठे भूकंप’… इस भावना से संघ का कार्य जारी है.
मुंबई के धारावी में संघ के ५०० स्वयंसेवकों ने जून के दूसरे सप्ताह में, लगातार दस दिन, मुंबई की उस गर्मी मे, पीपीई किट पहन कर हजारों लोगों की स्क्रीनिंग की. प्रभावितों का विलगीकरण किया. इसका परिणाम भी हुआ. धारावी में अब संक्रमण थम सा गया है. नासिक शहर में कोरोना से मृत व्यक्तियों के शवों के दाह संस्कार का जिम्मा संघ स्वयंसेवकों ने उठाया. उनमें एक महिला सेविका भी शामिल थी. औरंगाबाद का विशालतम हेडगेवार हॉस्पिटल, कोरोना के मरीजों का अत्यंत कम दाम में इलाज कर रहा हैं, जिसे प्रशासन से लेकर तो सामान्य नागरिक भी सराह रहे हैं. सारे देश में ऐसे अनगिनत काम, बड़ी खामोशी से, अत्यंत सरलता से चल रहे हैं.
इसी बीच और भी प्रकृतिक आपदाएँ आई. बंगाल और कोंकण में समुद्री चक्रवात से भारी नुकसान हुआ. असम और बिहार में बाढ़ ने तबाही मचायी. किन्तु त्रासदी के इन सभी प्रसंगों में सबसे आगे डटे रहे संघ के स्वयंसेवक. संघ का सारे देश में एक विशाल, व्यापक और मजबूत नेटवर्क है. संघ ‘सारे समाज का संगठन है’, ऐसा मानता है. इसलिए, समाज को साथ लेकर संघ इन सभी आपदाओं का डटकर मुक़ाबला करता है.
योगी जी जैसे कर्मठ और समर्पित स्वयंसेवक का जाना, यह कोरोना की लड़ाई में दिया गया बलिदान है. देश और समाज, ऐसे बलिदानों का हमेशा स्मरण करेगा और इस चीनी वायरस के विरोध में जारी युद्ध, उसी ऊर्जा से जारी रहेगा….!
अंतिम जय का वज्र बनाने, नव दधीचि हड्डियां गलाएं.
आओ फिर से दिया जलाएं !