नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से विज्ञापनों पर खर्च की जानकारी मांगी है. न्यायालय ने सरकार को दो सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. दिल्ली सरकार से पिछले तीन वर्षों में विज्ञापनों पर खर्च राशि की जानकारी मांगी गई है. जस्टिस एसके कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया.
दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि बजटीय बाधाओं के कारण रीजनल रैपिड ट्रांसिट सिस्टम यानी RRTS प्रोजेक्ट के लिए फंड देने में सक्षम नहीं है. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से पूछा कि हमें 2 सप्ताह के अंदर बताइए कि आपने पिछले 3 वर्ष में विज्ञापनों पर कितना खर्च किया है.
न्यायालय को बताया गया कि दिल्ली सरकार इस प्रोजेक्ट, विसेषकर दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर के लिए फंड देने में सक्षम नहीं है. इस संबंध में नियुक्त कमिशन को मामला भेजने की मांग की गई ताकि कोई निर्णय लिया जा सके.
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा, “दिसंबर, 2020 में डीजी ने स्वयं NCRTC को इसके बारे में सूचित कर दिया था. बताया था कि वो फंड देने में सक्षम नहीं हैं”.
जस्टिस कौल ने पूछा, “क्यों?”
वकील ने उत्तर दिया, “फंड की कमी के कारण. ये कैबिनेट का निर्णय है”.
जस्टिस कौल ने संकेत दिया कि अगर आवश्यक हुआ, तो न्यायालय विज्ञापन के लिए उपयोग किए जाने वाले फंड को प्रोजेक्ट में लगाने के आदेश दे सकता है.
“आइए देखें कि आप कितना फंड खर्च कर रहे हैं. हम कहेंगे – विज्ञापन के लिए खर्च किए जाने वाला सारा फंड डायवर्ट कर दिया जाएगा. क्या आप इस तरह का आदेश चाहते हैं?”
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि हमने साल 2020 में ही बता दिया था कि हमारे पास फंड नहीं है. कोविड के कारण स्थिति अधिक खराब हो गई है. केंद्र की तरफ से दिया जाना वाला जीएसटी मुआवजा भी पिछले वित्तीय वर्ष से बंद कर दिया गया है.
“ये 5000 करोड़ रुपये से अधिक है”.
जस्टिस कौल ने कहा, ”क्या इसकी एक ही बार में आवश्यकता है? आइए देखें कि आप अन्य चीजों पर कितना खर्च करते हैं. ये एक डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है. हालांकि, वित्तीय पहलू हम राज्य सरकार पर छोड़ते हैं, लेकिन इस तरह के प्रोजेक्ट के लिए जब आप कहते हैं कि कोई फंड नहीं है तो हम जानना चाहते हैं कि आपने विज्ञापन पर कितना खर्च किया है. प्रोजेक्ट बनाना भी एक विज्ञापन है कि आप कुछ कर रहे हैं”.
इनपुट – लाइव लॉ