पुणे (20 दिसंबर, 2024). पाषाण स्थित लोकसेवा ई-स्कूल के नए भवन के लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि शिक्षा के लिए व्यवस्था बाधक नहीं, बल्कि साधक होनी चाहिए. शिक्षा प्रणाली का स्वरूप केवल नियमन करने वाला नहीं, बल्कि उसे शिक्षा के लिए पोषक माहौल तैयार करना चाहिए.
कार्यक्रम में पूर्व आईएएस अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी, शास्त्रीय संगीत गायक महेश काले, भारतीय जैन संगठन के संस्थापक शांतिलाल मुथ्था, कॉसमॉस बैंक के अध्यक्ष मिलिंद काले, उद्यमी पुनीत बालन, लोकसेवा प्रतिष्ठान के निदेशक एड. वैदिक पायगुडे, पूर्व निदेशक निवेदिता आदि उपस्थित थे.
सरसंघचालक जी ने कहा कि शिक्षा का विषय किसी दायरे में बंद नहीं होना चाहिए, इसलिए उसे समाज पर आधारित होना चाहिए. समाज को उसका पोषण करना चाहिए. “साक्षरता और शिक्षा में अंतर है. पेट भरना यानी शिक्षा नहीं होती, बल्कि मनुष्य बनने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होती है. शिक्षा यानी मनुष्य का निर्माण करने की प्रक्रिया होती है. इसलिए शिक्षा कोई व्यवसाय नहीं, बल्कि एक व्रत है, सेवा है”. सरसंघचालक ने आशा व्यक्त की कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर परिणामकारी अमल करने से राष्ट्र को जैसे चाहिए, वैसे व्यक्ति का निर्माण होगा.
शांतिलाल मुथ्था ने कहा, “स्वतंत्रता के बाद पहली बार सर्वोत्कृष्ट शिक्षा नीति बनाई गई है, जिससे नए भारत का निर्माण होगा. यद्यपि नीति अच्छी है, लेकिन उस पर परिणामकारी अमल करने की आवश्यकता है, क्योंकि पश्चिमी संस्कृति के आक्रमण के कारण मूल्य, शिक्षा और परिवार व्यवस्था के समक्ष कई चुनौतियां खड़ी हो रही है”.
कार्यक्रम के आरंभ में नेताजी सुभाषचंद्र बोस सैनिकी विद्यालय के छात्रों ने अनुशासित पथ संचलन करते हुए गणमान्य अतिथियों का अभिवादन किया.
अविनाश धर्माधिकारी ने अफसोस व्यक्त किया कि स्वतंत्रता के बाद आज भी हमारे क्रमिक पुस्तकों में उपनिवेशवाद की मानसिकता है. “क्रमिक पुस्तकों में आज भी हमारे देश और संस्कृति का अशास्त्रीय तथा सत्य के साथ मेल न खाने वाला इतिहास सिखाया जा रहा है. भारत और भारतीय संस्कृति का विरोध करने वाली शक्तियों की वैचारिक व व्यावहारिक छाप आज भी क्रमिक पुस्तकों के जरिये अगली पीढ़ियों तक जा रही है. धर्माधिकारी ने कहा कि भविष्य को दिशा देने वाली हमारी सनातन सभ्यता और आधुनिक विज्ञान का संगम करना चाहिए.