नई दिल्ली. संस्कार भारती ‘कला संकुल’ में “भरतमुनि का नाट्यशास्त्र – परंपरा एवं प्रयोग” विषय आयोजित संगोष्ठी में प्रसिद्ध शास्त्रीय कलाकार, रंगमंच सिद्धांतकार प्रोफेसर भरत गुप्त की विशेष उपस्थिति रही.
प्रोफेसर भरत गुप्त ने प्राचीन भारतीय नाट्य शास्त्र के महत्वपूर्ण एवं गहन बिन्दुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि भारत के इस्लामीकरण के उपरान्त अंग्रेजों द्वारा यूरोपियन थिएटर के माध्यम से भारत में नाटक को पुनर्जीवित किया गया. परन्तु भारत के इतिहासकारों ने नाटक के साथ न्याय नहीं किया, साथ ही आजादी से लेकर अब तक सरकारों ने भी अनदेखी की है. उन्होंने बीते सत्तर वर्षों में नाटकों की महत्ता को कमतर आंकने का आरोप लगाते हुए पूछा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश में नाट्यशास्त्र के प्रणेता भरत-मुनि का एक भी थिएटर या स्मारक क्यों नहीं बन पाया है, जबकि नाट्यविधा सम्पूर्ण विश्व की प्राचीनतम कलाओं में से एक है.
प्राचीन समय में नाटकों में भाषायी एकीकरण, भारतीय परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण रहा है. परन्तु इसके सन्दर्भ में ऐतिहासिक तथ्यों में विद्वानों में विरोधाभास होने के कारण नाट्य शास्त्रों को अनुकूल सम्मान नहीं मिलने की पीड़ा वक्तव्य में दिखी. दो धाराओं एक प्राचीन भारत और दूसरा अर्बन के बीच बने विभाजन को एक करने की आवश्यकता पर बल देते हुए नाटकों में भाषायी एकीकरण की महत्ता पर प्रकाश डाला. गोष्ठी में नाट्य कला विद्यार्थी, प्रोफेसर, नाटककार, रंगकर्मियों के प्रश्नों पर नाटक में नवाचार के प्रयोग पर विशेष बल देने की आवश्यकता पर जोर डाला.
संस्कार भारती ‘कला संकुल’ में प्रत्येक माह के अंतिम रविवार को संगीत, नृत्य, लोक नृत्य, साहित्य, चित्रकला विषयों पर आधारित “मासिक संगोष्ठी” का आयोजन किया जाता है. दिल्ली में कला दृष्टि की व्यापकता, कला विषय पर विमर्श, उनकी चुनौतियों के आंकलन एवं भारतीय कला दृष्टि के संयोजन जैसे कला जगत के विभिन्न घटकों को ध्यान में रखते हुए संस्कार भारती ‘मासिक संगोष्ठियों’ का आयोजन कर रहा है. विगत संगोष्ठियों में प्रसिद्ध नृत्यकार चित्रकार पद्मश्री राम सुतार, पद्मश्री रंजना गौहर, संगीत नाट्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित भरतनाट्यम नृत्यांगना रमा रमा वैद्यनाथन, पंडित बाँसुरी वादक पंडित चेतन जोशी, जय प्रभा मेनन, अभय सुपोरी, मीनू ठाकुर, प्रो. चंदन चौबे सहित अनेक मूर्धन्य कलाकार, विद्वानों ने उपस्थिति दर्ज कराई है.