नई दिल्ली. साप्ताहिक पत्रिका ‘पाञ्चजन्य’ और ‘ऑर्गनाइजर’ द्वारा आयोजित मीडिया महामंथन-2022 में प्रथम सत्र ‘मीडिया एंड फ्री स्पीच’ विषय पर रहा. सत्र में प्रसिद्ध लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी, लेखिका, ब्लॉगर, स्तंभ लेखक एवं सोशल मीडिया पर जाना-माना नाम शेफाली वैद्य, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, लेखक आनंद रंगनाथन, राजनीतिक कार्यकर्ता कपिल मिश्रा, सोशल मीडिया एक्सपर्ट अंशुल सक्सेना, ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल केतकर ने हिस्सा लिया. सत्र का संचालन पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने किया.
सत्र में जेएनयू प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने फ्री स्पीच को लेकर कहा कि सोशल मीडिया पर फ्री स्पीच को लेकर देश में दो तरह का माहौल है. कहा जा सकता है कि एक पक्ष को इस मामले में पूरी आजादी दी गई है, जबकि दूसरे पक्ष के साथ ऐसा नहीं है. आजकल हेट स्पीच को लेकर काफी बात की जा रही है, लेकिन हेट स्पीच कौन सी है और कौन सी नहीं? आखिर यह कौन तय करेगा? आज के दौर में सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने को लेकर अलग-अलग पक्षों के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जा रहा है जो सही नहीं है.
वहीं, पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने सोशल मीडिया को दुधारी तलवार बताया. मालिनी ने कहा, मौजूदा समय में केवल हिन्दुओं की आस्था पर चोट की जाती है और इसे फ्रीडम ऑफ स्पीच का नाम दे दिया जाता है. हालांकि, यही रवैया दूसरे मतों के मामले में नहीं अपनाया जाता है. अभी हाल ही में ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने पर तरह-तरह के मजाक बनाए जा रहे हैं, लेकिन किसी तरह की हिंसा नहीं होती. जबकि यही बात अगर किसी दूसरे मत के साथ होती है तो स्थिति विपरीत होती. “जो देश में असहिष्णुता का राग अलापते हैं, उनसे बड़ा असहिष्णु कोई नही है!”
कपिल मिश्रा ने तीखे व्यंग्य कसते हुए निशाना साधा. उन्होंने कहा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी के युवराज लंदन जाकर भारत माता को गाली दे सकते हैं, भारत एक राष्ट्र नहीं है, ये कह सकते हैं, लेकिन ये सब फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत आता है. यहां करवाचौथ का विरोध करने वाले, हिजाब के समर्थन में आ जाते हैं. यहां शिवलिंग का अपमान करने की आजादी है, बग्गा जैसे भाजपा नेता को घर से उठाने की आजादी है. औवेसी के हालिया बयानों पर प्रतिक्रिया में कपिल मिश्रा ने कहा, जो जिस भाषा में समझेगा उसको उसी भाषा में समझाएंगे. “कुछ लोगों को अंग्रेज़ों के दरबार में बैठकर भारत माँ को गाली देने की आज़ादी है! हमारे भगवान को गाली देने की आज़ादी है.”
फ्रीडम ऑफ स्पीच व हेट स्पीच को लेकर शेफाली वैद्य ने कहा कि हम क्या कह रहे हैं, क्या तथ्य रख रहे हैं, इस पर हमें खुद सोचना होगा. साल 2019 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पर प्रशांत कनौजिया की टिप्पणी के बाद गिरफ्तारी पर जो लोग सवाल उठा रहे थे, वही आज महाराष्ट्र में एक युवती द्वारा केवल एक पोस्ट शेयर करने पर उसकी गिरफ्तारी पर चुप्पी साधे हुए हैं. यह कैसी फ्रीडम ऑफ स्पीच है जो क्षेत्र विशेष के आधार पर तय होती है.
शेफाली ने कहा, महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को पुलिस द्वारा सुरक्षा दी जा रही है, जबकि राज्य में सरकार चला रहे लोग शिवाजी का नाम लेते रहते हैं. यह दोगलापन क्यों. बंगाल, राजस्थान और तमिलनाडु में फ्रीडम ऑफ स्पीच कहां है. हमें स्वयं आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है.
सोशल मीडिया एक्टिविस्ट अंशुल सक्सेना ने भी इसी तरह के विचार रखे. उन्होंने कहा कि कोरोना काल के दौरान अंतिम संस्कार के विजुअल व तस्वीरें तो खूब दिखाई गईं, लेकिन मुस्लिमों के कोरोना टेस्ट की तस्वीर आ जाने पर भी लोगों की भावनाएं आहत होने लगी थीं. यह कैसे हो सकता है? अगर फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात की जाए तो सभी पक्षों के साथ एक जैसा व्यवहार ही होना चाहिए. “फ्री स्पीच के नाम पर मीडिया ने कोरोना में अंतिम संस्कार की फोटो इस तरीके से दिखायी गयी हो जैसे उसकी प्रदर्शनी लगी हो.”