प्रशांत पोळ
शरद पवार…. देश के इतिहास में सबसे ज्यादा समय, अर्थात् दिनांक २३ मई, २००४ से २६ मई २०१४ तक, पूरे दस वर्ष केंद्रीय कृषि मंत्री का दायित्व निभाने वाले राजनेता. अत्यंत असफल कृषि मंत्री. अपने कार्यकाल में, भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या का रिकॉर्ड रचने वाले कृषि मंत्री. इन दस वर्षों में, देश के एक लाख इकहत्तर हजार एक सौ पैंतीस (१,७१,१३५) किसानों ने आत्महत्या की. सन् २००४ में जब इन्होंने कृषि मंत्री का काम संभाला, तब देश का कृषि विकास दर था – ४%, जो वाजपेयी सरकार ने २.६% से ४% तक लाया था. सन् २०१४ मे, जब शरद पवार ने कृषि मंत्रालय छोड़ा, तब देश का कृषि विकास दर ऋणात्मक था : -०.२%. पिछले छह वर्षों में मोदी सरकार ने इस कृषि विकास दर को पुनः ३.४% तक लाया है.
शरद पवार मात्र असफल कृषि मंत्री ही नहीं हैं, वे पलटी मरने वाले राजनेता भी हैं.
कृषि मंत्री रहते हुए, शरद पवार समझ तो रहे थे, कि उनके कार्यकाल में कृषि विकास बैठा जा रहा हैं. किसान आत्महत्याएं बढ़ रही हैं. किन्तु ठोस कुछ करने की उनकी न तो इच्छाशक्ति थी, और न ही हिम्मत. इसलिए उन्होंने सन् २०१० में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखे. ११ अगस्त, २०१० को लिखे इन पत्रों में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि कृषि क्षेत्र को बढ़ाना है, तो निजी भागीदारी भी बढ़ानी होगी. उनके शब्द हैं, “In this context, the need to amend the present State APMC Act on the lines of Model State Agriculture Produce Marketing (Development and Agriculture) Act 2003 to encourage the private sector in providing alternate competitive marketing channels in the overall interest of farmers / producers and consumers can not be overemphasized.”
फिर से पढ़िये इन पंक्तियों को –
“to encourage the private sector in providing alternate marketing channels…”
मोदी सरकार ने क्या किया..? यही तो किया ना..?
इतना ही नहीं, दिसंबर २०१२ में ‘नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल’ मे, कृषि मंत्री के नाते वे इन्हीं बातों को दोहराते हैं. The Hindu के Business Line के २७ दिसंबर, २०१२ के अंक में छपे इस समाचार में पवार कहते हैं, “The public-private partnership (PPP) model in agriculture should be explored on a wider and larger scale”. शरद पवार के अगले शब्द हैं, “The Agriculture Produce Marketing Committee (APMC) Acts need to be amended to encourage setting up private markets and contract farming.”
मैं फिर से शरद पवार के शब्द दोहराता हूँ –
“…to encourage setting up private markets and contract farming.” ये तो contract farming की भी बात कर रहे हैं, जिसे भाजपा ने सिरे से नकारा है.
और ६ दिसंबर, २०२० को यही शरद पवार कहते हैं, “इस आंदोलन को केंद्र सरकार गंभीरता से ले, नहीं तो यह आंदोलन पूरे देश में फैलेगा.” वे आगे कहते हैं, “कुछ बुद्धिमानी दिखाए केंद्र सरकार और इस विषय को समाप्त करे.” वे केंद्र सरकार के विरोध में, किसान आंदोलन का और भारत बंद का समर्थन करते हैं.
इतना दोगलापन..? माना कि कुछ राजनेताओं की चमड़ी मोटी होती है. किन्तु यह तो निर्लज्जता की पराकाष्ठा है…!
शरद पवार में इतनी धमक नहीं थी, इतना साहस नहीं था, इतनी हिम्मत भी नहीं थी, कि इस APMC Act को लागू कर सके. मोदी सरकार ने यह हिम्मत दिखाई, तो उनका विरोध..?
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अब जरा कांग्रेस की भूमिका देखें.
बहुत दूर नहीं. अभी पिछले वर्ष, अर्थात् २०१९ मे, कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव का घोषणापत्र प्रकाशित किया था. आज भी वह उनकी वेबसाइट पर है. इसमें किसानों के लिए विशेष विभाग हैं, जिसका शीर्षक हैं – Agriculture, Farmers and Farm Labour.
कांग्रेस के इस घोषणापत्र में ९वें क्रमांक का मुद्दा है –
‘Congress will promote Farmer Producer Companies/Organisations to enable farmers to access inputs, technology and markets.’
इसी में ११वें क्रमांक का मुद्दा है –
‘Congress will repeal the Agricultural Produce Market Committees Act and make trade in agricultural produce – including exports and inter-state trade – free from all restrictions.’
अब मोदी सरकार ने लाया हुआ कृषि कानून क्या है..? इसी लाइन पर तो है….
और यह कांग्रेस, कल 8 दिसंबर के ‘भारत बंद’ का समर्थन कर रही है. किसान आंदोलन को समर्थन दे रही है.
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इस समय, देश के वामपंथियों ने भाजपा, संघ, मोदी सरकार के विरोधियों को एकजुट किया है. इस आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है. देश में अस्थिरता का निर्माण हो, इसका पुरजोर प्रयास किया जा रहा है.
और शरद पवार और सोनिया कांग्रेस, निर्लज्जता की सारी सीमाएं लांघकर, अपने ही वक्तव्य / घोषणापत्र के विरोध में जाकर देशविघातक शक्तियों के साथ खड़े हैं..!
यह देश का दुर्भाग्य है.