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यह मंदिर भारतीय संस्कृति और समाज के आदर्शों का जीवंत प्रतीक है – राष्ट्रपति

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अयोध्या. वर्ग विशेष का होने के कारण श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में प्रभु श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में आमंत्रित न किए जाने की बात कहने वालों को राष्ट्रपति के दौरे के साथ उत्तर मिल गया होगा. हालांकि, राजनीतिक स्वार्थी तत्वों को उत्तर देने की आवश्यकता नहीं, पर संभव है कि 01 मई के घटनाक्रम को देख सद्बुद्धि आ जाए.

देश की प्रथम नागरिक गर्भगृह में श्रीरामलला के विग्रह के समीप तक पहुंचीं. यहां प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रधानमंत्री के अलावा अर्चक ही पहुंचते रहे हैं. राहुल गांधी की ओर से राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को प्राणप्रतिष्ठा में न बुलाए जाने की जो बात कही गई थी और इसका कारण उनका एक वर्ग विशेष का होना बताया था. यद्यपि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चम्पतराय ने भी इस पर कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. अब राष्ट्रपति के आगमन पर तीर्थ क्षेत्र ने इसका व्यवहारिक रुप से जवाब अलग ही तरीके से दिया. राष्ट्रपति गर्भगृह में श्री विग्रह के समीप तक पहुंची, जहां केवल अर्चक ही पहुंचते हैं और प्राण प्रतिष्ठा के समय प्रधानमंत्री पहुंचे थे. अयोध्या पहुंचने के बाद राष्ट्रपति ने हनुमान गढ़ी में बजरंग बली का दर्शन व पूजन किया. तत्पश्चात पुण्य सलिला सरयू तट पहुंचीं और विधि-विधान पूर्वक अनुष्ठान के बाद महाआरती में सम्मिलित हुईं. इसके बाद उन्होंने श्रीरामलला का दर्शन किया व आरती में प्रतिभाग किया. और कुबेर टीला भी गईं.

प्रभु श्रीरामलला के दर्शन के पश्चात राष्ट्रपति भवन के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट (एक्स) पर लिखा –

“अयोध्या में प्रभु श्रीराम के बाल-स्वरूप का दर्शन करने के दिव्य अनुभव को शब्दों में बाँधना मेरे लिए संभव नहीं है. राम केवट संवाद से लेकर प्रभु श्रीराम द्वारा माता शबरी के जूठे बेर खाने जैसे मर्मस्पर्शी प्रसंग बरबस याद आ रहे हैं. मैं भाव-विह्वल हूँ. यह मंदिर भारतीय संस्कृति और समाज के आदर्शों का ऐसा जीवंत प्रतीक है जो देशवासियों को सबके हित में कार्य करने की प्रेरणा देता रहेगा. देशवासियों के कल्याण के लिए प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करने का अवसर मुझे मिला, इसे मैं दैवी कृपा मानती हूँ. इस काल-खंड में हमारे राष्ट्र के समग्र विकास की यात्रा का साक्षी और सहभागी होना सौभाग्य की बात है.”

सियावर रामचन्द्र की जय..!

 

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