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आत्मनिर्भर भारत, संगठित भारत, स्वावलंबी भारत बनाना है – दत्तात्रेय होसबले

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रोहतक (विसंकें). हरियाणा राज्य उच्च शिक्षा परिषद् एवं स्वदेशी स्वावलम्बन न्यास द्वारा आयोजित आयोजित वेबिनार दूसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक रामामृत सुन्दरम ने कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए छोटे-छोटे उद्योगों और व्यवसायों का विस्तार करने की योजना बनानी होगी. आत्मनिर्भर बनने के लिए भारत पूरी तरह से सक्षम है, केवल समाज की आंतरिक शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि हमारी आजादी की लड़ाई का आधार बिंदु स्वदेशी और आत्मनिर्भरता ही था. सामाजिक व सांस्कृतिक विकास के साथ ही आर्थिक विकास करेंगे तो समृद्ध, सक्षम, समरस व सशक्त भारत बनेगा. वेबिनार में 16 व्यक्तियों और संस्थानों को ‘दत्तोपंत ठेंगड़ी राष्ट्रीय स्वावलम्बन सम्मान’ प्रदान किया गया. इन सबने या तो अर्थसृजन में या रोजगार सृजन में उल्लेखनीय कार्य किया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कहा कि आज देश विषम परिस्थितियों के दौर से गुजर रहा है. संकट के साथ भारत के लोग एक-दूसरे के साथ खड़े होते हैं. यही मानवता की पहचान है. जब संकट आता है तो मनुष्य की शक्ति किसी न किसी रुप में जागृत हो जाती है. इस महामारी के संकट काल में भारत के समाज ने एक साथ खड़े होकर इस चुनौती को स्वीकार किया है. आने वाली पीढ़ीयों के लिए यह उदाहरण सिद्ध होगा. आत्मनिर्भरता के रुप में आर्थिक पक्ष बहुत जरुरी है. आर्थिक रूप से सशक्त होना एक आयाम है. आत्मनिर्भर भारत, संगठित भारत, स्वावलंबी भारत की जरुरत है. अर्थ के साथ-साथ सामाजिक, सांस्कृतिक आयामों को भी देखना चाहिए. हम अंग्रेजों को हरा सकते हैं, अंग्रेजों को यहां से भगा सकते हैं. यह आत्मविश्वास सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी व दूसरे क्रांतिकारियों ने पैदा किया. हमें भी अपने नौजवानों में यह आत्मविश्वास पैदा करना होगा कि हम कुछ भी कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या को भी हमें एक चुनौती के तौर पर लेना चाहिए. यह कोई समस्या नहीं है, हमें इस समस्या को इस तरह से देखना चाहिए कि हमारे पास काम करने के लिए इतने हाथ हैं. जब मनुष्य में आत्मविश्वास पैदा हो जाता है तो वह दुनिया के सामने उदाहरण पेश कर सकता है. भारत की मूल आवश्यकताओं के लिए हमें प्रयत्न करना चाहिए. स्वदेशी का मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे देशों के साथ सम्बंध नहीं रखेंगे. हम दूसरे देशों के साथ व्यापार रखेंगे, अपने सम्बंध रखेंगे. लेकिन अपनी शर्तों पर, अपने पैरों पर खड़े होकर. जीवन की बुनियादी जरुरतों के लिए दूसरों के सामने हाथ पसारने की बजाय हमें आत्मनिर्भर बनना होगा, अपने पैरों पर खड़ा होना होगा. हमें परिश्रमी भारत चाहिए, हम आलसी भारत से आत्मनिर्भर नहीं बन सकते. नई पीढ़ी को परिश्रम करने, कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरित करना होगा.

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