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बच्चों को समझने के लिए हमें भी बनना होगा 21वीं सदी का अभिभावक

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रोहतक (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हरियाणा प्रांत के बाल कार्य विभाग द्वारा ‘बाल संस्कारशाला’ में बच्चों के बचपन को संवारने के साथ-साथ अभिभावकों को भी जागरुक किया जा रहा है ताकि आधुनिकता के दौर में बच्चों व अभिभावकों के बीच सामंजस्य बैठाया जा सके. लॉकडाउन के दौरान अभिभावक बच्चों के साथ तालमेल बैठा कर एक अच्छे अभिभावक की भूमिका निभा सकें. इस विषय को ध्यान में रखते हुए बाल कार्य विभाग द्वारा ऑनलाइन ‘पालकाय नम:’ (अभिभावक चर्चा) कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम में 2100 के करीब अभिभावकों ने भाग लिया. कार्यक्रम के संयोजक कमल कुमार ने भूमिका रखते हुए बताया कि माता-पिता बच्चे के प्रथम गुरु होते हैं. बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए माता-पिता की क्या भूमिका होनी चाहिए, इसकी चर्चा के लिए यह कार्यक्रम रखा गया है.

विशेषज्ञों ने अभिभावकों को बच्चों के चहुंमुखी विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यवहार के बारे में विस्तार से जानकारी दी. हरियाणा प्रांत के बाल कार्य प्रमुख भूषण कुमार ने बताया कि डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार जी ने 1925 से ही बालकों को संघ से जोड़ने का काम किया जो आज तक चला आ रहा है. लॉकडाउन में भी बाल कार्य विभाग ने बच्चों के संस्कारों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया. इसी कडी में बालकों के अभिभावकों से भी चर्चा करने के लिए ‘पालकाय नम:’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया.

कार्यक्रम को यू-ट्यूब पर ‘बाल संस्कारशाला’ चैनल पर भी देखा जा सकता है. संघ के सह प्रांत कार्यवाह प्रताप भी पूरा समय कार्यक्रम में उपस्थित रहे.

विद्या भारती के प्रांत संगठन मंत्री रवि कुमार ने कहा कि आज के बच्चे 21वीं सदी के बच्चे हैं. ऐसे में बच्चों के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए अभिभावकों को भी 21वीं सदी का अभिभावक बनना पड़ेगा. देखने में आया है कि आज बच्चों में सहनशीलता बेहद कम होती जा रही है. इसलिए बच्चों के साथ बातचीत करते समय अभिभावकों को सरल व सहज तरीके से बातचीत करनी चाहिए. बच्चों पर पढ़ाई को जबरदस्ती थोपने की बजाय उनको पढ़ाई के लिए प्रेरित करें और बीच-बीच में पढ़ाई के बारे में बच्चों के साथ संवाद भी स्थापित करते रहें ताकि बच्चा पढ़ाई से बोर न हो. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को संस्कार भी दें. समय-समय पर बच्चों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करें. इससे बच्चे की समझ भी बढ़ेगी और उसका ज्ञान भी बढ़ेगा. यदि किसी विषय में बच्चे की रुचि नहीं है तो उस विषय को बच्चे को रटाने की बजाय उसे समझाने का प्रयास करें. कहानी, प्रसंग या किसी नाटक के तौर पर उस पाठ्यक्रम के बारे में बच्चे को समझाया जा सकता है. अभिभावक बच्चों के साथ एक्सचेंज ऑफर न करें. बच्चे को लालच की आदत नहीं डालें.

रवि कुमार ने कहा कि बच्चों की आवश्यकता से अधिक संभाल भी गलत है. इससे विद्यार्थी के साथ-साथ अभिभावक भी चिंताग्रस्त हो जाते हैं. अभिभावक बच्चे से अपेक्षा तो करें, लेकिन किसी दूसरे बच्चे की होड़ न करें. अपने बच्चे का मूल्यांकन किसी दूसरे बच्चे के साथ नहीं करना चाहिए. पुस्तकों की तरफ बच्चे की रुचि बढ़ाने के लिए घर में एक अच्छा पुस्तकालय भी होना चाहिए. बच्चे के लिए सुबह का समय याद करने के लिए तथा शाम का समय लिखने के लिए सबसे उपयुक्त है. छोटे बच्चों को देर रात तक नहीं पढ़ाना चाहिए. पढ़ाई के साथ-साथ बच्चे के लिए खेल का समय भी निर्धारित करना चाहिए.

अभिभावक 5 वर्ष तक की आयु के बच्चे का लालन-पालन स्नेह पूर्वक करें, 6 से 16 वर्ष की आयु के बच्चों का पालन-पोषण नियम, अनुशासन के साथ करें. बच्चे में अनुशासन की भावना जरुर जागृत करें. इसके लिए चाहे बच्चे को ताड़ना भी पड़े. 16 वर्ष की उम्र के बाद बच्चे के साथ मित्रतावत व्यवहार करना चाहिए. बच्चे को ज्यादा समय मोबाइल न दें.

बच्चों के लिए रोल मॉडल बनें अभिभावक

नीरू हसीजा (पेरेंटिंग एक्सपर्ट) ने कहा कि बच्चे सबसे ज्यादा अपने अभिभावकों की नकल करते हैं. इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों के सामने खुद को रोल मॉडल के तौर पर प्रस्तुत करें. बच्चे नसीहत से नहीं, बल्कि अभिभावकों के आचरण से सीखते हैं. बच्चों के सामने मोबाइल का कम से कम प्रयोग करें. अभिभावक जो आदत बच्चे में विकसित करना चाहते हैं, पहले वह स्वयं में विकसित करें. बच्चों के साथ संवाद बढ़ाएं. बच्चों को स्वावलंबी बनाएं. कोरोना काल के इस समय में बच्चे को घरेलू काम सिखाएं. बच्चों को चुनौतिपूर्ण कार्य करने के लिए प्रेरित करें. विपरित परिस्थितियों में धैर्य के साथ काम करना सिखाएं तथा बच्चों में सकारात्मक सोच पैदा करें. बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय दें. जीवन में हर प्रकार की परिस्थिति को आनंद के साथ सुलझाना सिखाएं.

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