भारत रत्न लता मंगेशकर जी के जाने से केवल मैं ही नहीं प्रत्येक भारतीय के मन में जो वेदना और रिक्तता उत्पन्न हुई है, उसको शब्दों में वर्णन करना कठिन है. आठ दशक के ऊपर अपनी स्वर वर्षा से भारतीयों के मनों को सिक्त करने वाला, तृप्त करने वाला, शांत करने वाला आनन्द धन आज हमने खो दिया. वो अब नहीं बरसेगा. लता जी शुचिता और साधना की प्रतिमूर्ति थी. उनकी संगीत साधना के बारे में तो बहुत सारे लोग जानते हैं. इतनी स्वरसिद्ध गायिका होने के बाद भी किसी गीत को गाना है तो उसकी तैयारी और उसका अभ्यास उतना ही करती थी, जितना कभी 13 साल की आयु में गाना शुरू किया था, तब करती होंगी. लेकिन सभी क्षेत्रों में उनकी ये तपस्या है. अपने व्यक्तिगत जीवन में, अपने कौटुंबिक जीवन में, अपने सामाजिक जीवन में और अपने व्यावसायिक जीवन में, सर्वत्र उनका व्यवहार यानि शुचिता और तपस्या का, साधना का आदर्श उदाहरण, अनुकरणीय उदाहरण सबके लिए था. ऐसी सर्वार्थ से यशस्वी और सार्थक जीवन का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करने वाली लता दीदी चली गई. हमको उसके दुःख को सहन करने का धैर्य तथा मंगेशकर परिवार को भी इस आघात को सहन करने का धैर्य भगवान प्रदान करे.
मैं उनकी पवित्र स्मृति में जो स्वरों के रूप में शेष रहेगी, लेकिन पार्थिव रूप में हमको अपनी स्मृति पर ही निर्भर करना पड़ेगा, उस स्मृति में संघ की ओर से तथा मेरी अपनी व्यक्तिगत श्रद्धांजलि अर्पण करता हूँ.
– मोहन भागवत
सरसंघचालक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ