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अत्याचारी पाकिस्तान – सेना और सरकार मिलकर कर रही बलूचों, पश्‍तूनों और सिंधियों पर अत्‍याचार

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नई दिल्ली. इंटरनेशनल डे ऑफ विक्टिम्स ऑफ फोर्स्ड डिसएपियरेंस के अवसर पर कनाडा की राजधानी टोरंटो में बलूच, सिंध और पश्‍तून लोगों ने पाकिस्‍तान के अत्याचारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया. 31 अगस्त का दिन उन लोगों को समर्पित है, जिन्‍होंने सरकार की दमकनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और जिन्‍हें या तो मार दिया गया या फिर बिना कागजी कार्रवाई के जेल में सड़ने के लिए डाल दिया गया. बलूचिस्‍तान, सिंध और खैबर पख्‍तून्‍ख्‍वां में पाकिस्‍तान की सरकार सेना के साथ मिलकर लोगों पर अत्‍याचार कर रही है. बलूचिस्‍तान, खैबर पख्‍तून्‍ख्‍वां और सिंध में ऐसे लोगों की संख्‍या हजारों में है. ऐसे सैकड़ों लोग हैं, जिन्‍हें गायब हुए एक दशक से ज्‍यादा समय बीत चुका है, लेकिन उनका अब तक कुछ पता नहीं चल सका है.

वर्ष 2019 में जारी पाकिस्‍तान के मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट बताती है कि करीब 47 हजार बलूच, 35 हजार पश्‍तूनों का कुछ पता नहीं है कि वो कहां हैं. आयोग के अध्‍यक्ष नसरुल्‍लाह बलूच और उपाध्‍यक्ष मामा कादिर का आरोप था कि इसके पीछे पाकिस्‍तान की सरकार, सेना, आईएसआई और फ्रंटियर कॉर्प का हाथ है. आयोग की इस रिपोर्ट पर काफी बवाल खड़ा किया गया था. इस रिपोर्ट पर बवाल होने की एक बड़ी वजह ये भी थी कि इससे पहले पाकिस्‍तान की सरकार ने गुमशुदा लोगों से जुड़े मामलों की जांच के लिए एक आयोग का भी गठन किया था. जनवरी 2018 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि केवल 1532 मामले ऐसे हैं, जिनमें जांच पूरी नहीं हुई और गायब हुए लोगों का पता नहीं चला. इसमें 125 मामले बलूचिस्‍तान से संबंधित बताए गए थे.

पाकिस्‍तान में मामा कादिर मानवाधिकारों के उल्‍लंघन के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाला एक बड़ा चेहरा हैं. इसके अलावा वो खुद एक भुग्‍तभोगी भी हैं. उनका बेटा वर्ष 2009 में रहस्‍यमय परिस्थितियों में गायब हो गया था. वर्ष 2011 में उसका क्षत-विक्षत शरीर मिला था, जिसके शरीर पर सिगरेट से जलाने और गोली मारने के निशान थे. लेकिन इस मामले में आगे कुछ नहीं हुआ. पाकिस्‍तान में बलूचों, पश्‍तूनों और सिंधियों के मानवाधिकार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2001 में गायब हुए बलूच नागरिक अली असगर की गुमशुदगी की रिपोर्ट वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दर्ज की गई थी.

नवंबर 2019 से उनके सलाहकार इदरिश खट्टाक का भी कुछ पता नहीं है. इदरिश पाकिस्‍तान में मानवाधिकारों के लिए काफी समय से काम कर रहे थे. अलजजीरा के संवाददाता असद हाशिम का कहना है कि पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का गायब होना या किया जाना पाकिस्‍तान की नीति का ही एक हिस्‍सा है. उन्‍होंने इंटरनेशनल डे ऑफ विक्टिम्स ऑफ फोर्स्ड डिसएपियरेंस के मौके पर किए गए एक ट्वीट में ये बातें कहीं.

15 मई को पाकिस्‍तान के इन्‍हीं जुल्‍मों और अत्‍याचारों के खिलाफ आयोजित वर्ल्‍ड सिंधी कांउसिल की वर्चुअल बैठक में कहा गया था कि सिंधियों पर हो रहे जुल्‍मों और उनके गायब होने के पीछे सरकार, आईएसआई, सेना का हाथ है. कमीशन ऑफ इंक्‍वायरी ऑन एनफोर्स्‍ड डिसएपियरेंस के मुताबिक वर्ष 2014 से इस वर्ष मई तक करीब 5000 मामले रजिस्‍टर्ड किए गए, जिनमें से अधिकतर अब तक अनसुलझे हैं. हालांकि स्‍थानीय और अंतरराष्‍ट्रीय मानवाधिकार संगठनों के अनुसार ये आंकड़ा काफी बड़ा है. अकेले बलूचिस्‍तान से ही 20 हजार मामले हैं. इसके अलावा ढाई हजार मामले ऐसे हैं, जिनमें गायब लोगों के क्षत-विक्षत शरीर मिले हैं.

पाकिस्‍तान की आजादी वाले दिन 14 अगस्‍त को वाशिंगटन में पाकिस्‍तान के राजदूत निवास के बाहर सैकड़ों लोगों ने एकत्रित होकर पाकिस्‍तान की असलियत को उजागर किया था. इस मौके पर सिंधी फाउंडेशन के एग्‍जीक्‍यूटिव डायरेक्‍टर मुन्‍नवर लघारी ने कहा था कि सिंध के लोगों को सरकार और सेना द्वारा प्रताडि़त किया जा रहा है. लेकिन विदेशों में बसे सभी सिंधी उनके साथ हैं. उनका कहना था कि यदि हम सभी एकजुट होकर चलेंगे तो अपने लोगों को पाकिस्‍तान के चंगुल से मुक्‍त करवा लेंगे.

 

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